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लाडनूं की विवादित सार्वजनिक किल्ला धर्मशाला को लेकर एडीजे कोर्ट ने दिया सम्पूर्ण परिसर स्टे आर्डर, आम नागरिकों की ओर से एसीजेएम के आदेश के विरूद्ध की गई थी अपील, एसीजेएम ने बिना सीमा क्षेत्रफल के मंदिरों की हद तक दिया था यथास्थिति आदेश

लाडनूं की विवादित सार्वजनिक किल्ला धर्मशाला को लेकर एडीजे कोर्ट ने दिया सम्पूर्ण परिसर स्टे आर्डर,

आम नागरिकों की ओर से एसीजेएम के आदेश के विरूद्ध की गई थी अपील, एसीजेएम ने बिना सीमा क्षेत्रफल के मंदिरों की हद तक दिया था यथास्थिति आदेश

लाडनूं (kalamkala.in)। यहां बस स्टेण्ड के पास स्थित बहुचर्चित सार्वजनिक सम्पति किल्ला धर्मशाला, मंदिर व शिवालय के सम्पूर्ण परिसर के संबंध में ताफैसला मूलवाद तक मौके व स्वामित्व संबंधी दस्तावेज के अनुसार यथास्थिति बनाये रखने और इस परिसर का अन्यत्र अंतरण या हस्तान्तरण नहीं करने हेतु अस्थाई निषेधाज्ञा अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश ने दीवानी विविध अपील आम नागरिकगण बनाम अमरसिंह वगैरह में जारी किया है। इस संबंध में दीवानी विविध प्रार्थना प्रकरण में वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एसीजेएम डॉ. विमल व्यास द्वारा 30 जुलाई 2024 को जारी आदेश के विरूद्ध एडीजे द्वारा निषेधाज्ञा जारी की गई है। इसमें प्रार्थीगण आम नागरिकगण के प्रार्थना-पत्र को आंशिक रूप से ही स्वीकार करने के आदेश के विरूद्ध आम नागरिकगण की प्रथम अपील पर एडीजे आरिफ मोहम्मद खान चायल ने अस्थाई निषेधाज्ञा जारी की।

एसीजेएम के आदेश को किया निरस्त

एडीजे के इस आदेश में वर्णित है कि आम जनता लाडनूं के जरिये प्रतिनिधिगण की ओर से प्रस्तुत हस्तगत अपील विरूद्ध अप्रार्थीगण स्वीकार की जाकर विचारण न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 30.07.2024 को अपास्त किया जाता है एवं प्रार्थीगण/अपीलार्थीगण की ओर से प्रस्तुत प्रार्थना-पत्र अन्तर्गत आदेश 39 नियम 1 व 2 सपठित धारा 151 सीपीसी स्वीकार किया जाकर अप्रार्थीगण/प्रत्यर्थीगण को इस आशय की अस्थाई निषेधाज्ञा से पाबन्द किया जाता है कि अप्रार्थीगण/प्रत्यर्थीगण विवादित परिसर, जिसका उल्लेख प्रार्थना-पत्र की मद संख्या 4 में किया गया है, उक्त सम्पूर्ण परिसर के संबंध में ताफैसला मूल वाद मौके एवं स्वामित्व संबंधी दस्तावेज के अनुसार यथास्थिति बनाये रखेंगे और उक्त परिसर का अन्यत्र अंतरण या हस्तान्तरण नहीं करेंगे। आम नागरिकगण के प्रतिनिधिगण राजेश भोजक, हरिओम टाक व मदनलाल शर्मा थे, जिनकी तरफ से शेरसिंह जोधा, रामगोपाल अग्रवाल आदि वकीलों ने पेरोकारी की।
यह दीवानी अपील अपर जिला न्यायालय के पीठासीन अधिकारी आरिफ मोहम्मद खान चायल के समक्ष नागरिकों की ओर से राजेश कुमार भोजक, हरिओम टाक व मदनलाल शर्मा द्वारा प्रस्तुत की गई थी। इस दीवानी विविध अपील सं. 18/2024 में अप्रार्थीगण अमरसिंह, कमला किल्ला, श्रीराम किल्ला, भोलाराम किल्ला जोधपुर एवं उप पंजीयक लाडनूं व विद्याप्रकाश स्वामी लाडनूं के विरूद्ध एडीजे ने विवादित परिसर के लिए यथास्थिति बनाए रखने एवं परिसर का अन्यत्र अंतरण एवं हस्तांतरण नहीं करने के ताफैसला निषेधाज्ञा आदेश जारी किया है।

सार्वजनिक धर्मशाला व मंदिर होने की दलीलें

इस सम्बंध में न्यायालय में प्रस्तुत प्रार्थना पत्र में बताया गया था कि बस स्टेंड पर एक मंदिर मय धर्मशाला स्थित है, जिसमें बालाजी महाराज का प्राचीन मंदिर, भगवान शिव का प्राचीन मंदिर शिवालय, बाबा रामदेवजी महाराज का थान, जोतराम जी महाराज का स्थान, धार्मिक वृक्ष तुलसी का बिड़ला व विशाल बिल्व वृक्ष स्थित है। यहां धर्मशाला भी संचालित हो रही है, जिसमें दर्शनार्थी व मुसाफिर विश्राम करते हैं। ठहरने के लिए छोटे-छोटे कमरे व कोटड़ियां बनी हुई है तथा पलंग, बिस्तर, तकियों, रजाई की व्यवस्था रहती है, जिनका नाममात्र का शुल्क लिया जाता है। इसमें कोई भी व्यक्ति प्रवेश कर सकता है। मंदिरव धर्मशाला के दरवाजे सबके लिए खुले हैं। इसका निर्माण करीब 70-80 वर्ष पर्व दानवीर सेठों किल्ला परिवार द्वारा धार्मिक व सार्वजनिक प्रयोजनार्थ धर्मशाला व मंदिर शिवालय का निर्माण करवाया था, जिससे इसे किल्ला भवन कहा जाता है। तब से लगातार यह सार्वजनिक उपयोग व उपभोग की सम्पति रही है। नगर निकाय व राज्य सरकार के विभागों द्वारा समय-समय पर लाडनूं की सार्वजनिक धर्मशाला/सराय/आश्रयस्थल आदि की सूचियों में किल्ला धर्मशाला के नाम से लिस्टेड किया गया है।

अप्रार्थीगण द्वारा अपनी निजी सम्पति बताई जाने पर सवाल

इस प्रकरण में अप्रार्थीगण की ओर से इसे कमला किल्ला, श्रीराम किल्ला, भोलाराम किल्ला जोधपुर के स्वामित्व की सम्पति बताया गया और राधाकिशन किला के नाम से लाडनूं ठाकुर द्वारा सम्वत् 2007 में पट्टा जारी किया जाना बताया गया। राधाकिशन किला द्वारा अपने जीवनकाल में ही इसकी वसीयत कमला किल्ला, श्रीराम किल्ला, भोलाराम किल्ला जोधपुर के पक्ष में लिखी जानी बताई गई और मृत्योपंरांत उनके मालिक होने को अंकित किया गया है, जिन्होंने अमर सिंह को विक्रय किया जाना बताया गया है। इसके जबाबुल जवाब में प्रार्थीगण ने बताया है कि इसे राधाकिशन किला की पट्टे की सम्पति मानने से इंकार किया गया है और बताया गया है कि हरकचंद किला के तीन पुत्रों के नाम से इस जमीन के तीन अलग-अलग इमारती पट्टे जारी किए हुए थे, जो राधाकिशन, गंगाधर व बद्रीनारायण के संयुक्त नाम से थे। इन्हीं संयुक्त पट्टों का उपयोग नगर पालिका से निर्माण इजाजत आदि के लिए किया गया था। इनकी प्रतियां अदालत में पेश की गई हैं। राधाकिशन किला के भी चार पुत्र थे, महावीर प्रसाद, श्यामसुन्दर, सीताराम व हनुमान प्रसाद किला। इनमें से सीताराम वर्तमान में जीवित है। अन्य पुत्रों के वारिसान भी मौजूद है। यह सम्पति कभी अकेले राधाकिशन किला की नहीं रही। इसमें 14 अप्रेल 1974 को जारी किए गए वसीयत नामे को भी गलत ठहराया गया है ओर बताया गया है कि राधाकिशन किला ने ऐसा कोई वसीयतनामा नहीं किया था। स्वयं राधाकिशन किला ने 1976 में नगर पालिका को गृहकर प्रकरण में इस सम्पति को सार्वजनित सम्पति और सार्वजनिक स्थान बताया था

फर्जी वसीयतनामों से अपनी सम्पति बताना स्वीकार नहीं

एडीजे के पास प्रस्तुत इस अपील प्रकरण में अपीलकर्ताओं द्वारा इसके सार्वजनिक होने के पर्याप्त दस्तावेज सबूत प्रस्तुत किए गए बताए हैं, जबकि अप्रार्थीगण की ओर से अपने स्वामित्व सम्बंधी कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया, बताया गया है। एसीजेएम के विचारणीय आदेश में यथास्थिति के लिए क्षेत्रफल सम्बंधी विवरण लोप हैं। इस धर्मशाला के यात्री रजिस्टर का संधारण पुलिस के पास मौजूद है, जिसमें राधाकिशन किला के पुत्र हनुमान प्रसाद किला की स्वंय की एंट्री एक यात्री के रूप में दर्ज की गई है। बताया गया है कि मातहत अदालत ने यथास्थिति आदेश में मंदिरों की हद तक ही सीमा मानी है, जो प्रथमदृष्टया त्रुटिपूर्ण निस्तारण रहा है। वसीयत नामेे को फर्जी व कूटरचित स्टाम्प पेपर पर है, क्योंकि स्टाम्पवेंडर ने शपथ पत्र देकर इस स्टाम्प का नहीं बेचा जाना और उस दिन कोई इन्द्राज उसके रिकाॅर्ड में नहीं होना बताया है। वह स्टाम्प उसके पोते बाकी या ओपनिंग स्टोक में भी नहीं था। विद्याप्रकाश स्वामी लाडनूं भी एक वसीयत के आधार पर इस सम्पति पर अपना हक जता रहा है, उस वसीयत सहित दोनों वसीयतों को फर्जी व कूटरचित बताया है। न्यायालय सेे इस प्रकरण में अपील स्वीकार करते हुए मूल वाद में वर्णित पड़ौस के परिसर को अप्रार्थीगण द्वारा विक्रय, हस्तांतरण, रहन, दखल, पंजीयन नहीं करने की मांग की गई है।

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