युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने आरम्भ की भगवती सूत्र का व्याख्यान, ‘नवकार महामंत्र’ को किया व्याख्यायित
छापर (चूरू)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण 32 आगमों में सबसे बड़े आगम भगवती सूत्र के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करने का क्रम प्रारम्भ किया तो वहीं, कालूयशोविलास के संगान के साथ स्थानीय भाषा में उसके व्याख्यान का क्रम प्रारम्भ कर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
शुक्रवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने भगवती सूत्र के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि 32 आगमों में सबसे बड़ा भगवती सूत्र आगम है। इसका पहला सूत्र नवकार मंत्र है। वर्तमान में इसके पांच पद्य प्रचलन में हैं। नवकार मंत्र को मंगल भी माना गया है। पाठ के आरम्भ में मंगल की कामना की गई है। कोई कार्य सकुशल सम्पन्न हो, उसमें कोई बाधा-विघ्न न आए, इसके लिए मंगल की कामना होती है। अध्यात्म व धार्मिक जगत ही नहीं गृहस्थ जीवन में भी नमस्कार, प्रणाम की परंपरा है। यह मंगल का भी सूचक है। घर से निकलते वक्त अथवा लम्बे सयम बाद मिलने पर प्रणाम करना, नमस्कार करना, अभिवादन करने का क्रम होता है।
धर्म के क्षेत्र में अर्हतों से बड़ा कोई नहीं होता। वे ज्ञान प्रदाता, मार्गदर्शक होते हैं। प्रथम पद्य में अर्हतों को नमस्कार किया गया है। अर्हत तीर्थंकर तो हमारे पथप्रदर्शक होते हैं। अर्हत जो केवलज्ञानी होते हैं, उनसे जीवन का मार्ग प्राप्त होता है। इसके दूसरे पद्य में आठ कर्मों से मुक्त सिद्ध शुद्ध आत्माओं को नमस्कार किया गया है। वे कभी जन्म नहीं लेते। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार मोक्ष गई आत्मा पुनः जन्म नहीं लेती। साधु, गृहस्थ, पुरुष अथवा महिला कोई भी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इसके तीसरे पद्य में आचार्य को नमस्कार किया गया है। आचार्य इन पांच पद्यों के मध्य में मानों ऊपर के दो कल्याण के लिए और नीचे के दो आचार्यों की सेवा के लिए होते हैं। तीर्थंकरों की अनुपस्थिति में आचार्यों का बहुत महत्त्व होता है। क्योंकि वे ही आचार्य और तीर्थंकर के प्रतिनिधि के रूप में होते हैं। चतुर्थ पद्य में उपाध्याय को नमस्कार किया गया है। वर्तमान समय में कोई उपाध्याय नहीं तो उनके स्थान पर आचार्य ही अध्ययन-अध्यापन का कार्य कराने वाले होते हैं। संभवतः एक बार भिक्षु स्वामी ने सात पदों पर मैं अकेला कार्य करता हूं। इसके अंतिम पद्य में लोक के समस्त साधुओं को नमस्कार किया गया है। इस प्रकार भगवती सूत्र के प्रथम सूक्त यों मंगल में रूप में व्याख्यायित किया गया है।
आचार्यश्री ने आचार्य कालूगणी की जन्मधरा पर ‘कालूयशोविलास’ के रूप में उपरला बखान का क्रम प्रारम्भ किया और इसके पद्यों का संगान किया। आचार्यश्री ने संगान करते हुए इसे स्थानीय भाषा में व्याख्यायित किया तो समुपस्थित जनमेदिनी मानों मंत्रमुग्ध-सी नजर आ रही थी। श्रीमुख से गायन और उसका मारवाड़ी भाषा में अनुवादन लोगों के मन प्रफुल्लित बना रहा था। आचार्यश्री ने कहा कि छापर पूज्य कालूगणी की जन्मस्थली है। उनके सुशिष्य परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित यह काव्य है।
आचार्यश्री के मंगल व्याख्यान के उपरान्त साध्वीवर्याजी का भी उद्बोधन हुआ। कार्यक्रम में छापर चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री माणकचंद नाहटा, महामंत्री श्री नरेन्द्रकुमार नाहटा व वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री विजयसिंह सेठिया ने पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में फड़द और पावस प्रवास की प्रति समर्पित की। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया।