गहरे पानी पैठ-4-
क्या है लाडनूं आर्य समाज के चुनावों की असलियत? पर्दे के पीछे छिपी घिनौनी साजिश,
फर्जी सदस्यों का सहारा, आर्य जनों ने किया किनारा, कौन करेगा उद्धार?
जिसके कंधे का किया कब्जे में उपयोग, उसी को हटाया सबसे पहले, ओम मुनि उर्फ ओमदास वानप्रस्थी को दूध से मक्खी की तरह निकालने का गहरा षड्यंत्र
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। आर्य समाज संस्थान लाडनूं के हाल ही में करवाए गए तथाकथित चुनाव और कार्यकारिणी का गठन की वैधानिकता पर सवाल खड़े हो चुके हैं। इसके साथ ही और भी अनेक सवाल वातावरण में लहरा रहे हैं, जो भारी संदेह, नियत की हेराफेरी, पदलिप्सा, कब्जा करने की मंशा आदि की ओर इंगित करते हैं। हाल ही में जो दावा एक पक्ष कर रहा है कि द्विवार्षिक चुनावों में अध्यक्ष नोपाराम आर्य के नेतृत्व में तीन पदों के चुनाव के बाद कार्यकारिणी बना ली गई है, उसमें हैरत करने वाली बात यह है कि संस्थान में दो कार्यकाल तक अध्यक्ष रह चुके ओम मुनि उर्फ ओमदास आर्य वानप्रस्थी को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। उनका इस कार्यकारिणी में कहीं नाम तक नहीं है।
निरस्त बैठक व पुलिस के निर्देशों के बावजूद कैसे चुनाव
हकीकत यह भी है कि इस चुनाव के लिए बुलाई गई बैठक को ओमदास ने निरस्त कर दिया था। लाडनूं पुलिस थाने के अधिकारियों ने भी यह बैठक नहीं किए जाने और आर्य समाज भवन में नहीं घुसने के लिए चुनाव अधिकारी को निर्देशित किया था, इसके बावजूद फर्जी सदस्यों के माध्यम से संस्थान हथियाने की चेष्टा के तहत प्रेस नोट जारी कर चुनाव होना घोषित कर दिया गया।
फर्जी सदस्यों के आरोपों का निस्तारण क्यों नहीं?
आर्य समाज संस्थान के अध्यक्ष ओमदास ने सदस्यों की वैधानिकता पर सवाल खड़े किए थे। अध्यक्ष द्वारा लगाए गए किसी भी आरोप की जांच करने और उनकी संतुष्टि करने के बजाय निरस्त बैठक की कार्रवाई दिखा कर चुनाव करना बड़ा संदेह पैदा करता है। आर्य समाज से प्रतिबद्ध सदस्य ही चुनाव में भाग ले सकते हैं। जो पहली बार आर्य समाज का सदस्य बनता है या जिसने साप्ताहिक यज्ञ-सत्संग में अपनी निर्धारित उपस्थिति पूर्ण नहीं की होती है, उसे चुनाव में भाग लेने का कोई अधिकार नहीं होता है। लेकिन आर्य समाज के सौ सालों से चले आ रहे नियमों, कायदों और मर्यादाओं को ताक पर रख कर संस्थान के नाम से मनमानी करना आर्यसमाज का मखौल बना कर रख देना है। इस पर रोक भी जरूरी है।
क्या रही है अब तक ओम मुनि की भूमिका
यहां यह भी गौरतलब है कि ओम मुनि या ओमदास वानप्रस्थी ने अपना घर-बार त्याग कर आर्य समाज को समर्पित कर रखा है। वे पहली बार आर्यसमाज में प्रतिदिन हवन करते हैं। लोग आकर्षित भी हो रहे हैं। भवन की स्वच्छता और वैदिक मान्यताओं के प्रसार में वे सहयोगी बने हैं। दो-दो बार अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उन्हें दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंकने के पीछे गहरी साज़िश का आभास होता है। आर्य समाज पर कब्जा करने के लिए आर्यसमाज संस्थान का गठन किया गया था और ओमदास को अध्यक्ष बना कर उनके कंधे पर रख कर बंदूक चलाई गई। उनके कंधे के इस्तेमाल के बाद अब उनकी जरूरत नहीं रही, तो उन्हें हटाने की मुहिम छेड़ दी गई। ओमदास ने जयपुर, नागौर, पुलिस थानों, विधायक और सभी जगह घूम कर लिखित व मौखिक गुहार के बाद पूरे प्लान के साथ आखिरकार एक अपराध किया गया और आर्य समाज के ताले तोड़ कर अंदर घुसे और कब्जा किया गया। इन सबमें अग्रणी ओमदास स्वयं ही रहे थे। इस षड्यंत्र के पीछे छिपे लोगों ने जिस सीढ़ी से चढ़े, उसे सबसे पहले हटाने के लिए जुट गए और उसी की क्रियान्विति है कि अब ओमदास को खुद को भी दरकिनार कर दिया जा रहा है।
आर्य समाज को चाहिए अब अपना उद्धार
अब इस आर्य समाज को केवल फर्जी सदस्यों का सहारा रहा है, फर्जीवाड़े का सहारा रहा है। असली आर्यजन किनारा कर चुके हैं, क्योंकि आज की व्यस्त जिंदगी में झमेलों से सज्जन लोग दूर ही रहना चाहते हैं। लेकिन जहां झमेले होते हैं, वहां आएदिन बड़े बखेड़े भी खड़े होते हैं। आज लाडनूं की सम्पूर्ण आर्य समाज को शुद्धिकरण की आवश्यकता बन चुकी है। जरूरत है कि सभी सज्जन लोग अब आगे आएं और आर्य समाज की अस्मिता को बचाएं। लाडनूं की एक सौ साल पुरानी आर्य समाज के गरिमा को ध्वंस्त किया जा रहा है। यह समस्त आर्यों को मान-सम्मान को ठेस लगने वाली स्थिति है। अभी सब मिलकर इसे दूर करेंगे, तभी आर्य समाज का उद्धार होगा। समूचे राष्ट्र और समाज का उद्धार करने वाली आर्य समाज आप सभी से अपना उद्धार मांग रही है।