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महाशिवरात्रि पर विशेष- आस्था, शिल्प सौदर्य और जनभावनाओं के प्रतीक हैं लाडनूं के प्राचीनतम शिवालय बस स्टेंड की छत्रियों के पास है सबसे प्राचीनतम शिवालय

महाशिवरात्रि पर विशेष-

आस्था, शिल्प सौदर्य और जनभावनाओं के प्रतीक हैं लाडनूं के प्राचीनतम शिवालय

बस स्टेंड की छत्रियों के पास है सबसे प्राचीनतम शिवालय

लाडनूं (kalamkala.in)। यहां शहर के विभिन्न शिवालयों में नीलकंठ महादेव मंदिर के अलावा भैया बगीची, खाकीजी की बगीची, करंट बालाजी मंदिर, चांदसागर कुआं शिवालय, किला धर्मशाला शिववालय आदि विभिन्न स्थल शिव-साधकों केे श्रद्धा के केन्द्र बने हुए हैं। यहां के सबसे प्राचीन मंदिर के रूप मे खाखीजी की बगीची, जो अब खांडल-विप्र भवन कहलाता है, में स्थित है। यहां कभी नृसिंह भगवान का मंदिर था। इसी में प्राचीन काल से ही शिवलिंग भी स्थापित रहा है। इस मंदिर की प्राचीनता अज्ञात कही जाती है, लेकिन अनुमान है कि यह स्थल करीब 800 साल से 1000 साल से अधिक प्राचीन है।

वर्तमान बस स्टेंड पर बना यह शिवालय लाडनूं के अंतिम मोहिल शासक राव जयसिंह के समय से प्राचीन रहा है। राव जयसिंह ने रावगेट, जो अब राहूगेट कहा जाता है और राव कुआं या राहू कुआं और राव बावड़ी दिखणादा दरवाजा (वर्तमान राहूगेट) के बाहर बनवाई। उस समय घने जगंल के बीच यहां केवल मात्र यह एक शिवालय मंदिर ही स्थित था। इस मंदिर के ईदगिर्द ही खाखी सम्प्रदाय के साधु-साध्वियां रहते थे और इस मंदिर में सेवा पूजा करते थे। राहूकुआं वगैरह को करीब पांच सौ से छह सौ साल माली जाति के लोग जोतते रहे थे। इस मंदिर में भी पूजा के लिए माली जाती के लोग ही अधिसंख्य आते थे। लाडनूं पर मोहिल राज के अंत और जोधा राठौड़ों के आधिपत्य के बाद उस शासक वंश के योद्धाओं के विभिन्न युद्धों में वीरगति प्राप्त करने के बाद यहां पास में ही उनके स्मारकों के रूप में छत्तरियां बना दी गई, जिन्हें आज भी ऐतिहासिक छत्रियों के रूप में माना और वीर शहीदों को सम्मान दिया जाता है। इन छत्रियों से भी प्राचीन इस शिवमंदिर व बगीची में अब भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन इस मंदिर में शिवलिंग के दर्शनार्थ उमड़ते हैं। लोगों का विश्वास है कि इस मंदिर में उनकी मनचाही मुरादें पूर्ण हो जाती है। इसको चमत्कारिक माना जाता है

चांद सागर कुआं का शिवलिंग

इसके अलावा करीब 75 साल प्राचीन एक शिवमंदिर यहां चांद सागर कुआं पर निर्मित है। इसमें सवा सौ साल प्राचीन शिवलिंग व नन्दी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इस मंदिर व शिवलिंग को चमत्कारिक मान कर पूजा जाता है। इसमें स्थापित शिवलिंग बड़े आकार का है। इसकी स्थापना लगभग 75 साल पहले यहां छठी पट्टी निवासी जीवणमल भूतोड़िया के  ‘चांदमल रिलीजियस ट्रस्ट’ द्वारा करवायी गयी थी। चांदमल के नाम से ही इस मीठे पानी के कुएं का नाम ‘चांद सागर कुआं’ रखा गया। यहां प्रतिष्ठित शिवलिंग पहले उनके घर में ही स्थापित था, जिसे बाद में यहां इस मंदिर में प्रतिष्ठापित करवाया गया। जीवणमल भूतोड़िया के परिवार वालों का कहना है कि इन शिव की उनके परिवार पर असीम कृपा है। इसी प्रकार यहां आने वाले श्रद्धालुओं की भी गहरी आस्था इस मंदिर में है। लोगों का मानना है कि यहां उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। यहां चांद सागर के नाम से एक कुआं प्राचीन जलस्रोत के रूप में है, जो मंदिर से भी प्राचीन बताया जा रहा है। इस चांद सागर कुएं में पानी मीठा होने से लोगों की पानी के लिए भीड़ लगती थी। गांवों से भी लोग कोठियां (ऊंटगाडों व बैलगाड़ियों पर लादे जाने वाले टैंकर) भर कर ले जाया करते थे।

भूकंप रोधी है यह मंदिर 

जीवण मल के वंशज नरेंद्र सिंह भूतोड़िया का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण बड़े पत्थरों को लंगर लगाकर जोड़ा गया है, जो स्थापत्य की विशेष कला थी। काफी प्राचीन मंदिरों में इस शिल्पकला का प्रयोग किया जाता था। इससे मंदिर भूकम्परोधी बन जाता था। यहां मंदिर के पास ही पशुओं के पानी के लिए बड़े पत्थरों की बड़ी खेलियां बनी हुई है। चाँद सागर व्यायामशाला का सञ्चालन काफी सालों से यहाँ किया जाता रहा था. जो बाबूलाल जान्गिड और उनके साथी चलाते थे. उन्होंने यहाँ शिवरात्रि के अवसर पर विशेष पूजा और भव्य रात्री जागरण की शुरुआत  की, जो अनवरत रूप से आज तक चल रही है, समाजसेवी नारातन लाल शर्मा ने बताया की यह मंदिर की क्षेत्र से रहवासियों द्वारा ही देखरेख की जा रही है, कभी यह मंदिर वीरान हुआ करता था, लेकिन अब तो याह लोगों की आस्था का केंद्र बन चूका है, इसके लिए बजरंगदल का प्रयास भी सराहनीय रहा. आरएसएस के समाजसेवी स्व. चन्द्र सिंह परिहार ने भी इस मंदिर सहित शहर से काफी मंदिरो के उद्धार के लिए काम किया था.

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