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जीवन को शांति और समतामय बनाने के लिए संकेत देते हैं समुद्घात- आचार्यश्री महाश्रमण

कालूयशोविलास में आचार्य कालूगणी के हरियाणा यात्रा का वृतांत सुनाया
छापर (चूरू)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मधरा छापर में चातुर्मास कर रहे तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण शुक्रवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में कहा कि भगवती सूत्र में एक प्रश्न किया गया है कि कितने समुद्घात प्रज्ञप्त हैं? समुद्घात जैन दर्शन का पारिभाषिक शब्द है। आत्मा और जीव दोनों ही शरीर में होते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में आत्मा और जीव के प्रदेश बाहर निकलते हैं अर्थात् आत्मा अथवा जीव अपने प्रदेशों को बाहर प्रक्षेपित करते हैं तो वह समुद्घात होता है। समुद्घात के सात प्रकार के बताए गए हैं। पहला समुद्घात है- वेदना समुद्घात। आदमी के शरीर में कई बार तकलीफ हो जाती है। हाथ, पैर, घुटना, कमर, पीठ आदि में वेदना बढ़ जाती है। फिर कभी कैंसर की स्थिति और कीमो-थैरेपी होती है, ऐसे में बहुत वेदना होती है और जीव जब उदिर्णा करता है, तो मानों बाद में आने वाली वेदना को और पहले बुला लेता है। आदमी को हो रहे कष्ट की दवा-उपचार हो अलग बात है, किन्तु पूर्वकृत कर्मों का परिणाम मानते हुए आदमी को वेदना को यथासंभव सहन करने का प्रयास करना चाहिए। समता और शांतिपूर्वक सहन करने से कर्म की निर्जरा होती है। दवा के साथ-साथ आध्यात्मिक चिकित्सा भी चले, ऐसा प्रयास होना चाहिए।
दूसरा समुद्घात है- कषाय समुद्घात। क्रोध, मान, माया व लोभ के वशीभूत होकर आत्मा के प्रदेश बाहर निकलते हैं तो कषाय समुद्घात होता है। आदमी को अपने कषायों को उपशांत करने का प्रयास करना चाहिए। तीसरा समुद्घात बताया गया- मारणांतिक समुद्घात। मृत्यु से कुछ क्षण पूर्व की स्थिति में होने वाली वेदना से आत्मा के प्रदेश निकलते हैं तो वह मारणांतिक समुद्घात होता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई-कोई आदमी मरकर पुनः कुछ देर बाद जीवित हो जाता है। चौथा समुद्घात है- वैक्रिय समुद्घात। इसमें आदमी अपना रूप परिवर्तन कर सकता है। जब कोई विशेष विद्या के द्वारा अपने आत्म प्रदेशों को बाहर की ओर प्रक्षेपित कर कोई अन्य रूप धारण करता है, तो वह वैक्रिय समुद्घात होता है।
पांचवा-तैजस समुद्घात होता है, इससे व्यक्ति तेजोलब्धि से प्रयोग कर सकता है। आत्मा से ऐसी परमाणु शक्ति निकलती है, जो निर्माण और ध्वंस दोनों करने में सक्षम होती है। छठ समुद्घात बताया गया- आहारक समुद्घात। आहारक लब्धि से साधु किसी संदेह को दूर कर सकता है। किसी व्यक्ति से कोई बात पूछी जाए, तो इस आहारक समुद्घात द्वारा साधक उसके प्रश्नों का उत्तर संबंधित से लाकर दे सकता है। सातवां समुद्घात है- केवली समुद्घात। यह समुद्घात तीर्थंकर के नहीं होती। इन सभी समुद्घातों के बात कहा गया कि आदमी को अपने जीवन को शांति और समतामय बनाने का प्रयास करना चाहिए। सुख-दुःख की परिस्थति में स्वयं को शांत-उपशांत बनाने का प्रयास हो।
आचार्यश्री ने भगवती सूत्राधारित मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्य कालूगणी की धरा पर उनके जीवनवृत्त ‘कालूयशोविलास’ के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाते हुए आचार्यश्री कालूगणी की हरियाणा यात्रा के रोचक प्रसंगों को सरसशैली में व्याख्यायित किया।

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