गहरे पानी पैठ-
क्या है लाडनूं आर्य समाज के चुनावों की असलियत? पर्दे के पीछे छिपी है घिनौनी साजिश,
आर्य समाज संस्थान लाडनूं के चुनाव में नोपाराम अध्यक्ष बने
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। आर्य समाज संस्थान लाडनूं के द्विवार्षिक चुनाव में तीन पदों के चुनाव निर्वाचन अधिकारी मोहनलाल आर्य की देखरेख में करवाए गए। इस चुनाव में सर्वसम्मति से अध्यक्ष पद पर नोपाराम आर्य को चयनित घोषित किया गया। मंत्री पद पर यशपाल आर्य और कोषाध्यक्ष पद पर अनिल पिलानिया कसूम्बी को भी सर्वसम्मति से चुना गया। इन नवनिर्वाचित तीनों पदाधिकारियों पर अपनी कार्यकारिणी गठित करने का भार सौंपा गया।
इनके द्वारा घोषित प्रबंधकारिणी समिति में उपाध्यक्ष पद पर बाबूलाल तिवाड़ी, उपमंत्री महालचन्द टाक, प्रचार मंत्री डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल, हिसाब परीक्षक सुखवीर आर्य, पुस्कालयाध्यक्ष सतीशकुमार शर्मा, यज्ञ प्रभारी रिपुदमनसिंह, संगठन मंत्री उतम शर्मा को बनाया गया। इनके अलावा कार्यकारिणी सदस्यों के रूप में हरजी सैनिक, मुरली मनोहर टाक, राजकुमार किरोड़ीवाल, बाबूलाल आर्य, कर्णपाल चौहान
को शामिल किया गया है।
लम्बे समय से चल रहा है विवाद
यहां गौर करने लायक है कि आर्यसमाज एक वैश्विक संगठन है, जिसका केन्द्रीय संगठन सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के साम से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहा है। इस संगठन के अन्तर्गत देश के सभी प्रांतों में प्रांतीय/ प्रादेशिक आर्य प्रतिनिधि सभाओं का गठन किया गया है। राजस्थान में राजस्थान आर्य प्रतिनिधि सभा गठित है, जिसका मुख्यालय जयपुर है। पूरे राजस्थान प्रदेश में समस्त आर्य समाजों का गठन इसी प्रांतीय सभा के अन्तर्गत गठित होता है। अलग से बनाया गया संगठन मान्य नहीं माना जाता। लाडनूं में आर्य प्रतिनिधि सभा राजस्थान के अन्तर्गत भी आर्य समाज लाडनूं का गठन अलग से काम कर रहा है और कुछ लोगों ने आर्य समाज संस्थान के नाम से अनधिकृत रूप से अलग संगठन बना रखा है, जो आर्य प्रतिनिधि सभा के नियमों के विपरीत है।
आर्य समाज संगठन व चुनाव के नियम, कितना व कैसा पालन हुआ?
आर्य समाज के चुनाव द्विवार्षिक नहीं होकर प्रतिवर्ष करवाए जाते हैं। आर्य समाज में ‘अध्यक्ष’ व ‘उपाध्यक्ष’ पद नहीं होते। इन पदों के पदनाम ‘प्रधान’ व ‘उप प्रधान’ होते हैं। आर्य समाज में सदस्यता के लिए संकल्प होता है। हर सदस्य चुनाव में भाग नहीं ले सकता और पदाधिकारी नहीं बन सकता। इसके लिए उसे सदस्य से आगे बढ़ कर सभासद् बनना पड़ता है। सभासद् बनने के लिए भी नियम है। आर्य समाज के नियम सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा जारी किए जाते हैं, उनका पालन ही वैधानिक माना जाता है। इसकी एक पुस्तक भी सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा पब्लिश की हुई है। इसके अलावा भी बहुत सारे बिंदुओं को लेकर विवाद चल रहे हैं।
एक सौ साल से पुराना है, लाडनूं का आर्यसमाज और इसका भवन
लाडनूं आर्य समाज 100 साल से अधिक पुराना संगठन है। यहां आर्य समाज का स्वयं का भवन भी राहू गेट के बाहरी तरफ 100 सालों से मौजूद है। इस भवन में कालांतर में दुकानें भी बनी और किराया शुरू हो गया। अब तो इसी में बैंक का संचालन भी किया जाने लगा। बढ़ती आमदनी ने परस्पर विवाद पैदा किए और लाडनूं की सबसे उम्दा जगह पर बेशकीमती सम्पत्ति होने से इस पर लोगों की गिद्ध दृष्टि होनी भी स्वाभाविक थी और ऐसा ही हो रहा है। आर्य समाज का संगठन यहां पिछले 100 सालों से अनवरत सक्रिय रूप से संचालित है। इसके बावजूद कुछ लोगों ने इसी से मिलते-जुलते नाम से अलग संगठन बना कर फर्जी तरीकों से रजिस्ट्रेशन करवा कर प्राचीन धरोहर को हड़पने की नियत से अपने पैंतरे आजमाने शुरू कर रखे हैं। इसे आर्य समाज के सभी पुराने कार्यकर्ता अनुचित व निंदनीय मानते हैं।
नाम के हेरफेर से दो-दो संगठन क्यों? दोनों संगठनों में भी पद लेने की होड़
नाम का मामूली हेरफेर करके दो-दो संगठन खड़े करके चलाना, आर्य समाज के प्रति निष्ठा और समर्पण नहीं, बल्कि यह सिर्फ सम्पत्ति और आय को दृष्टिगत रखते हुए किए गए प्रयास ही हैं। आर्य समाज के सिद्धांतों व विचारधारा के विपरीत लोगों ने घुसपैठ करके आर्य समाज को पूरी तरह भटका दिया है। पुराने आर्य समाज के कर्ता-धर्ता आज अलग होकर बैठे हैं तथा नकली सदस्य आर्य समाज के नाम से अपना सांगठनिक जुगाड़ चलाने लगे हैं। इसे लेकर जो विवाद चल रहे हैं, उसका निपटारा करके एकता बनाने और एक संस्था का विघटन करके परस्पर विलय का प्रयास करना चाहिए, जिसका अभाव निश्चित रूप से आर्य समाज को भारी नुकसान पहुंचाएगा। समझदार वरिष्ठजनों को आगे आकर इस विवाद का निपटारा करवाना चाहिए। आज जो लोगों में संस्थाओं पर कब्जा करने की जो भावनाएं बलवती हो रही है, उसे समाप्त करना जरूरी है और यह सब निष्ठा, त्याग और समर्पण के बिना संभव नहीं है। दोनों संगठनों में पद लेने की होड़ भी देखी गई है, जो बहुत हानिकारक सिद्ध होगी।
