उज्जैन (ऋषिराज शर्मा)। विक्रमादित्य शोध पीठ उज्जैन, विक्रम विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में विक्रमादित्य युगीन बेहतर भारत विषय पर तीन दिवसीय शोध संगोष्ठी का शुभारंभ रविवार को विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति अखिलेश कुमार पांडे, इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव डॉ. बालमुकुंद जी की उपस्थिति में किया गया।
इस अवसर पर प्राचीन भारतीय इतिहास अध्ययन शाला विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन और काशी विश्वविद्यालय हिंदू विश्वविद्यालय बनारस के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सीताराम दुबे ने भारत में विक्रमादित्य परंपरा और संवत प्रवर्तक विक्रमादित्य युगीन वृहत्तर भारत के साहित्यिक प्रमाणों और इतिहास लेखन पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि विक्रमादित्य नामधारी विक्रम संवत प्रवर्तक ही उज्जैन का राजा है और उसके अस्तित्व के प्रमाण पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होते हैं। मुद्रा अंकन के माध्यम से प्राप्त साक्षी से विक्रमादित्य का उल्लेख हमको प्राप्त होता है।
इस अवसर पर भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय सचिव डॉ. बालमुकुंद जी ने भारतीय परंपराओं को रेखांकित करते हुए विक्रमादित्य और भरतरी के प्रसंगों का उल्लेख किया आपने स्पष्ट किया कि बचपन से मुझे मेरे माता-पिता ने विक्रम संवत के प्रवर्तक उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के बारे में हमें कथानक के माध्यम से जो जानकारियां दी थी। वह प्रमाणित है और हम माता-पिता के ज्ञान को एक साक्ष्य के रूप में स्वीकार करते हैं। आंचलिक इतिहास को प्रकाशित करना इतिहास संकलन योजना का संकल्प है। भारतीय संस्कृति और संस्कृति के पुरोधा विद्वानों को इस माध्यम से प्रकाशित करना हमारा उद्देश्य रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. अखिलेश कुमार पांडे ने अपने उद्बोधन में विक्रम विश्वविद्यालय में प्राचीन विषयों के शोध की विभिन्न संभावनाओं को प्रकाशित करते हुए स्पष्ट किया कि विक्रमादित्य और उनकी काल से संबंधित शोध को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है और विक्रम विश्वविद्यालय उसमें प्रयासरत है।
कार्यक्रम का संचालन कुलसचिव डॉ. प्रशांत पुराणिक ने करते हुए बताया की तीन दिवसीय संगोष्ठी में विक्रमादित्य कालीन सामाजिक व्यवस्था आर्थिक स्थिति स्थापत्य धर्म लोक कल्याणकारी राज्य विक्रमादित्य की न्याय व्यवस्था प्रशासन विक्रमादित्य और बेताल पच्चीसी तत्कालीन साहित्य सैनी व्यवस्था कालगणना और लोक गाथाओं लोक संस्कृति और वाचिक परंपरा में विक्रमादित्य विषयों को लेकर तीन दिवसीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए डॉ. रमन सोलंकी ने विक्रमादित्य संबंधित साहित्य और पक्षियों को रेखांकित करते हुए बताया कि आज हम डरता के साथ यह कह सकते हैं कि 57 ईस्वी पूर्व प्रारंभ हुए गलत या मालव या विक्रम संवत के प्रवर्तक शकारि विक्रमादित्य उज्जैनी के शासक थे।
भ्रमण सोलंकी द्वारा 2009 से लेकर अभी तक महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ उज्जैनी के द्वारा विक्रमादित्य संबंधी किए गए प्रयासों पर प्रकाश डाला गया।
इस अवसर पर प्रो. सतीश चंद्र मित्तल सम्मान 2022 का प्रारंभ डॉ. बालमुकुंद जी के सम्मान के साथ प्रारंभ किया गया। अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति के क्षेत्रीय संगठन सचिव डॉ. हर्षवर्धन सिंह तोमर, भगवतीलाल राजपुरोहित डॉ. रंजना शर्मा, डॉ. नारायण व्यास डॉ. आरसी ठाकुर और मरणोपरांत रामकुमार अहिरवार तथा डॉ. जगन्नाथ दुबे को यह सम्मान प्रदान किया गया।
संगोष्ठी में भारत के 8 राज्यों के लगभग 40 प्रतिभागी और विक्रम विश्वविद्यालय के विद्वान प्राध्यापक और शोधार्थियों ने भागीदारी की। संगोष्ठी में विक्रम विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद सदस्य राजेश सिंह कुशवाह ने विक्रमादित्य की नाट्य परंपरा प्रकाश डाला।
महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक श्री राम तिवारी ने बताया कि इस प्रकार की संगोष्ठी आगरा में पहली बार की गई थी यह दूसरा प्रयास है। साथ ही संपूर्ण भारत में विक्रमादित्य के जनजागरण और उनके कार्यों को रेखांकित करते हुए इस प्रकार की संगोष्ठी आयोजित की जाएगी। कार्यक्रम में आगरा, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, और मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों द्वारा भागीदारी की जा रही है।
प्रथम दिवस पर उद्घाटन के पश्चात 10 विशेषज्ञों द्वारा विक्रमादित्य से संबंधित विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखे गए। कार्यक्रम में प्रो. शैलेंद्र शर्मा, प्रो. एसपी सिंह रविंद्र भारद्वाज, डॉ हिम्मत लाल शर्मा, डॉ. अजय शर्मा, डॉ. पीडी जगताप, प्रो. प्रेम शंकर, डॉ. ध्रुवेंद्र सिंह जोधा, डॉ. हरीसिंह कुशवाह, सब के पांडे, डॉ. पूरन सहगल, डॉ. अजय परमार, डॉ. अनीता, डॉ. मंजू यादव डॉ. मयूरी जैन, डॉ. धीरेंद्र सोलंकी, डॉ. प्रीति पांडे, डॉ. अंजना सिंह गौर, डॉ. नीतीश मिश्रा छत्तीसगढ़, डॉ. हेमंत लोदवाल डॉ. रितेश लोट, आशीष नाटानी, डॉ. सर्वेश्वर शर्मा, डॉ. हिम्मत लाल शर्मा सहित अनेक विद्वान उपस्थित थे।
स्रोत- श्री शक्ति सिंह परमार