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आधुनिक व्यवस्थाओं में आवश्यक तत्व हैं भगवान महावीर के सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र- डा. मन्ना, महावीर जयंती पर प्राचीन मूल्य आधारित शिक्षा के आदर्श माॅडल पर चर्चा

आधुनिक व्यवस्थाओं में आवश्यक तत्व हैं भगवान महावीर के सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र- डा. मन्ना,

महावीर जयंती पर प्राचीन मूल्य आधारित शिक्षा के आदर्श माॅडल पर चर्चा

लाडनूं। चंडीगढ विश्वविद्यालय के प्रो वायस चांसलर डा मनप्रीत सिंह मन्ना ने ‘प्राचीन मूल्यों पर आधारित शिक्षा के आदर्श मॉडल’ के बारे में बोलते हुए कहा कि कि शिक्षक को किसी कुर्सी या कार्यालय की चाह नहीं होती है, शिक्षक को तो सिर्फ सम्मान चाहिए। आज से 20 साल पहले विद्यार्थी शिक्षक को जो सम्मान प्रदान करते थे, वह आज नहीं रहा। आज का विद्यार्थी की सोच में पैसे चुका कर शिक्षा हासिल करने की भावना प्रबल हो गई है, जबकि विद्यार्थी के लिए रोल माॅडल के रूप में शिक्षक होना चाहिए, न कि कोई अभिनेता। वे भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत इंडियन काउंसिल आॅफ फिलोसोफिकल रिसर्च नई दिल्ली के सौजन्य से जैन विश्वभारती संस्थान के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभा के तत्वावधान में यहां आचार्य महाश्रमण आॅडिटोरियम में आयोजित महावीर जयंती समारोह में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने दूरस्थ शिक्षा का महत्व बताते हुए ‘स्वयं’ पोर्टल का महत्व समझाया और उसका इजाद किए जाने की पूरी कहानी बताई। डा. मन्ना ने कहा कि गूगल और तोते में कोई अंतर नहीं है। अगर कोई गलत तथ्य बार-बार पोस्ट किया जाता है, तो गूगल उसी को सत्य के रूप में दिखाने लगता है। उन्होंने भगवान महावीर के सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र के सिद्धांत के महत्व को आधुनिक व्यवस्थाओं में आवश्यक तत्व के रूप में उजागर किया। उन्होंने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पांच वैश्विक मूल को बताते हुए सत्य, शांति, अहिंसा, प्रेम व सदाचरण के महत्व को प्रतिपादित किया।

मानवीय मूल्यों पर ध्यान पर हों अल्पकालीन पाठ्यक्रम

एआईसीटीई नई दिल्ली के पूर्व निदेशक डा. मन्ना ने स्वाध्याय के महत्व को बताते हुए कहा कि तकिए के बगल में पुस्तक को होना जरूरी है, अगर उसकी जगह मोबाईल ने लेली तो जीवन बेकार हो जाता है। उन्होंने नवीन तकनीक को हर आयु में सीखते रहने के साथ प्राचीन मूल्यों को अंगीकार करना आवश्यक बताया और कहा कि परिवार में बुजुर्गों का काम यही होता था। डा. मन्ना ने देश के 1100 से अधिक विश्वविद्यालयों में अन्य शिक्षा के साथ आचरण की शिक्षा दिए जाने को आवश्यक बताया। उन्होंने बताया कि वे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक 457 विश्वविद्यालयों का भ्रमण कर चुके हैं। सबको विजन और मिशन अलग-अलग होता है, लेकिन यह विश्वविद्यालय उन सबसे अलग है। इसका जो विजन और मिशन है, वह देश के प्रत्येक व्यक्ति व परिवार को होना चाहिए। मूल्यों व आचरण आधारित शिक्षा सबसे अधिक महत्व रखती है। उन्होंने कहा कि इसके लिए छोटे-छोटे मानवीय मूल्यों, ध्यान आदि से सम्बंधित अल्पकालीन कोर्सेज का संचालन किया जाना चाहिए। उन्होंने अपने सम्बोधन में बार-बार जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के शांत व आध्यात्मिक वातावरण की प्रशंसा की और कहा कि जहां 500 से अधिक मोर बेधड़क विचरण करते हों, उनका पोषण होता हो, वह स्थान निश्चित रूप से शांत व आध्यात्मिक होता है। उन्होंने कहा कि किसी भी शोध का लाभ अगर आम आदमी के उपयोगी नहीं होता है, तो वह शोध किसी काम की नहीं रहती। समारोह के द्वितीय चरण में विशिष्ट अतिथि डा. इन्द्रप्रीत कौर ने पाॅवर प्रजेंटेशन के माध्यम से काॅपीराइट और पेटेंट के महत्व को उजागर करते हुए सरल भाषा में किसी भी आइडिया, खोज और निर्माण आदि का पेटेंट करवाने के सम्बंध में जानकारी प्रदान की।

सबसे पहले सोचें तथा नया सोचें

समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने ‘सबसे पहले सोचें और नया सोचें’ का संदेश दिया और कहा कि भगवान महावीर ने कहा था, स्वयं सत्य खोजें। व्यक्ति सत्य की खेज अपने स्तर पर कर सकता है। व्यक्ति को स्वयं का निर्माण करना चाहिए, जिसके लिए पुरूषार्थ जरूरी होता है। विनोबा भावे का उद्धरण देते हुए उन्होंने कहा किे महावीर ने सबसे पहले महिलाओं दीक्षित करने और उन्हें पुरूष के समान मानने का काम किया था। उन्होंने इस अवसर पर नई शिक्षा नीति की कुछ व्यावहारिक समस्याओं के बारे में भी बताया। कार्यक्रम में ओएसडी प्रो. नलिन के. शास्त्री ने अतिथि परिचय प्रस्तुत किया। स्वागत वक्तव्य विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने प्रस्तुत करते हुए बताया कि महावीर के सिद्धांत विज्ञानपरक हैं। उन्होंने मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान दिया था और शारीरिक, मानसिक व भावात्मक स्वास्थ्य के सूत्र बताए थे। महावीर ने स्वस्थ समाज की संरचना का मार्ग दिखाया था। उनके सूत्रों को जीवन में उतारा जाना आवश्यक है। प्रारम्भ में प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय का परिचय प्रस्तुत करते हुए बताया कि जैन सिद्धांतों पर आधारित 100 छोटी-छोटी पुस्तिकाएं तैयार की जा रही हैं, जिनमें से 15 पुस्तकें तैयार हो चुकी हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय में शिक्षा के साथ संस्कारों के उन्नयन और आध्यात्मिक प्रेरणा की विशेषता बताई। समण प्रणव प्रज्ञा के मंगल संज्ञान से कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लूंकड़, मुख्य ट्रस्टी रमेश सी. बोहरा व पूर्व अध्यक्ष डा. धर्मचंद लूंकड़ थे। संचालन प्रो. एपी त्रिपाठी ने किया।

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