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गहरे पानी पैठ- 7 –  क्या है आर्य समाज के चुनावों की असलियत? पर्दे के पीछे छिपी घिनौनी साजिश, आर्य समाज संस्थान के अन्दर की लड़ाई पुलिस तक पहुंची, चुनाव की वैधता एक तरफ हो गई और बैंक मैनेजर सहित पदाधिकारियों को बना डाला मुलजिमान, सभी मुलजिमानों पर आर्य समाज के 17.30 लाख की अवैध निकासी और 10 लाख के गबन के आरोप लगे

गहरे पानी पैठ- 7 – 

क्या है आर्य समाज के चुनावों की असलियत? पर्दे के पीछे छिपी घिनौनी साजिश,

आर्य समाज संस्थान के अन्दर की लड़ाई पुलिस तक पहुंची, चुनाव की वैधता एक तरफ हो गई और बैंक मैनेजर सहित पदाधिकारियों को बना डाला मुलजिमान,

सभी मुलजिमानों पर आर्य समाज के 17.30 लाख की अवैध निकासी और 10 लाख के गबन के आरोप लगे

जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। यहां आर्य समाज संस्थान के अन्दर छिड़ी लड़ाई अब भवन की चहारदिवारी पार करके पुलिस थाने तक पहुंच चुकी है और इस झगड़े की आंच संस्थान के अध्यक्ष रहे ओमदास स्वामी उर्फ ओम मुनि व कोषाध्यक्ष सुबोधचन्द्र आर्य (सोनी) के साथ ही पंजाब नेशनल बैंक के मैनेजर रह चुके पवन स्वामी के दामन तक लग चुकी है। हुआ यह है कि आर्य समाज संस्थान के चुनावों को लेकर चल रहे विवाद के बीच तथाकथित नवनिर्वाचित पदाधिकारियों ने येन-केन-प्रकारेण संस्थान के रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी नागौर के कार्यालय से अपने चुनाव को अपडेट करवा लिया, हालांकि अभी इन तथाकथित चयनित पदाधिकारियों का विवाद सुलझ भी नहीं पाया है और इसमें भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर संस्थान के सदस्यों को लगाने पड़ेंगे, लेकिन इसे रजिस्ट्रार से एप्रूव करवाने वाले पदाधिकारियों ने आनन-फानन में संस्थान के अध्यक्ष ओमदास आर्य, कोषाध्यक्ष सुबोधचन्द्र आर्य एवं पंजाब नेशनल बैंक मैनेजर पवन स्वामी के विरूद्ध लाडनूं पुलिस थाने में एक एफआईआर दर्ज करवा दी। इस दर्ज एफआईआर में इन तीनों पर मिलीभगत पूर्वक 17 लाख 30 हजार की राशि निकाली जाकर उसमें से करीब 10 लाख का गबन करने का आरोप लगाया है।

सर्व सहमति से हुआ है अध्यक्ष निर्वाचित

पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर के मुताबिक आर्यसमाज संस्थान, लाडनूं के निर्वाचित अध्यक्ष नोपाराम आर्य ने यह टाईप की हुई रिपोर्ट देकर बताया है कि वह वर्तमान में आर्य समाज संस्थान लाडनू का निर्वाचित अध्यक्ष है, जो गत 21 जुलाई को सर्व-सहमति से अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुआ था। ‘आर्य समाज संस्थान’ लाडनूं का रजिस्ट्रेशन राजस्थान सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1958 के अन्तर्गत सन् 2010-11 में रजिस्ट्रेशन नम्बर 2010-2011/297 द्वारा हुआ था। इस संस्थान के पंजीकृत संघ विधान पत्र तथा विधान नियमावली में बिन्दु संख्या 17 में संस्था के हित में कार्य व समय की आवश्यकता अनुसार संस्था के पदाधिकारीगण एकमुश्त राशि स्वीकृत कर संस्था के बैंक खाता से निकाल सकते हैं, जिसके अनुसार अध्यक्ष व मंत्री को 2100-2100 रुपये और कोषाध्यक्ष को 1500 रूपये तक की राशि स्वीकृत कर निकालने के अधिकार हैं, जिसका अनुमोदन प्रबन्धकारिणी से कराया जाना भी आवश्यक है।

बैंक से लेनदेन के अधिकार में बदलाव किया

रिपोर्ट के अनुसार इस संस्थान के पूर्व में चुनाव 17 जुलाई 2022 को हुए थे, जिनमें ओमदास आर्य को अध्यक्ष, प्रेमप्रकाश आर्य को मंत्री तथा सुबोधचन्द्र आर्य को कोषाध्यक्ष चुना गया था। इसके बाद 24 जुलाई को प्रस्ताव लेकर लेनदेन के अधिकार अध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष में से किन्हीं दो के करने का नियम निर्धारित था। इसके बाद कार्यकारिणी द्वारा 4 जनवरी 2023 को प्रस्ताव पारित करके पंजाब नेशनल बैंक शाखा लाडनूं में संचालित बैंक खाता से लेनदेन करने के लिये अध्यक्ष, मंत्री व कोषाध्यक्ष तीनों पदाधिकारियों के हस्ताक्षर आवश्यक कर दिए गए। इसकी सूचना पंजाब नेशनल बैंक के शाखा प्रबन्धक का दे दी गई। पंजाब नेशनल बैंक में खाता संख्या 6614000100002202 आर्य समाज संस्थान लाडनूं का है।

चुनाव का अपडेशन व अनुमोदन हमने करवा लिया

रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि 21 जुलाई 2024 को संस्थान के द्विवार्षिक चुनाव सम्पादित हुए, जिसके बाद निर्वाचित वर्तमान कार्यकारिणी को रजिस्ट्रार नागौर के कार्यालय में ऑनलाईन इन्द्राज भी करवा लिया गया। उसमें वर्तमान निर्वाचित पदाधिकारियों में अध्यक्ष नोपाराम आर्य, मंत्री यशपाल आर्य व कोषाध्यक्ष अनिल कुमार पिलानियां व अन्य 11 सदस्यगणों को सहकारिता विभाग द्वारा ऑनलाईन अपडेट है। इस चुनाव के संबंध में आर्य प्रतिनिधि सभा राजस्थान जयपुर के द्वारा 24 जुलाई को अपने पत्र क्रमांक 1387 के जरिये अनुमोदन कर दिया गया। इसके बाद पदाधिकारियों व कार्यकारिणी ने पूर्व कोषाध्यक्ष सुबोधचन्द्र आर्य व पूर्व अध्यक्ष ओमदास आर्य से उनके कार्यकाल का समस्त लेखा-जोखा पेश करने को कहा गया। लेकिन, दोनों ही पूर्व पदाधिकारियों ने कोई लेखा-जोखा पेश नहीं किया।

डेढ साल पहले भी हुआ था लेनदेन का विवाद

नोपाराम ने लिखा है कि संस्था के प्रस्ताव रजिस्टर से पता चला है कि पूर्व अध्यक्ष व कोषाध्यक्ष को संस्था का लेखा जोखा पेश करने हेतु दिनांक 10.01.2023, 12.03.2023 व 30.06.2024 को प्रस्ताव लिया जा चुका, फिर भी इन दोनों पदाधिकारियों ने कोई लेखा-जोखा संस्थान की आम बैठक में प्रस्तुत नहीं किया। पूर्व में तीन पदाधिकारीयों के हस्ताक्षरों से बैंक खाते से लेनदेन का प्रस्ताव लिये जाने के बावजूद इन दोनों ने संस्थान के बैंक खाते से दिनांक 9 जनवरी 2023 को रूपये 2.50 लाख रूपए निकाल कर निजी उपयोग में लिये हैं। इसके लिए कानूनी कार्यवाही करने का प्रस्ताव 10 जनवरी 2023 को लिया गया और दोनों पदाधिकारियों ने कार्यकारिणी के समक्ष उक्त रूपये वापिस खाते में जमा करवाने का आश्वासन दिया जाने पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। इसके बाद दोनों पदाधिकारियों ओमदास आर्य व कोषाध्यक्ष सुबोधचन्द्र आर्य ने दिनांक 30.01.2023 को संस्था के खाते में 1.50 लाख रूपये वापिस जमा करवा दिए। लेकिन, 1 लाख रूपये अभी तक वापस जमा नहीं करवाए

17.30 लाख के गबन व धोखाधड़ी के आरोप में बैंक मैनेजर शामिल

इन दोनों पदाधिकारियों द्वारा संस्था के आय-व्यय का लेखा-जोखा संस्था के समक्ष पेश नहीं करने पर बैंक खाते का स्टेटमेंट प्राप्त किया, तो जानकारी मिली कि दिनांक 01.07.2022 से 19.05.2024 तक संस्था के बैंक खाते से कुल 17.30 लाख रूपए की राशि बैंक से सेल्फ विड्रोल की गई। इस अवधि में यहां बैंक शाखा प्रबन्धक पवन स्वामी था, जो अध्यक्ष ओमदास आर्य का सगा दोहिता था, उसने अध्यक्ष द्वारा की गयी धोखाधड़ी व गबन में उसका सहयोग करने के आशय से संस्था के प्रस्ताव दिनांक 04.01.2023 की सूचना मिलने के बावजूद केवल दो पदाधिकारियों के हस्ताक्षरों अध्यक्ष व अपने नाना ओमदास आर्य व कोषाध्यक्ष सुबोधचन्द्र आर्य द्वारा 2.50 लाख रुपये विड्रोल करवा दिए। संस्थान के बैंक खाता से प्राप्त स्टेटमेंट की जानकारी होने के बाद फिर तत्कालीन अध्यक्ष ओभदास आर्य व कोषाध्यक्ष सुबोधचन्द्र आर्य से उनके कार्यकाल का समस्त लेखा-जोखा, आय-व्यय का विवरण व बैंक स्टेटमेंट पेश करने हेतु कहा गया, लेकिन दोनों पूर्व पदाधिकारियों ने जानबूझ कर पेश नहीं किया। इन दोनों ने तत्कालीन बैंक मैनेजर पवन स्वामी के साथ मिलकर संस्थान के खाते से विड्रो हुये 17.30 लाख रूपये में से करीबन दस लाख रूपये से अधिक की राशि अपने निजी उपयोग में ले ली है तथा संस्था की राशि का गबन कर लिया है।

तीनों मुल्जिमानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि संस्थान द्वारा बार-बार आय-व्यय का विवरण मांगे जाने के बावजूद भी वे दोनों पेश नहीं कर रहे है एवं धमकी दे रहे हैं कि हमने तो उक्त राशि अपनी इच्छानुसार अपने काम में ले ली है, तुम लोग न तो हमसे कभी हिसाब मांग सकोगे एवं ना ही उक्त राशि कभी भी संस्था को लौटायेंगे। इस प्रकार दोनों पूर्व पदाधिकारी अध्यक्ष ओमदास आर्य व कोषाध्यक्ष सुबोधचन्द्र आर्य ने अपने कार्यकाल में बैंक से विड्रो की गयी किसी भी राशि का अनुमोदन संस्था के विधान के अनुसार प्रबन्ध कार्यकारिणी से नहीं करवाया एवं दिनाक 04.01.2023 को लिये गये प्रस्ताव के बावजूद भी मंत्री प्रेमप्रकाश आर्य की सहमति व हस्ताक्षरों के बिना ही संस्था के बैंक खाते से लेनदेन कर उक्त राशि का उपयोग निजी कार्य हेतु किया है, जिसके लिये उनका सहयोग पवन स्वामी शाखा प्रबन्धक पीएनबी बैंक शाखा लाडनूं द्वारा किया गया है। जो कि आपराधिक कृत्य है जिसके लिये उनके विरूद्ध मुकदमा दर्ज कर दण्डित किया जाना आवश्यक है। यह रिपोर्ट पेश कर नोपाराम आर्य ने मुल्जिमान ओमदास आर्य पूर्व अध्यक्ष व पूर्व कोषाध्यक्ष सुबोधचन्द आर्य एवं पवन स्वामी (शाखा प्रबन्धक पंजाब नेशनल बैंक लाडनूं) के विरूद्ध मुकदमा दर्ज कर गबन की गई राशि बरामद कर दिलवाने तथा मुल्जिमान के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्यवाही करने की मांग की गई है। पुलिस ने इस रिपोर्ट को दर्ज करके जांच हैड कांस्टेबल गजेन्द्र सिंह (325) के सुपुर्द की है।

खबर का पोस्टमार्टम-

प्रबंधकारिणी ने लिया मनमाना अवैध निर्णय

प्रबंधकारिणी द्वारा दो पदाधिकारियों की जगह तीनों के हस्ताक्षरों से लेन-देन करने बाबत जो प्रस्ताव लाया जाना बताया गया है, वह अवैध था, क्योंकि संस्थान के पंजीकृत संविधान के नियमों के अनुसार उसमें तीनों पदाधिकारियों में से किन्हीं दो के हस्ताक्षरों से ही बैंक खाता ऑपरेट किया जा सकता था। इसमें परिवर्तन प्रबंधकारिणी व साधारण सभा भी नहीं करती, जब तक कि संस्थान के संविधान में संशेधन किया जाकर उसकी स्वीकृति रजिस्ट्रार सोसायटी नागौर से प्राप्त नहीं कर ली जाती और उसकी प्रति बैंक को सुपुर्द नहीं की जाती।

आखिर असली आर्य समाज कौन सी है

यह सही है कि ‘आर्य समाज संस्थान’ के नाम से एक अलग रजिस्टर्ड संस्था है, लेकिन हकीकत यह है कि ऐसा संस्थान बनाया जाने का आर्य समाज के प्रादेशिक व सार्वदेशिक नियमों-विधानों और निर्देशों में गठन किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है और न कभी रहा। इसके बावजूद इस अवैध गठन की आवश्यकता ही क्या थी? आर्य समाज कोई इस संस्थान के गठन के बाद अस्तित्व में नहीं आया। आर्य समाज यहां करीब 100 सालों से गौरवमयी संस्था रही है, जिसका इस क्षेत्र और देश-प्रदेश की धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक और कृषि-गोपालन तक में गहरा हस्तक्षेप रहा है। इस ऐतिहासिक संगठन का गौरवपूर्ण अतीत रहा है। इसका लिखित इतिहास भी मौजूद है। यहां जो भवन और भूमि है, वे भी सदा से ही आर्य समाज के स्वामित्व में रहे हैं। आर्य समाज लाडनूं हमेशा आर्य प्रतिनिधि सभा राजस्थान के अधीन रही है और आर्य समाज के प्रतिनिधि आर्य प्रतिनिधि सभा के चुनाव आदि में हिस्सा लेते रहे हैं। आर्य प्रतिनिधि सभा राजस्थान के उदयपुर में सत्यार्थ प्रकाश न्यास गुलाब बाग में हुए चुनावों में लाडनूं के जगदीश यायावर प्रदेश में सर्वाधिक मतों से जीत पर प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल हुए थे।

किस-किस के पास क्यों पड़ा है हिसाब?

आर्य समाज संस्थान के दो बार प्रधान रहे ओमदास, जो घर-बार त्याग कर वानप्रस्थी बन गए, उन पर गबन का आरोप और पंजाब नेशनल बैंक के मैनेजर रहे पवन स्वामी, जिसे अब ओमदास का दोहिता बताया जा रहा है, पर भी मिलीभगत का आरोप जड़ दिया गया है। हालांकि आरोप सच्चाई से दूर होते हैं, जब तक कि उनके अनुसंधान के बाद उनका चालान नहीं किया जाता। इनके साथ कोषाध्यक्ष सुबोधचंद्र को भी बराबर का दोषी ठहराया जाते हुए मुलजिम बनाया गया है। इन लोगों का कहना है कि जब आर्य समाज संस्थान के विधि-सम्मत चुनाव ही नहीं हुए हैं तो वे किस सभा के समक्ष हिसाब रखें। कोषाध्यक्ष के पास पाई-पाई का पूरा हिसाब मौजूद है, लेकिन तथाकथित अवैध लोगों के सामने वे प्रस्तुत नहीं कर सकते। कोषाध्यक्ष के पास मंत्री प्रेमप्रकाश आर्य ने लम्बे समय से दुकानों के किराए की अवैध वसूली का आज तक कोई हिसाब कोषाध्यक्ष को नहीं दिया। उनकी तरफ से हिसाब निरीक्षक को हिसाब सौंपना बताया जा रहा है, जबकि हिसाब निरीक्षक को हिसाब जांचने का अधिकार होता है, नकदराशि रखने का नहीं। मंत्री को मात्र 2100 रुपए रखने व खर्च करने का अधिकार होता है, तब लम्बा-चौड़ा हिसाब किस उद्देश्य से अपने पास अभी तक रखा जा रहा है। इन लोगों का टारगेट केवल आर्य समाज को हथियाना है। ये काबिज होने के लिए लम्बे समय से प्रयत्नशील थे।

आर्य समाज संस्थान के चुनाव बनाम धांधली ही धांधली

आर्य समाज संस्थान के अध्यक्ष ओमदास ने चुनाव अधिकारी के रूप में मोहन राम आर्य दिलोया को नियुक्ति पत्र दिया और 21 जुलाई को साधारण सभा की बैठक भी आहूत की। जब अध्यक्ष को पता चला कि सदस्यता अभियान में किसी षड्यंत्र के तहत भारी धांधली बरती गई है। और अध्यक्ष की वैधानिक अनुमति के बिना ही चुपचाप सदस्यता सूची जारी कर दी गई है। तब उन्होंने इस बारे में पत्र लिखकर चुनाव अधिकारी को अवगत करवाया और स्वयं बुलाई गई साधारण सभा को निरस्त कर दिया। इसकी सूचना लाडनूं पुलिस को भी दी गई। चुनाव अधिकारी ने सदस्यता सूची की किसी भी प्रकार से जांच या ताईद किए बिना ही निरस्त हो चुकी बैठक के बाद स्वयं द्वारा चुनाव के निमित्त कोई बैठक आहूत किए बिना ही अवैध रूप से चुनाव किए जाने का रिकॉर्ड बना लिया। इस प्रकार ये चुनाव शुरू से ही सवालों के घेरे में हैं, फिर भी इन साजिश रचने वालों ने भागदौड़ करके सच्चे-झूठे तरीके अख्तियार करके कहीं येन-केन-प्रकारेण अपडेशन और फर्जी अनुमोदन तक के दांव-पेंच चलाए। अब सवाल यह है कि हकीकत में ऐसा कौन सा व्यक्ति अधिकृत है, जो हिसाब हासिल कर सकें। आर्य प्रतिनिधि सभा राजस्थान के प्रधान, मंत्री आदि को इसका हक होता है, लेकिन उनको भी दरकिनार करके अध्यक्ष पर नाजायज दबाव बनाने के लिए पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई गई है।

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