नई राजनीतिक करवट-
अशोक गहलोत हो सकते हैं कांग्रेस के नए अध्यक्ष, लेकिन वे क्यों पीछे हट रहे हैं, विस्तृत जानकारी
नई दिल्ली। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तीन पीढ़ियों से गांधी परिवार के भरोसेमंद हैं। वे इंदिरा गांधी के समय से संजय गांधी के साथ रहे, फिर राजीव गांधी और सोनिया गांधी के भी विश्वस्त रहे। राहुल गांधी भी उन पर पूरा भरोसा करते हैं। अब राहुल और प्रियंका के लिए सियासी ‘चाणक्य’ और सलाहकार की भूमिका में हैं। हाल ही में उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने की अटकलें जोर पकडने लगी हैं। उन्हें राजनीति का जादूगर माना जाता है। राजस्थान में वे 3 बार मुख्यमंत्री रह और 3 बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके। केंद्रीय मंत्री के तौर पर 3 प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं।
ऐसे में कांग्रेस में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की सुगबुगाहट के बीच उनका नाम उछाला जा रहा है। मुमकिन है कि पहली बार किसी गैर-गांधी को पार्टी की कमान मिले। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को दिल्ली बुलाया और मंगलवार की सुबह उनकी मुलाकात के बाद ऐसी अटकलों ने जोर पकड़ लिया। दरअसल, राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते। सोनिया गांधी से पहले जैसी सियासी सक्रियता की उम्मीद बेमानी है। उनकी बढ़ती उम्र और बीमारी इसका कारण है। प्रियंका गांधी वाड्रा पूरी तरह से अनुभवहीन है, अब तक उसने एक भी चुनाव नहीं लड़ीा हैं।
पार्टी में लंबे समय से संगठन चुनाव नहीं हुए हैं। इस मुद्दे पर गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी जैसे कांग्रेस के कई बड़े नेता ‘बागी तेवर’ दिखा चुके हैं। कपिल सिब्बल, जितिन प्रसाद जैसे कुछ जी-23 नेता तो कांग्रेस छोड़ भी चुके हैं। ऐसे में गांधी परिवार से बाहर के किसी शख्स को कांग्रेस की कमान सौंपी जाए, तो इसमें हैरानी वाली कोई बात नहीं होगी। इसके लिए गांधी परिवार के बेहद भरोसेमंद को ही बागडोर सौंपी जा सकती है। इस लिहाज से अशोक गहलोत से बेहतर शायद ही कोई नाम हो।
1977 में पहली बार लड़ा चुनाव मगर हार गए थे, फिर पीछे मुद कर नहीं देखा
गहलोत की सियासी पारी की कहानी भी बहुत दिलचस्प है, जो 1977 से शुरू होती है। इमर्जेंसी खत्म हो चुकी थी। लेकिन कांग्रेस के नेताओं, कार्यकर्ताओं में डर था। डर ये कि चुनाव में जनता इमर्जेंसी के खिलाफ अपना आक्रोश दिखाएगी। युवा अशोक गहलोत को सरदारपुरा विधानसभा सीट से कांग्रेस का टिकट मिल गया।, क्योंकि तब टिकट के लिए मारा-मारी नहीं थी। इमर्जेंसी के प्रति जनआक्रोश की आशंका से सहमे हुए तमाम नेता चुनावी समर में उतरना ही नहीं चाहते थे। गहलोत के पास खोने के लिए कुछ नहीं था। वह पूरे दम-खम से चुनाव लड़े। चुनाव के लिए उन्हें अपनी प्रिय मोटरसाइकल तक बेचनी पड़ी, लेकिन जीत नहीं पाए। इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी के फैसले का विरोध करने वाले कांग्रेस नेताओं के पर कतरने और पुराने नेताओं की जगह नए चेहरों को तवज्जो देने का फैसला किया। तब तक गहलोत उनकी नजर में आ चुके थे। 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने जोधपुर संसदीय सीट से अशोक गहलोत को उम्मीदवार के रूप में चुना। तब 29 साल के गहलोत ने बड़े अंतर से जीत हासिल की। पहली बार सांसद बने और इंदिरा सरकार में मंत्रिपरिषद में भी शामिल हो गए। जोधपुर से पहली बार ांसद चुने जाने के बाद गहलोत के समर्थक उनकें सम्मान के लिए ट्रकों से दिल्ली स्थित उनके आवास पहुंचे। उनके आवास के बाहर ट्रकों की कतार देख इंदिरा गांधी बहुत प्रभावित हुईं। उन्हें लगा कि गहलोत के समर्थक तो ट्रकों में भर-भरकर दिल्ली आए हैं। इस युवा की क्षेत्र की जनता में जबरदस्त पकड़ है, इसलिए उन्होंने गहलोत को मंत्री बनाने का फैसला किया।
सोनिया गांधी ने की अध्यक्ष पद की पेशकश
सोनिया गांधी की गहलोत से की गई पेशकश के दो मतलब हो सकते हैं। एक तो यह कि राजस्थान में पार्टी के असंतोष को दबाने के लिए गहलोत को पदोन्नति देकर पार्टी का अध्यक्ष बनाया जा सकता है और लगे हाथ सचिन पायलट को सीएम पद देकर नए चेहरे के साथ राजस्थान के चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अहमदाबाद जाते वक्त दिल्ली एयरपोर्ट पर गहलोत ने कहा कि वह बार-बार कह रहे हैं कि राहुल गांधी जी के अध्यक्ष बनने पर ही पार्टी का पुनर्गठन हो सकेगा। उनके अध्यक्ष बने बगैर नेता व कार्यकर्ता निराश हो जाएंगे। हम राहुल गांधी पर लगातार दबाव डालेंगे कि वे पार्टी अध्यक्ष का पद संभालें। कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चुनाव 21 सितंबर तक होना है। इसका विस्तृत कार्यक्रम पार्टी जल्द जारी करने वाली है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिण सीडब्लूसी की 28 अगस्त को दोपहर 3.30 बजे वर्चुअल बैठक होगी। गांधी परिवार से बाहर गहलोत के साथ कई और नामों की भी चर्चा है। इनमें राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, हरियाणा कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष कुमारी शैलजा, मुकुल वासनिक के नाम शामिल हैं। सभी दावेदारों में ज्यादातर गांधी परिवार के बेहद करीबी हैं। पार्टी पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए गांधी परिवार अपने किसी करीबी को इस पद पर बैठाना चाहता है। अशोक गहलोत इस खांचे में बिल्कुल फिट बैठते हैं।
गहलोत क्यों पीछे हट रहे हैं
1. उल्हें राजस्थान छोड़ना पड़ेगा और गृह राज्य में पायलट गुट हावी होगा। गहलोत यही नहीं चाहते हैं।
2. कांग्रेस अध्यक्ष पद एक तरह से कांटो का ताज है। कांग्रेस एक के बाद एक कई चुनाव कांग्रेस हार चुकी है। ऐसे में पार्टी की बागडोर संभालना गहलोत की राजनीति के लिए खराब हो सकता है।
3. राजस्थान के मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत स्वतंत्र होकर फैसले लेते आए हैं। सत्ता में जब नहीं थे, तब भी बतौर नेता वह खुलकर अपने फैसले ले रहे थे। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने के बाद वह ऐसा नहीं कर पाएंगे।