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मानसून के दौरान पशुओ के पेट में कीड़े एक बड़ी समस्या,
पशुपालक इस समस्या से कैसे निजात पाए
लेखकः – डॉ. तपेंद्र कुमार , डॉ. माया मेहरा, डॉ. चांदनी जावा
मानसून के समय में वातावरण में आद्र्रता बढ़ जाती है। पशुशाला के अंदर गरमी, जानवरों का मलमूत्र और निस्कासित हवा में जीवाणुओं की संख्या बडऩे से पशुओं में विभिन्न संक्रामक बीमारियों की संभावना बड़ जाती है। वातावरण में आद्र्रता की अधिकता होने के कारण पशुओं की आंतरिक रोगों से लडऩे की क्षमता पर भी असर पड़ता है परिणामस्वरूप पशु अनेक रोगों से ग्रसित हो जाता हैं। इसी मौसम के दौरान परजीवियों की संख्या में भी अत्यधिक वृद्धि हो जाती है जिससे पशुओं में परजीवी रोग भी हो सकते हैं। । ऐसे में विशेषकर दूध देने वाले पशुओं को लेकर पशुपालक को काफी सचेत रहने की जरूरत है, क्योंकि पशु रोग ग्रसित हो जाए तो दूध की मात्रा पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। बीमार पशु में दूध उत्पादन की क्षमता कम हो जाती है और पशुओं में बांझपन की भी समस्या आती है क्योंकि जिन पशुओं में कीड़ें होते है उनका कम गर्भ ठहरता है या गिर जाता है।इससे परिणामस्वरूप पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
परजीवियों का प्रकोप बारिश के मौसम में प्राय: परजीवियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो जाती हैं। जिससे पशुओं को शारीरिक व्याधियों का सामना करना पड़ता हैं। परजीवी प्राय: दो प्रकार के होते हैं –
परजीवी – जैसे पेट के कीड़े, कृमि आदि
बाह्य जीवी – चीचड़, खलील, जूं आदि|
पशु के पेट में कीड़ें होने के लक्षण
• अगर पशु मिट्टी खाने लगे। • पशु सुस्त और कमजोर दिखता है।
• मैटमेले रंग के बदबूदार दस्त आते है। • गोबर में काला खून व कीड़े दिखना।
• पशु के चारा खाते हुए भी शरीर की वृद्धि कम और पेट का बढ़ जाना
• पशु में खून की कमी होना। • अचानक दूध कम कर देना।
• गर्भधारण में परेशानी।
महत्वपूर्ण बातें
• बारिश के मौसम में पशुओं को तालाब के किनारे न लेकर जाएं। इसके साथ-साथ तालाब की किनारों वाली घास न खिलाएं, क्योंकि ये घास कीड़ों के लार्वा से ग्रस्त होती है। जो कि पेट में जाकर कीड़े बन जाते हैं और अनेक विकार उत्पन्न करते हैं।
• हर तीन महीने पर पशुओं को पेट के कीड़ें (कृमिनाशन) की दवा दें।
• पशुओं के गोबर की जांच कराने के बाद ही पेट के कीड़ों की दवाई दें। पशु के गोबर को एक छोटी डिब्बी में इकट्ठा करें।
• बीमार और कमजोर पशुओं को पशुचिकित्सक की सलाह लेकर ही कृमिनाशन की दवा दें।
• पशुओं का टीकाकरण करवाने से पहले पशुओं को आंत के कीड़ों की दवाई ज़रूर दे । टीकाकरण के बाद दवा न दें।
• अगर टीकाकरण के बाद दे रहे तो तुरंत न देकर 15 दिन के बाद ही दवा खिलाएं।
• पशुचिकित्सक की सलाह से ही कृमिनाशन की दवा दें।
• बार-बार एक ही कृमिनाशन का न दें। हर तीन महीनें पर अलग-अलग कृमिनाशन का दवा का प्रयोग करें।
• ग्याभिन पशुओं को कृमिनाशन न दें। अगर गर्भावस्था मे कृमिनाशन का प्रयोग कर रहे है तो उसको फेनसेफ आई दें। क्योंकि यह दवा ग्याभिन अवस्था के पशुओं को दी जा सकती है।
• पशुओ को शुद्ध चारा एवं दाना खिलाना चाहिए।
• साफ पानी पिलाए।
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