मोहनीय कर्मों के क्षय के लिए अणुव्रत को बताया माध्यम
तेरापंथ के ग्यारहवें अनुशास्ता का श्री डूंगरगढ में मंगल प्रवेश, रहेगा तीन दिवसीय प्रवास
श्रीडूंगरगढ़ (बीकानेर)। यहां तेरापंथ भवन में बने प्रवचन पंडाल में आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि दुनिया में कभी-कभी युद्ध की स्थिति भी बन जाती है। कभी परिग्रह के लिए, तो कभी न्याय के लिए, तो कभी अन्य कारणों से युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। शास्त्र में भी युद्ध की बात बताई गई है, किन्तु यह युद्ध किसी बाहरी शत्रु से नहीं, बल्कि स्वयं से, स्वयं की आत्मा से युद्ध की बात बताई गई है। किसी युद्ध में कोई दस लाख लोगों को भी जीत ले तो उसकी विजय ही होती है, किन्तु यदि कोई आंतरिक युद्ध में अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर ले तो यह उसकी परम विजय हो जाती है। अपनी आत्मा को शुद्ध, बुद्ध और सिद्ध बनाने के लिए आत्मा पर आठ कर्मों से युक्त आवरण को हटाने के लिए युद्ध करने का प्रयास करना चाहिए। इनमें भी सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाने वाला मोहनीय कर्म होता है।
संसारी अवस्था की आत्मा मोहनीय कर्मों के कारण अशुद्ध, केवल ज्ञान न होने के कारण अबुद्ध और राग-द्वेष से युक्त होने के कारण आसिद्ध है। शुद्धता, बुद्धता और सिद्धता की प्राप्ति के लिए आदमी को मोहनीय कर्मों के साथ संघर्ष करना पड़ता है। संघर्ष करने के लिए उपशम, मृदुता, आर्जव-मार्दव आदि के माध्यम से राग-द्वेष को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्मों के क्षय के लिए अणुव्रत भी एक माध्यम है। आचार्यश्री ने परम पूज्य आचार्य तुलसी के अणुव्रत आंदोलन को भी एक हथियार बताया जो आत्मजयी बनने की दिशा में प्रयोग किया जा सकता है।
आचार्यश्री ने कहा कि आज अपने गुरुदेव के प्रथम दर्शन वाले क्षेत्र में आया हूं। यहां साध्वियों का सेवाकेन्द्र भी है जो आने का एक कारण बन जाता है। यहां के लोगों में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की चेतना बनी रहे, लोगों के भीतर धार्मिकता का विकास होता रहे।
आचार्यश्री के स्वागत में आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति श्रीडूंगरगढ़ के अध्यक्ष जतन पारख, तेरापंथी सभा के अध्यक्ष विजयराज सेठिया, आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ साधना संस्थान के अध्यक्ष भीखमचंद पुगलिया, जैन विश्वभारती के वाइस चांसलर प्रो. बच्छराज दूगड़ व तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन पारख ने अपनी भावनाएं व्यक्त की।
इन संस्थाओं ने किया स्वागत
समस्त तेरापंथ समाज ने गीत के माध्यम से आराध्य के श्रीचरणों की अभिवंदना की। आचार्यश्री महाश्रमण के श्रीडूंगरगढ़ पदार्पण के संदर्भ में नगर व मार्ग में श्रीडूंगरगढ़ के लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक सामाजिक संस्थाओं ने आचार्यश्री के स्वागत में सोत्साह संभागी बन रहे थे। सभी संस्थाओं के सदस्यों को आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। इनमें मुख्य रूप से राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, संस्कृत विद्यालय, लायंस क्लब श्रीडूंगरगढ़ यूनिक, नागरिक विकास परिषद, महापुरुष समारोह समिति, नगरपालिका मण्डल, लायंस क्लब श्रीडूंगरगढ़ ग्रेटर, सेसमू विद्यालय, सेवा भारती, विश्वकर्मा समाज, सिंधी समाज, कुंडिया सारस्वत समाज, मुस्लिम समाज, बालभारती विद्यालय, आपणो गांव सेवा समिति, वाल्मिकी समाज, माहेश्वरी समाज, स्वर्णकार समाज, श्रीडूंगरगढ़ पुस्तकालय आदि अनेक संस्था, संगठन और विद्यालय से जुड़े हुए लोग शामिल थे।
स्वागत और जुलूस की भव्यता
गूंजता जयघोष, उमड़ता श्रद्धा का ज्वार, रंग-बिरंगे गणवेशों से सज्जित लोग, बैनर-होर्डिंग्स, पोस्टर से पटे मार्ग, गलियां व दीवारें, जगह-जगह बने तोरण द्वार, सुमधुर ध्वनि से लोगों के आंतरिक उल्लास को बढ़ाता वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनियां श्रीडूंगरगढ़ के वातावरण को नवीनता प्रदान कर रहा था। लगभग आठ वर्षों बाद जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण अपने त्रिदिवसीय प्रवास के लिए अपनी धवल सेना के संग श्री डूंगरगढ पधारे। श्रद्धालु अपने आराध्य की अगवानी के लिए सूर्योदय के पहले ही लखासर पहुंच गए और लोगों का आना जारी रहा। निर्धारित समय पर आचार्यश्री ने लखासर से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग में लोगों को आशीष देते आचार्यश्री श्रीडूंगरगढ़ के निकट आते गए, तो श्रद्धालुओं की संख्या और जोश भी बढ़ता जा रहा था। मंत्रीमुनि श्री सुमेरमलजी (लाडनूं) से दीक्षा प्राप्त करने के बाद श्रीडूंगरगढ़ में ही वर्तमान आचार्य महाश्रमण ने मुनि मुदित के रूप में तत्कालीन आचार्यश्री तुलसी के प्रथम दर्शन किए थे।
लगभग सोलह किलोमीटर के प्रलम्ब विहार कर आचार्यश्री जैसे श्रीडूंगरगढ़ नगर की सीमा में प्रविष्ट हुए तो मानों आस्था ज्वार लहरा उठा। मार्ग पूरी तरह जनाकीर्ण बन गया और पूरा वातावरण जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। उपस्थित सभी जन मानवता के मसीहा की एक झलक पाने को आतुर थे। महावीर कीर्ति स्तम्भ से आचार्यश्री ने नगर में मंगल प्रवेश किया। नगर की गलियां व मार्ग श्रद्धालुओं से भरे थे। सभी पर आशीष-वृष्टि करते हुए आचार्यश्री साध्वियों के सेवाकेन्द्र में पधारे और वहां कुछ क्षण विराजमान हुए। सेवाग्राही और सेवादायी साध्वियों की सार-संभाल करने के उपरान्त आचार्यश्री पुनः नगर में गतिमान हुए। सभी के श्रद्धाभावों को स्वीकार करते स्थान-स्थान पर विभिन्न समाज व वर्गों के लोग भी सोत्साह आचार्यश्री की प्रतीक्षा में खड़े थे। आचार्यश्री उनके समक्ष ठहरकर उन्हें मंगल आशीष व पावन प्रेरणा प्रदान करते-करते तेरापंथ भवन में पधारे।