अयोध्या की गोलीबारी और ढांचे को ध्वस्त करने के साक्षी रहे लाडनूं के तेजकरण सांखला,
अब तक 8 बार अयोध्या जा चुके, कारसेवा में कभी भूख-प्यास और प्राणों की चिंता नहीं की, सदैव राम को समर्पित रहे
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalam Kala.in)। ‘लगातार 8 बार अयोध्या की यात्रा की। जब अयोध्या में पहली बार ताला खोला गया था, तब से लगातार कोई अवसर अयोध्या जाने का नहीं चूकता हूं। गत दीपावली पर भी अयोध्या जाकर आया, तब वहां मंदिर निर्माण कार्य चल रहा था।’ यह कहना है दो बार कारसेवा में जाकर आए लाडनूं के तेजकरण सांखला का। अयोध्या के बाबरी ढांचे के विध्वंश के समय वे वहीं मौजूद थे। अपने साथियों को छोड़ कर मना करने के बावजूद ध्वस्त करने के समय ढांचे में घुस गए थे। 6 दिसम्बर को ढांचा ध्वस्त हुआ और वे विध्वंश के 4 दिन बाद वापस अपने साथियों के पास लौटे। अयोध्या से उस समय तोड़े गए ढांचे से राममंदिर की एक ईंट भी वे वहां से निशानी के तौर पर लेकर आए और आज तक उसे संजोकर रखे हुए हैं। तेजकरण सांखला ने भगवा, राम-नाम लिखे कपड़े में लिपटी हुई ईंट दिखाते हुए कहा कि यह अयोध्या के ढांचे की निशानी है। उन्होंने यह ईंट और अपना कारसेवा का परिचय पत्र भी दिखाया। साथ में उन्होंने ‘कार-सेवक सूचना पत्रक’ भी दिखाया, जिसमें 13 सूचनाएं कारसेवकों के लिए दी गई थी।
गोलीबारी और बलिदानों को अपनी आंखों से देखा
लाडनूं में मालियों का मौहल्ला के रहने वाले 58 वर्षीय तेजकरण सांखला इस समय तहसील कार्यालय में बतौर अर्जीनवीस का काम कर रहे हैं। उन्होंने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि वे 30 अक्टूबर 1990 को पहली कार सेवा के दौरान अयोध्या में थे, जब वहां गोलियां चली थीं। उतर प्रदेश में मुलायमसिंह यादव मुख्यमंत्री थे और अयोध्या को लेकर उन्होंने सख्त रवैया अपना रखा था। अयोध्या में घुसने के सारे रास्ते बंद थे, कफ्र्यू लगा हुआ था। रास्ते में गिरफ्तारियां हो रही थी। इसके बावजूद वे कहीं पैदल, कहीं बस, कहीं अन्य साधन से और अंत में सरयू नदी को पार करके अयोध्या में 29 अक्टूबर को घुसे थे। 2 नवम्बर 1990 को गोलियां चलने लगी और खून-खराबा शुरू हो गया। वे दिगम्बर अखाड़े में थे। अयोध्या उनके साथ लाडनूं से उस समय देवाराम पटेल, श्यामसुन्दर शर्मा आदि भी गए थे। शरद कोठारी, रामकुमार कोठारी, सेठाराम परिहार मथानिया आदि 4 जनों का बलिदान उनके सामने हुआ था।
ढांचा पर चढे भी और गिराने व समतल करने तक थे अंदर
फिर वे 31 साल पहले 6 दिसम्बर 1992 को भी कारसेवा में अयोध्या पहुंचे। वे मरूधर एकसप्रेस ट्रेन को डेगाना रेलवे स्टेशन से पकड़ कर गए थे। लाडनूं से चन्द्रसिंह परिहार के नेतृत्व में 40 कारसेवक इसी ट्रेन से गए थे। इनमें मंगलपुरा व निम्बी जोधां के कारसेवक भी शामिल थे। उनके साथ जाने वालों में अनोपचंद सांखला, रेवंत माली, जयराम मोची, हनुमान सिंह सोलंकी, अनिल कुमार वर्मा, प्रतापसिंह निम्बी जोधां, बाबूलाल नाई, रतनलाल देवड़ा, रायबहादुर इंदौरिया, अजीत दर्जी, डूंगरसिंह चैहान, अशोक शर्मा आदि शामिल थे। 1992 में वे तीन बार गुम्बद पर चढे थे। कारसेवा के दौरान ढांचे पर कब्जा करने के बाद करीब एक से डेढ घंटे में ढांचा गिरा और उसके बाद उसे समतल बनाया। अपने साथियों से वे 4 दिन बाद ही वापस मिल पाए। इसी दौरान वहां से एक ईंट की निशानी साथ लेकर आए और उसे आज तक सुरक्षित रखे हुए हैं।
सौगंध खाकर रहे अविवाहित
तेजकरण सांखला की अयोध्या और रामजन्मभूमि में इतनी गहरी आस्था रही कि उस समय चल रहे नारे‘ रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वही बनाएंगे; का पूरा अनुसरण करते हुए मंदिर निर्माण होने तक विवाह नहीं करने की सौगंध ग्रहण कर ली। इसी कारण से वे आज तक अविवाहित है। अब राम मंदिर निर्माण होने और प्राण-प्रतिष्ठा होने पर अपनी शादी के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कि उम्र 58 वर्षों की हो चुकी है, अब शादी करने का कोई औचित्य नहीं है। वे भारतीय संस्कृति को मानते हैं और वृद्ध-विवाह को अनुचित मानते हैं।