कलम कला खास रिपोर्ट –
लाडनूं के जसवंतगढ़ में देखी जा सकेगी काले हरिणों की उन्मुक्त कुलांचें,
165 लाख की राशि से 450 हेक्टर में किया हरिणों के प्राकृतिक आवास के लिए विकास कार्य, ताल छापर से हरिणों की शिफ्टिंग शीघ्र
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। अब शीघ्र ही लाडनूं क्षेत्र में काले हरिणों को उन्मुक्त रूप से विचरण करते व कुलांचें भरते हुए देखा जा सकता है। ताल छापर कृष्ण मृग अभयारण्य के विस्तार की योजना में लाडनूं के निकटवर्ती जसवंतगढ़ ग्राम के पास काले हरिणों को शिफ्ट करने की कार्ययोजना को राज्य सरकार की बजट घोषणा के अनुरूप बजट स्वीकृति के साथ हरिणों के प्राकृतिक रूप से निवास करने के लिए आवश्यक विकास का कार्य भी करवाये जा चुके हैं और शीघ्र ही काले हरिणों को यहां शिफ्ट किया जाएगा। राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन बल प्रमुख) के आदेश के अनुसार ब्लेक बग (कृष्ण मृग) के लिए जसवंतगढ़ में हेबिटेट डेवलपमेंट वर्ष 2024-25 अन्तर्गत बजट घोषणा ‘प्रदेश में वन संरक्षण एवं वन्यजीवों के विकास हेतु आगामी वर्ष कृष्ण मृग हेतु जसवंतगढ़-नागौर में (Habitat Development) के कार्य’ अन्तर्गत जसवंतगढ़ में 165 लाख रुपयों की राशि में 450 हैक्टर में ब्लेक बग हेबिटेट डेवलपमेंट (कृष्ण मृग प्राकृतिक आवास विकास) का कार्य करवाया जा चुका है। शीघ्र ही वहां काले हिरणों को शिफ्ट किया जायेगा।
शिफ्टिंग के लिए किया गया जसवंतगढ़ को तैयार
काले हिरणों की सबसे बड़ी आबादी के तौर पर एशिया में पहचान रखने वाले तालछापर कृष्ण मृग अभयारण्य में कृष्ण मृगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए उनके लिए स्वच्छंद विचरण के विकल्प के रूप में तालछापर के दक्षिण क्षेत्र से 10 से 15 किमी दूर स्थित जसवंतगढ़ में 2223.11 बीघा भूमि हिरणों के लिए आरक्षित की गई थी। इसके लिए जसवंतगढ़ को सबसे उचित स्थान के रूप में चुना गया। राज्य सरकार ने इसके लिए राजस्व भूमि को वन भूमि के तौर पर आरक्षित किया था। जसवंतगढ़ अब काले मृगों के लिए वैकल्पिक आश्रय स्थल हो सकेगा। जसवंतगढ़ गांव के खसरा संख्या 329 एवं 361 की 2223 बीघा एवं 11 बिस्वा भूमि को कृष्ण मृगों के आश्रय स्थल विस्तार के लिए वन भूमि के तौर पर आरक्षित किया गया था। तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य के हिरणों को दो हिस्सों में बांटते हुए उनमें से जसवंतगढ़ क्षेत्र शिफ्ट किया जाएगा। इसके लिए संभावना है कि पहले चरण में अभयारण्य से 500 हिरण जसवंतगढ़ भेजे जाएंगे। बाद में 1000 से ज्यादा हिरण और भेजने का प्लान है। इसके लिए जसवंतगढ़ क्षेत्र को हिरणों के अनुरूप डवलप किया जा चुका है। तालछापर की तरह ही भूमि-घास व अन्य सुविधाएं पूरी की गई है।ताल छापर कृष्ण मृग अभयारण्य में हिरणों की संख्या ज्यादा होने पर शिफ्टिंग प्रक्रिया का प्लान बनाया गया था। इस अभयारण्य के क्षेत्रफल के अनुपात में पांच गुणा ज्यादा हिरण हैं। जसवंतगढ़ क्षेत्र में उन्हें शिफ्ट करने के लिए आरक्षित भूमि पर जूलीफ्लोरा हटाकर फैसिंग की गई है। अब हिरण शिफ्ट किए जाएंगे।
ग्रासलैंड विकसित करने के बाद हरिणों की शिफ्टिंग का कार्य
ताल छापर कृष्णमृग अभयारण्य में जमीन छोटी पड़ने और काले हिरणों की संख्या अधिक बढ़ने से उनकी शिफ्टिंग आवश्यक बन गई थी। अधिक संख्या के चलते उनमें महामारी फैलने की आशंकाएं भी थीं। इन हरिणों के लिए अनृय सुरक्षित ग्रासलैंड विकसित किया जाना आवश्यक था। बताया जाता है कि तालछापर अभयारण्य में करीब एक हजार हरिणों की क्षमता थी, लेकिन उनकी संख्या पांच हजार से भी बहुत अधिक हो चुकी थी। इसलिए इनके लिए दूसरा स्थान विकसित किया जाना आवश्यक बन चुका था। तब जसवंतगढ़ ग्राम पंचायत की बीहड़ में वर्ष 2017 में प्रदेश सरकार ने 281 हेक्टेयर भूमि काले हिरणों की शिफ्टिंग के लिए अवाप्त कर वन विभाग को आवंटित कर दी थी। इसके बाद आरपीएसी योजना में 15 लाख का बजट खर्च करके 273 हेक्टेयर भूमि के चारों तरफ करीब छह किमी लम्बी और चार फीट ऊंची खाई बनवा दी गई। बीहड़ में पानी रोकने के लिए मृदा एवं जल संरक्षण के तहत ट्रेंच बनाकर (क्यारियां) घास की बिजाई की गई। शिफ्टिंग से पहले हरिणों के लिए पानी का एक तालाब तैयार किया गया। राज्य सरकार ने इसके लिए हाईकोर्ट के आदेश से पौने दो करोड़ का बजट स्वीकृत किया गया था, उसी में ग्रासलैंड भी तैयार किया गया।
कैसे हो पाएगी हरिणों की सुरक्षित शिफ्टिंग
अब इन काले हरिणों की सुरक्षित शिफ्टिंग की जानी है। इसके लिए वन्यजीव विशेषज्ञों की देखरेख में तालछापर अभयारण्य से काले हिरणों की शिफ्टिंग ‘अफ्रीकन बोमा तकनीक’ अपनाई जाकर की जा सकती है। इसमें छोटे-छोटे बाड़े बना कर इन हिरणों को जसवंतगढ़ तक ले जाया जाएगा। तालछापर से जसवंतगढ़ की सीधी दूरी करीब 15 से 18 किमी के बीच होने और इस बीच एक मेगा हाइवे, एक राष्ट्रीय राजमार्ग व एक स्टेट हाइवे होने एवं किसानों द्वारा खेतों की सुरक्षा के लिए की गई चैन लिंक फेंसिंग बाधा बन सकती है। ‘अफ्रीकन बोमा तकनीक’ में छोटे-छोटे बाड़े बना कर वन्यजीवों को घास डाल कर एक ही दिशा में चलने हेतु प्रेरित किया जाता है। यह प्रक्रिया कई दिनों तक चलती है। सीधे तौर पर बड़े कंटेनर्स को प्राकृतिक सजावट के साथ घास डालकर हिरणों के झुंड को को उसमें बंद कर बड़े वाहनों के जरिए सडक़ मार्ग से हिरणों को जसवंतगढ़ में शिफ्ट किया जा सकता है। इसमें कमजोर ह्रदय वाले हिरणों की मौत होने का खतरा रहता है।