देश मंें बढती विभिन्न कुरीतियों पर मोटिवेशनल स्पीकर पठान का करारा प्रहार
कुचेरा (रिपोर्टर महबूब खां)। समाजसेवी व मोटिवेशनल स्पीकर फ़िरोज़ खान पठान ने एक सामाजिक कार्यक्रम के बाद मीडिया से रुबरु होने पर देश में बढ़ती कुछ कुरीतियों के बारे में अपने विचार साझा किए। पठान ने बताया कि पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव भारत को तेजी से अपनी गिरफ्त में लेकर हमारे संस्कारों तथा व्यवस्थाओं को समाप्त कर रहा हैं। भारत भूमि के संस्कार ने हमेशा बड़े बुजुर्गों को सम्मान दिया हैं। हमारी संस्कृति यह सिखाती हैं कि बड़ांे की इज्जत करो, उनका कहना मानो। वृद्धावस्था में माता पिता की सेवा करो। उनकी हर ख्वाहिश को पूरा करना एक संतान का दायित्व होता हैं। किसी अच्छे कर्म की शुरुआत से पूर्व बड़े-बूढों का आशीर्वाद लेना हमारी परम्परा रही हैं।
जिनके लिए अपना जीवन खपाया, उनकेे लिए बोझ कैसे हो सकते हैं
उन्होंने बताया कि भारतीय समाज में वृद्धाश्रम की इस सामाजिक कुरीति का सम्बन्ध हमारे इतिहास व मूल्यों से नहीं हैं, बल्कि यह इनके विरुद्ध हैं। यह पश्चिम की सभ्यता से ली गई विकृत मनोभाव की प्रथाएं हैं, जो हमारे प्रबुद्ध लोगों के लिए अपमान की बात हैं। आज के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दौर में हर व्यक्ति अपने निर्णय स्वयं लेता हैं, जिसके चलते वृद्ध माता-पिता से लोग बिना सलाह लिए काम करते हैं। इससे आपसी रिश्तों पर बुरा असर पड़ता हैं। हम इस बात का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं कि कितनी मुश्किल से मेहनत कर अपने जीवन की सम्पूर्ण पूंजी बेटे व बेटियों को पढ़ाने, उनकी अच्छी नौकरी लगाने तथा उनकी शादी करवाने में खपा देते हैं। मगर, यही सन्तान बड़ी होकर दुनियां की मोहमाया में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि वृद्ध माँ-बाप इन्हें बोझ लगने लगते हैं तथा वह किसी तरह उनसे छुटकारा पाने के लिए वृद्धों के लिए बने वृद्धाश्रम में ठूस आते हैं।
खुशी तो अपने बेटों के साथ ही मिलती है
पठान ने कहा कि हमें फिर से इंडियन की बजाय भारतीय बनने की आवश्यकता हैं। हमे अपने मूल्यों को फिर से समझने तथा जागरूकता फैलाने की आवश्यकता हैं जिससे वृद्ध माता-पिता अपना मन मसोसकर वृद्धाश्रम में जाने की बजाय ख़ुशी से अपने बेटे व बेटियों के साथ रह सके। माता-पिता के कदमो में जन्नत मानी गइ्र है, उनकी जगह वृद्धाश्रम नही हो सकती।
