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अच्छे पारिवारिक संस्कारों और योग्य गुरू मिले तो लोहा भी स्वर्ण बन सकता है- आचार्यश्री चैत्यसागर, डेह में पद्मप्रभु चैत्यालय के पास मां इंदुमती, मां अमरमती तथा मां धरणीमती की समाधियों पर छतरियों की प्रतिष्ठा कार्यक्रम

अच्छे पारिवारिक संस्कारों और योग्य गुरू मिले तो लोहा भी स्वर्ण बन सकता है- आचार्यश्री चैत्यसागर,

डेह में पद्मप्रभु चैत्यालय के पास मां इंदुमती, मां अमरमती तथा मां धरणीमती की समाधियों पर छतरियों की प्रतिष्ठा कार्यक्रम

पवन पहाड़िया। डेह (kalamkala.in)। डेह के पद्मप्रभु चैत्यालय के पास मां इंदुमती, मां अमरमती तथा मां धरणीमती की समाधियों पर बनी छतरियों की प्रतिष्ठा पर आयोजित समारोह में समाधियों को पूजनीय बनाने के कार्यक्रम में आचार्य चैत्यसागर ने कहा कि आज अपन यहां जिनकी समाधियों पर बनी छतरियों को प्रतिष्ठित करने के लिए इकठ्ठे हुए हैं। यदि इनको कोई अच्छा गुरु नहीं मिलता, तो इन्हें दुनियां नहीं पूजती। साधारण परिवार में जन्मी इन विभूतियों को आज सकल जैन समाज पूज रहा है, यह प्रबल पुन्यवानीं, परिवार से मिले अच्छे संस्कार व योग्य गुरु का ही तो प्रभाव है। दुनियां के करोड़ों जीव आते हैं-जाते है, कौन किसको याद करता है, पर कुछ जीव ऐसे होते हैं, जिन्हें पीढियां पूजती हैं। आचार्य चैत्यसागर ने अपने सम्बोधन में आगे कहा कि जीव का सम्यक दृष्टि होना भी पुण्यवानी की बात है, पर संस्कार देना तो माता-पिता के हाथ है। जिन परिवारों में धार्मिक कार्य होना, नित्य देव दर्शन करना, छोटे बड़ों के साथ कैसे व्यवहार करना आदि संस्कार  बच्चों को दिए जाते हैं, उस घर की पीढ़ी कभी खोटी नहीं निकल सकती। अच्छा गुरु मिल जाए तो लोहे को भी स्वर्ण कर सकता है।

धर्मेन्द्रकुमार जैन के कार्यों की सराहना की

आचार्य श्री ने बताया कि डेह में जन्में श्रेष्ठिजन हरकचंद सेठी के पुत्र निर्मलकुमार सेठी ने व्यापार करने के साथ ही अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के अध्यक्ष पद को लगातार चालीस वर्षों तक सम्भालते हुए जैन धर्म के उन्नयन हित निस्वार्थ से जो कार्य किया, वो स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। साथ ही उनके पुत्र धर्मेन्द्रकुमार सेठी ने जो यह कार्य कर इन महान विभूतियों पर छतरियां व गार्डन निर्माण करवाया है, इससे सिद्ध हो गया है कि अपने पिता के नक्शेकदम में वह कहीं पीछे नहीं है। वर्तमान में धर्मेन्द्रकुमार सेठी सम्पूर्ण उत्तरप्रदेश फ्लोर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष है, बहुत बड़ी जिम्मेदारी व बड़े बिजनेसमैन होते हुए भी अपनी जन्म भूमि को तीर्थ का रूप देने के लिए इतनी चिंता करना व समय निकालना बहुत बड़ी बात है।

वैधव्य के बावजूद दीक्षा लेकर जैन जगत की इंदुमती बनी 

ज्ञात रहे कि डेह के मूलचंद सेठी की पत्नी बाल्यावस्था में ही वैधव्य को प्राप्त हो गई थी, पर उन्होंने विधि के विधान को मान आचार्य गुरुवर के साथ दीक्षा लेकर जीवन बिताने के साथ वे इतनी ज्ञानवान बनी कि विधवा भंवरी मां जैन जगत की इंदुमती बन गई तथा अपने सान्निध्य में ही मैनसर में जन्मी बाल विधवा बेटी को मांज कर मां सुपाश्र्वमती बना दिया। आज इंदुमती, अमरमती व धरणीमती माता की तीन छतरियों व गार्डन के निर्माण से डेह की भूमि को तीर्थ स्थान बनाने में जितना योगदान धर्मेन्द्रकुमार सेठी ने दिया, उसकी सभी उपस्थित श्रावकांे ने खब प्रशंसा की। इस कार्यक्रम में जयपुर से वास्तुविज्ञ राजकुमार कोठारी, सुभाषचन्द पाटनी, अमेरिका प्रवासी धर्मेंद्र सेठी के बहन-बहनोई सहित नागौर, सुजानगढ़, ग्वालियर के अलावा डेह के सकल जैन अजैन श्रेष्ठी जन भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन पण्डित जिनेश भैया ने किया।

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