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बेनिवाल की आरएलपी की राज्य की 100 सीटों और 50 हजार वोट साधने पर रहेगी पूरी ताकत, क्या जाटों के एकछत्र नेता के रूप में उभर पाएंगे हनुमान बेनिवाल

बेनिवाल की आरएलपी की राज्य की 100 सीटों और 50 हजार वोट साधने पर रहेगी पूरी ताकत,

क्या जाटों के एकछत्र नेता के रूप में उभर पाएंगे हनुमान बेनिवाल

जयपुर। आगामी विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर दिखाई दे रही है, वहीं  राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी यानी आरएलपी इन दोनों ही दलों की गणित को बिगाड़ने का काम कर सकती है। आरएलपी का इस चुनाव में 80 सीटों पर प्रभाव और 35 सीटों पर हार-जीत का अनुमान लगाया जा सकता है। अभी तक यह सब केवल जाट समुदाय के वोटों को आधार बना कर लगाए जा रहे अनुमान मात्र हैं। आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल जाट जाति को केन्द्र बनाकर चल रहे हैं और राज्य के अधिकतम जाटों को साधने में लगे हुए हैं।

चार साल में आरएलपी की पहुंच

29 अक्टूबर 2018 को स्थापित हुई राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी पिछले चार साल से निरंतर अपने काम में लगी हुई है। हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में पार्टी के एक सांसद और तीन विधायक हैं। सबसे बड़ी बात यह भी है कि न तो पॉलिटिकल क्राइसिस में यह विधायक टूटे और न ही कमजोर हुए। बेनीवाल ने जिस प्रकार से किरोड़ीलाल मीणा, घनश्याम तिवारी के साथ गठबंधन किया था और तीनों नेता साल 2018 के विधानसभा चुनाव में एक साथ मंच साझा करते देखे जाते थे। लगता था कि हनुमान बेनीवाल भी पार्टी की जिद छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम लेंगे। परंतु हनुमान बेनीवाल ने अपनी पार्टी को मरने नहीं दिया।

जाटों की राजनीतिक ताकत

राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और सभी राजनीतिक दल तैयारी में जुटे हैं। वहीं, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी सदस्यता अभियान चलाने जा रही है। हनुमान बेनीवाल और उनकी पार्टी आरएलपी का पूरा फोकस राजस्थान में 100 सीटों पर रहेगा और 50 लाख वोट उनको मिले, इसकी तैयारी वे कर रहे हैं। राजस्थान में 80 सीट पर जाटों का प्रभाव है और 35 सीट पर सीधे रूप से जाटों के वोट के आधार पर हार और जीत के फैसले आते हैं। राजस्थान विधानसभा में आज भी 35 विधायक जाट समुदाय से आते हैं, लोकसभा में भी आठ सांसद जाट हैं।

भाजपा के साथ जा सकते हैं बेनिवाल?

ऐसे में अगर हनुमान बेनीवाल और जाट समुदाय एक साथ हो जाते हैं तो राजस्थान की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो सकता है। परन्तु हर समाज की तरह जाट समाज में भी गुटबाजी मौजूद जरूर है और इसी कारण सारे मतों को एक साथ एक दल के पक्ष में गिरवाना एक बड़ी चुनौती मानी जा सकती है। हनुमान बेनीवाल जाटों के नेता माने जाते हैं, लेकिन अन्य दलों में मौजद जाट नेता ऐसा नहीं मानते और वे तो हनुमान को जाट-नेता बनने भी देना चाहते हैं। यही कारण है कि जाट वोट को काटने के लिए या तो बाकी जातियां एकजुट होती हैं और जहां जाट बाहुल्य है, वहां जाट उम्मीदवारों से ही वोट कटवाने का काम होता है। विकल्प के रूप में हनुमान बेनीवाल और बीजेपी का एक बार फिर से विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन होता है, तो बीजेपी को 150 का आंकड़ा पार करना कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी। जाट जो कांग्रेस को वोट देते हैं, वो बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो सकते हैं।

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