बेटियों के जन्म पर रोने वाले तथा उन्हें बोझ मानने वाले लोग नाथावत परिवार से सीखें,
अपनी पांचों बेटियों को पढाया, संस्कारित किया, आज 4 बेटियां बीएड हैं तो 1 बेटी एमए
डेह (रिपोर्ट- पवन पहाड़िया)। कहते हैं हौसले बुलंद हो तो चट्टानें भी रोड़ा बनने की बजाय राह बन कर साथ निभाने लग जाती है। जो इंसान किसी कार्य को करने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर कमर कस लेता है, वह फिर पीछे मुड़कर नहीं देखता है। जितनी चुनौतियां आती है, वह उतना ही मजबूत होता जाता है। राह की बाधाएं उसके लिए प्रेरणा बनती जाती है। ठीक ऐसा ही उदाहरण जायल तहसील के गांव खेराट में देखने को मिलता है। यहीं के जाए-जन्में नाथूसिंह नाथावत का परिवार बालिका शिक्षा एवं नारी सशक्तीकरण हेतु संकल्पित जीवन का एक अनुपम उदाहरण है। यद्यपि आज सभी परिवारों में बालिका शिक्षा हेतु जागृति आई है, किंतु जिस परिवेश एवं परिस्थिति में नाथावत परिवार ने यह कार्य किया है, वह अनुकरणीय एवं उल्लेखनीय है।
खुद पढाई की, पर नौकरी के बजाय व्यवसाय को चुना
प्रथम तो छोटा गांव, फिर जाति से राजपूत, फिर कोई बड़े व्यापारी-उद्यमी नहीं होना, एक साधारण किसान के घर जाए-जन्में नाथूसिंह ने अपनी सकारात्मक सोच के चलते अपनी पांचों बेटियों को उच्च शिक्षा संपन्न एवं सक्षम बनाया है तथा आज भी उनके भविष्य को सुरक्षित एवं सशक्त बनाने हेतु प्रयत्नरत हैं। स्वयं नाथूसिंह ने अपनी मेहनत एवं पिताजी के सहयोग से बी. कॉम. तक की शिक्षा बांगड़ कॉलेज डीडवाना से उतीर्ण की तथा नौकरी की तरफ ध्यान नहीं देकर कोई छोटा-मोटा व्यापार करने की ठानी, जबकि आज 59 वर्षीय नाथूसिंह उस समय किसी भी नौकरी के लिए प्रयत्न करते तो कोई न कोई अच्छी नौकरी अवश्य मिल जाती। उस समय आज से लगभग चालीस वर्ष पहले छोटे गांव में कोई बिरला ही इस मुकाम को हासिल करता था।
नाथूसिंह ने छोटा मोटा व्यापार अपने जन्म स्थान पर ही शुरू किया तथा अपनी व्यवहार कुशलता के बल पर अच्छी साख बनाई। इसी साख पर उनकी शादी श्रीमती मनोहरकंवर से हुई, जिन्होंने स्नातक (कला) प्रथम वर्ष तक का अध्ययन जोधपुर से किया था। दोनों पढ़े-लिखे होने से अच्छी सोच, व्यवहारिक व सामंजस्य की भावना से परिपूर्ण जोड़ी ने पारस्परिक विमर्श से सारे पारिवारिक फैसले लेने शुरु किए और सबसे अधिक ध्यान शिक्षा पर दिया। यद्यपि ‘छोटा परिवार, सुखी परिवार’ के सूत्र को इन्होंने नहीं अपनाया किन्तु परिवार के हर सदस्य की परवरिश को अपना कर्तव्य माना।
भगवान भी जब किसी की परीक्षा लेता है उसके धैर्य को अच्छी तरह परखता है। आपके गृहस्थ धर्म निभाते हुए कुल सात सन्तानें हुई, जिनमें पांच लड़कियां व दो लड़के हैं। दोनों पति-पत्नी के पढ़े-लिखे होने के कारण उन दोनों ने निर्णय लिया कि हम हमारी सन्तान को ग्रामीण रूढ़िवादिता से ऊपर उठकर पढा-लिखा कर सक्षम बनाएंगे। इसी बात पर कायम रहते इन्होंने बुजुर्गों के अन्धविश्वास के खिलाफ अपनी लड़कियों को पढ़ाने में ही अपना समय व धन लगाए रखा।
खेराट के राजपूत परिवार ने बेटियों को किया शिक्षित
अर्धांगिनी का सम्पूर्ण सहयोग मिलते रहने से नाथूसिंह ने परिवार चलाने के लिए देचू (जोधपुर) में सबमर्सिबल पम्प व एग्रीकल्चर पाइप का काम कर लिया। धीरे-धीरे पहली बेटी शिवानीकंवर ने 2022 में बीए, बीएड की उपाधि प्राप्त कर ली। उसी के पदचिह्नों पर चलते हुए छोटी बेटी दिव्याकंवर ने हाल ही में बीएड. पूर्ण कर ली। इनकी छोटी बहिनों नरेंद्र कंवर एवं रेणुका कंवर ने अभी बीएड में प्रवेश लिया हुआ है। पांचवी बहन मुकेशकंवर ने एमए की पढ़ाई कर अपनी बहनों को कामयाब बनाने के लिए पढ़ाई छोड़कर उन्हें सहयोग कर रही है। पांच बहनों के दो भाई मानवेन्द्रसिंह व गुरुवेंद्रसिंह क्रमशः दशवीं व सप्तमी में अध्ययन रत हैं।छोटे गांव खेराट के एक परिवार में पांच बच्चियों में से चार का बीएड करना अपने आप मे एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।
दहेज के बजाय बेटियों को सुयोग्य बनाने पर दिया ध्यान
हाल ही में श्रीमती मनोहरकंवर से जानना चाहा तो उन्होंने बताया, हालांकि हम साधारण परिवार से हैं तथा हमारे समाज मे शादी पर दहेज का बहुत ज्यादा चलन है, किन्तु हम इसके खिलाफ हैं। यद्यपि हर माता-पिता अपनी हैसियत से ज्यादा ही करते है तथा फिर भी गृहस्थी में भगवान करे, कोई भूचाल नहीं आये। बस, लड़की अपने पैरों पर खड़ी हो, तो उसे किसी का मोहताज नहीं होना पड़ता तथा आज के आर्थिक युग में ’एक अनार एवं सौ बीमार’ वाली कहावत को चरितार्थ करना किसी मूर्खता से कम नहीं है। दोनों पढ़े-लिखे हों तथा दोनों कमाएं, तो परिवार का जीवन-स्तर सुधरते समय नहीं लगता। बेटियों की माँ कहती है कि ‘हमने पढ़ाई के साथ साथ अपनी संतान को सामाजिक संस्कार भी दिए हैं, आज भी मेरी बड़ी बेटी दोनों बहनों के बीएड होने तक अध्ययन छोड़कर उन्हें कामयाब बनाने के लिए लगी हुई है।
नाथूसिंह ने बताया कि मैंने व मेरी श्रीमती ने मिलकर बेटियों को कामयाब बनाने के साथ संस्कारवान भी किया है, हमे गर्व है कि हमारी संस्कार-संपन्न बेटियां पांच घरों को रोशन करेगी, उस दिन हमारा सीना गर्व से चैड़ा हो जाएगा। बेटियों के जन्म पर रोने वाले तथा बेटियों को बोझ मानने वाले लोग नाथावत परिवार से सीखें तथा बेटियों को पढा-लिखा कर सक्षम बनाने का संकल्प लें।