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महर्षि दधीचि जयंती पर उनके त्याग को किया याद

  1. कुचेरा के बंशीवाले मंदिर में हुआ आयोजन

कुचेरा (रिपोर्टर महबूब खोखर)। छोटा बाजार के बंशीवाले मंदिर में महर्षि दधीचि जयंती मनाई गई। इस अवसर पर पंडित सत्यनारायण गार्ड ने महर्षि दधीचि के जीवनकाल की व्याख्या की और बताया कि पुराणों में भी दधीचि ऋषि का उल्लेख मिलता है। वे एक महान तपस्वी ऋषि थे। उनके पिता का नाम अथर्वा, माता का नाम चित्ति, पत्नी का नाम गभस्तिनी और पुत्र का नाम पिप्पलाद ऋषि था। कुछ जगहों पर इनकी पत्नी का नाम शांति बताया गया है, जो कर्दम ऋषि की पुत्री थीं। दधीची जंयती भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। महर्षि दधीचि ने वज्र के लिए अपनी हड्डियों का दान देने वाले महान संत दधीचि की रीढ़ की हड्डी से एक हथियार बनाया गया था, जिसका नाम वज्र रखा गया। वृत्रासुर एक शक्तिशाली असुर था, जिसने देवताओं के नगरों पर कई बार आक्रमण करके उनकी नाक में दम कर रखा था। अंत में इन्द्र ने मोर्चा संभाला और उससे उनका परस्पर घोर युद्ध हुआ, जिसमें वृत्रासुर का वध हुआ। इन्द्र के इस वीरतापूर्ण कार्य के कारण चारों ओर उनकी जय-जयकार और प्रशंसा होने लगी थी। कहते हैं कि बची हुई हड्डियों से और भी हथियार बने थे। उन महान त्यागी महर्षि दधिची की जयंती मंदिर परिसर में मनाई गई, जिसमें महेश दाधीच, बसन्त, सुरेश, पंडित सत्यनारायण रिटायर गार्ड, रामकिशोर, हेमंत कुमार, दिलीप, वासुदेव, देवेन्द्र काकडा, पवन, ललित, रोशन, ज्ञानेश्वर, गौरव आदि के साथ महिला मंडल ने भी भाग लिया।

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