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त्याग से जीवन में नियंत्रण और समता भाव बढते हैं- मुनिश्री कौशल कुमार, लाडनूं में पर्युषण पर्वाराधना कार्यक्रम में व्रत चेतना दिवस मनाया

त्याग से जीवन में नियंत्रण और समता भाव बढते हैं- मुनिश्री कौशल कुमार,

लाडनूं में पर्युषण पर्वाराधना कार्यक्रम में व्रत चेतना दिवस मनाया

लाडनूं (kalamkala.in)। पर्युषण महापर्व के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान में चल रहे सात दिवसीय पर्युषण पर्वाराधना कार्यक्रम में गुरूवार को व्रत चेतना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर अमेरिका से लौटे मुनिश्री महाश्रमण के विद्वान शिष्य मुनिश्री कौशल कुमार ने कहा कि व्रत जीवन में सार्थकता लाने में उपयोगी सिद्ध होते हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सार्थकता होने पर उसकी उपयोगिता बढ जाती है। उन्होंने कहा कि त्याग की शक्ति बढाने से आत्मनियंत्रण बढता है और आत्मनियंत्रण से जीवन शैली में परिवर्तन आता है, साधनों की वृद्धि हो जाती है। त्याग जीवन में समता को बढाता है। इसका चिंतन करने से जीवन में पवित्रता आती है। हमें संतोष का अभ्यास करना चाहिए।

संयम से आता है जीवन पर नियंत्रण

मुनिश्री कौशल कुमार ने हाल में किए गए विभिन्न वैज्ञानिक प्रयेागों व अनुसंधान का उल्लेख करते हुए अध्यात्म की बातों को सिद्ध किया और बताया कि आप अपनी किसी पसंदीदा चीज पर संयम करें व प्रयोग करके देखें। आपने उसे छोड़ दिया तो आप अपने जीवन पर भी नियंत्रण कर पाएंगे। इस त्याग की शक्ति को बढाते रहना चाहिए। उन्होंने आत्मनियंत्रण एवं अणुव्रत चेतना  के लिए तीन आयाम बताए। इन नशामुक्ति, सद्भावना और नैतिकता इन तीनों आयामों के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि अंदर से उठने वाले आवेगों, इच्छाओं में धैर्य की आवश्यकता रहती है। आज व्यक्ति फास्ट बनता जा रहा है, जिन गतिविधियों को मंद होना चाहिए, वे भी इस प्रतिस्पर्धा में फास्ट बन गई है। व्यक्ति आराम से सोच भी नहीं पाता, इससे उसके निर्णय प्रभावित होते हैं। नियंत्रण से हृदय परिवर्तन आता है।

लाभ से लोभ बढता है, प्रामाणिकता मिटती है

सद्भावना के लिए मुनिश्री कौशल कुमार ने कहा कि आज प्रमोद भावना बढ रही है। सद्भावना और नियंत्रण की शक्ति एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। शीघ्रता करने से नियंत्रण की शक्ति कम हो जाती है। अपने मस्तिष्क को व्यापक बनाना चाहिए। नैतिकता के बारे में मुनिश्री ने बताया कि अनावश्यकता में प्रमाणिकता नहीं होती, वहां सब शिक्षाएं गौण हो जाती है और आवश्यक और अनावश्यक का भेद नहीं रहता। उन्होंने सफलता व लाभ का जोड़ा बताते हुए कहा कि जैसे-जेसे लाभ बढता जाता है, वैसे-वैसे लोभ भी बढता जाता है।

व्रतों से होती है संकल्प-सिद्धि

कार्यक्रम के अध्यक्ष कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने व्रतों की संकल्प सिद्धि का माध्यम बताया और कहा कि व्रत चाहे छोटे हों या बड़े और जीवन के किसी भी क्षेत्र में हों, उनसे संकल्पशक्ति का विकास संभव होता है। उन्होंने बताया कि मुनिश्री कौशल कुमार की माता का देहांत 3 दिन पूर्व ही हुआ है और एक माह पूर्व इनके पिता का निधन हो गया था, फिर भी यह इनकी संकल्प शक्ति का ही परिणाम है कि वे पूर्ण समता के भावों के साथ हमारे बीच उपस्थित हैं। कार्यक्रमके संयोजक प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने प्रारम्भ में पर्वराज पर्युषण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए व्रतों व अणुव्रतों के बारे में जानकारी दी और आचार्य तुलसी के अणुव्रत आंदोलन के बारे में बताया। साथ ही उन्होंने मुनिश्री कौशल कुमार का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए उनका स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. बीएल जैन ने किया। इस अवसर पर प्रो. दामोदर शास्त्री, प्रो. जिनेन्द्र जैन, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डा. रामदेव साहू, डा. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डा. लिपि जैन, डा. रविन्द्र सिंह राठौड़, डा. बलबीर सिंह, डा. आभासिंह, डा. अमिता जैन, पंकज भटनागर, डा. जेपी सिंह आदि सभी संकाय एवं स्टाफ सदस्य उपस्थित रहे।

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