लाडनूं का एक बड़ा विवाद:
दलित महिला के शोषण और पीड़ाओं पर खड़ा हो रहा है लाडनूं का राजकीय महिला महाविद्यालय? सच्चाई की तरफ एक नजर-
इसकी जमीन को लेकर हाईकोर्ट में विचाराधीन मुकदमे की पेशी 19 दिसम्बर से पहले ही जमीन का कब्जा व स्थितियां बदल कर एक दलित महिला को परास्त करने की गंभीर साजिश,
पुलिस व प्रशासन से पीड़ित दलित महिला दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर, आनंदपाल के नाम से क्यों डराया जा रहा है लोगों को?
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। लाडनूं में जिस दर जमीन पर हाल ही में राजकीय कन्या महाविद्यालय का आरम्भ किया गया है, वह आज भी विवादों से घिरा है और एक गरीब दलित महिला की पीड़ाएं इस महाविद्यालय की धरती से जुड़ी हुई हैं।आयुक्तालय कॉलेज शिक्षा राजस्थान, जयपुर के निर्देशानुसार गत शनिवार 14 दिसम्बर को इस राजकीय कन्या महाविद्यालय लाडनूं का संचालन इस नवीन भवन में संचालित शुरू किया गया है। इस महाविद्यालय का संचालन सत्र 2021-22 से यहां जौहरी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के पास स्थित एक विद्यालय भवन में किया जा रहा था, जहां से अब यहां शिफ्ट किया गया है, अभी यहां 251 छात्राएं हैं । यह कथित नवीन भवन एन. एच. 58 पर निम्बी जोधां रोड पर विद्युत जीएसएस के पास स्थित है। इस वीरान जगह पर कन्या महाविद्यालय होने से अभिभावकों की चिंताएं बढ़ी हैं, वहीं छात्राओं के आने-जाने का खर्च भी बढ़ा है। यहां गौरतलब है कि इस महाविद्यालय के बनने से पहले ही करीब डेढ़ साल पूर्व आनन-फानन में इसका उद्घाटन कर दिया गया था। उद्घाटन के लम्बे अंतराल के बाद यहां शिफ्टिंग कार्य किया गया है। हालांकि अभी भी यहां बहुत सारा काम बाकी है। पूरा काम सम्पन्न होने से पहले ही इसकी सुपुर्दगी भी आश्चर्यजनक है। इस जमीन को लेकर राजस्थान उच्च न्यायालय में विवाद विचाराधीन है। लगता है कि अधिकारियों, नेताओं आदि की एक लॉबी येन-केन-प्रकारेण इस जमीन को दलित महिला के हाथ में जाने देने से रोकने की कोशिश में लगी हुई है। आइए, जानते हैं इसके पीछे छिपी पूरी कहानी-
क्यों बताया जा रहा इसे आनंदपाल का टॉर्चर हाउस?
राजकीय कन्या महाविद्यालय के रूप में प्रतिस्थापित इस भवन को कथित रूप से ‘आनन्दपाल का यातना-गृह’ (टार्चर हाउस) और ‘आनंदपाल का बंकर’ बताया जा रहा है, जबकि वास्तविकता कुछ और ही सामने आई है। यह जमीन लाडनूं के खसरा नं. 1548, 1587 व 1587/1 की कुल 27 बीघा 16 बिस्वा बारानी अव्वल भूमि है। इस जमीन को लेकर काफी विरोधाभासी बातें और तोड़े-मरोड़े तथ्यों को पेश किए जाने की स्थिति भी प्रकट हुई है। यह सर्वविदित है कि आनंदपाल सिंह सांवराद का अधिकांश जीवन फरारी में गुजरा और फरारी के दौरान ही एनकाउंटर करके उसकी जीवनलीला समाप्त कर दी गई (हालांकि बाद में इसे एनकाउंटर के बजाय सुनियोजित हत्या बता दिया गया और आनंदपाल की हत्या के मामले में आईपीएस राहुल बारहठ, विद्याप्रकाश, सूर्यवीर सिंह सहित अन्य पुलिसकर्मी आरोपी करार दिए गए हैं।) लाडनूं में आनंद पाल द्वारा किसी को यातनाएं देने और वहां किसी को कैद रखने का कोई मामला सामने नहीं आया। (जबकि, आरोप लगाए जा रहा है कि वह लोगों का अपहरण करके लाता और उन्हें यहां कैद रखकर यातनाएं दिया करता था।) आनंदपाल का पुश्तैनी मकान और जमीनें सांवराद गांव में है और लाडनूं की दयानंद कालोनी में भी मकान बना हुआ है, फिर उन्हें इस बंकर की कहां आवश्यक थी? यह भी सही है कि आनंदपाल सिंह ने इस कथित भूमि पर कभी अपना रहवास नहीं किया, फिर जिसे उसका किला बताया जा रहा है, वह किस आधार पर बताया गया है? यह सच्चाई है कि जब इस जमीन पर पुलिस ने कब्जा किया, तब वहां बड़ी-बड़ी फसलें खड़ी थी और उसमें खेती की गई थी। उस खेती को रौंद कर पुलिस उस खेत के अंदर घुसी थी। फिर यह सवाल खड़ा होता है कि क्यों इसे टॉर्चर हाउस सिद्ध किया जाने की कवायदें चलाई गई?
फिर सच्चाई क्या है, यह किसकी जमीन है?
अगर यह आनंदपाल की जमीन नहीं थी, तो फिर किसकी जमीन रही और तैयार फसल को कैसे पुलिस व प्रशासन ने जबरन हथियाने का प्लान बनाया? सामने आया है कि आनंदपाल सिंह के गांव सांवराद में रहने वाली एक दलित महिला सीता देवी हरिजन की यह जमीन थी। बताया जा रहा है कि उसके पति धर्मेन्द्र हरिजन को पुलिस ने अवैध रूप से हिरासत में लेकर पूरे परिवार को डरा-धमका कर उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाने की धमकियां देकर सीता देवी से सादे कागजातों (समर्पण पत्र, शपथ पत्र आदि) पर हस्ताक्षर करवा कर इस जमीन का समर्पण-नामा तैयार किया था। जब जमीन का समर्पण उससे करवाया गया, तो वह जमीन आनंदपाल की कैसे हो गई?अब इस समर्पण को आनंदपाल सिंह से जोड़ा जाना आश्चर्यजनक है। प्रशासन का कहना है कि आनंदपाल ने सीता देवी को डरा कर उसके नाम से जमीन की रजिस्ट्री करवा दी थी, जबकि सीता देवी इस जमीन को पूरी तरह अपनी बता रही है और आरोप लगा रही है कि पुलिस व प्रशासन ने डरा-धमका कर जबरन समर्पण करवाया था। तभी से यह महिला संघर्षरत है और अपना हक वापस चाहती है। इससे तो इस जमीन से इस दलित महिला की पीड़ा बोलती जरूर दिखाई दे रही है, लेकिन किसी निर्दोष की चित्कारें बिल्कुल नहीं।
सब जगह गुहार के बाद पहुंची राजस्थान हाईकोर्ट
इस दलित महिला सीता देवी हरिजन ने अपनी जमीन पर किए गए जबरन कब्जे के विरोध में सभी प्रशासनिक स्तर पर अधिकारियों से गुहार लगाई। वह रेवेन्यू बोर्ड अजमेर और संभागीय आयुक्त तक पहुंची, लेकिन कहीं उसकी फरियाद पर संवेदनापूर्ण विचार नहीं हुआ, तब उसने राजस्थान उच्च न्यायालय की शरण ली है, जहां उसका मामला विचाराधीन है और हाईकोर्ट ने उसकी पेशी 19 दिसंबर 2024 को तय कर रखी है। इस बीच इस जमीन को महाविद्यालय के रूप में प्रारंभ करके इस दलित महिला के अधिकारों को पूर्ण रूप से खुर्द-बुर्द करने की तैयारियां की जा रही है। एक तरफ सरकार दलितों के हितों की बात करती है और दूसरी तरफ लगता है कि एक दलित महिला के हक-हकूकों को जबरन कुचलने में संलग्न है। एक तरफ कानून बना हुआ है कि दलित की कृषि भूमि को कोई भी सवर्ण नहीं खरीद सकता, तो क्या डांट-पिटलाई से सरकार के पक्ष में जबरन समर्पण करवाना उचित कहा जा सकता है? क्या इस दलित महिला को कभी कहीं भी न्याय नहीं मिल पाएगा? जब तक हाईकोर्ट कोई निर्णय इस मामले में नहीं दे, तब तक जमीन की किस्म, स्वामित्व और अन्य किसी तरह का रद्दोबदल नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा किया जाना कोर्ट की व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप ही कहा जा सकता है।