भारतीय ज्ञान परंपरा को शोध एवं विकास का प्रमुख आधार बनाया जाए- डॉ. भोजक,
संकाय संवर्धन कार्यक्रम के अंतर्गत ‘भारतीय ज्ञान परंपरा एवं आधुनिक पाठ्यचर्या’ पर व्याख्यान आयोजित
लाडनूं (kalamkala.in)। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020) शिक्षा के सभी स्तरों पर पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) को शामिल करने की सिफारिश करती है। प्राचीन और शाश्वत विचार की विरासत इस नीति के लिए मार्गदर्शक रही है। ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को हमेशा भारतीय विचार और दर्शन में सर्वोच्च मानव लक्ष्य माना जाता था। भारतीय शिक्षा प्रणाली ने चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, जैसे कई अन्य महान विद्वानों ने गणित, खगोल विज्ञान, धातु विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और सर्जरी जैसे विविध क्षेत्रों में विश्व ज्ञान में मौलिक योगदान दिया। विश्व विरासत में इन महत्वपूर्ण व समृद्ध विरासतों को भावी पीढ़ी के लिए पोषित और संरक्षित किया जाना चाहिए और हमारी शिक्षा प्रणाली के माध्यम से शोध, संवर्द्धन और नए उपयोग में लाया जाना चाहिए। ये विचार डा. गिरीराज भोजक ने जैनविश्व भारती संस्थान के शिक्षा विभाग में संचालित ‘संकाय संवर्धन कार्यक्रम’ में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा एवं आधुनिक पाठ्यचर्या’ विषय पर अपने व्याख्यान में प्रस्तुत किए। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख प्रावधानों के अनुसार आधुनिक पाठ्यचर्या में होने वाले परिवर्तनों हेतु भारतीय ज्ञान परंपरा से सम्बंधित सिफारिशों पर प्रकाश डाला और बताया कि स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर कुल क्रेडिट का कम से कम 5 प्रतिशत आईकेएस को आवंटित करना चाहिए एवं उसका 50 प्रतिशत प्रमुख विषयों से संबंधित होना चाहिए। आईकेएस पाठ्यक्रम प्रामाणिक स्रोतों पर आधारित होना चाहिए, जिनके स्रोत ग्रंथ, ऐतिहासिक दस्तावेज, अन्य साक्ष्य व समाजशास्त्रीय रिकॉर्ड प्रमुख हों।
उन्होंने पाठ्यक्रमों के माध्यम के बारे में बताया कि आईकेएस पाठ्यक्रमों के लिए शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी और संस्कृत के अलावा कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है, जिसे उच्च शिक्षा में शिक्षा के माध्यम के रूप में अनुमोदित किया गया है। अंग्रेजी में तैयार किसी भी पाठ्यक्रम सामग्री के लिए संस्कृत स्रोतों से सभी तकनीकी शब्द और उद्धरण देवनागरी लिपि के साथ-साथ अंग्रेजी लिप्यंतरण में दिए जाने चाहिए। स्नातक कार्यक्रम के पहले चार सेमेस्टर के दौरान इन 50 प्रतिशत अनिवार्य क्रेडिट में से कम से कम आधा विशेषज्ञता के प्रमुख क्षेत्र से तथा शेष अनिवार्य क्रेडिट को अनिवार्य बहु-विषयक पाठ्यक्रमों के एक भाग के रूप में शामिल किया जा सकता है। सभी विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान प्रणाली में एक मूलभूत पाठ्यक्रम लेना चाहिए, जिसमें स्नातक कार्यक्रम के लिए प्रासंगिक आईकेएस की सभी धाराओं का समग्र परिचय दिया जाए।
आईकेएस में पाठ्यक्रमों और क्रेडिटों की संख्या को मुख्य अनुशासनात्मक पाठ्यक्रमों एवं बहुविषयक पाठ्यक्रमों में विभाजित किया जा सकता है। छात्रों को स्नातक कार्यक्रम के सातवें या आठवें सेमेस्टर में अपने प्रोजेक्ट कार्य के लिए आईकेएस से संबंधित एक उपयुक्त विषय चुनने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। आईकेएस को विद्यार्थी किसी भी विषय में इंटर्नशिप/प्रशिक्षुता का विकल्प चुन सकते हैं।
आईकेएस का हिस्सा होने वाले विषयों में ऐसे स्नातकोत्तर कार्यक्रमों को मंजूरी मिलने और पढ़ाए जाने के बाद, इन विषयों में नेट परीक्षा आयोजित करने के लिए वही पाठ्यक्रम अपनाया जा सकता है, जो आईकेएस का हिस्सा हैं।
उन्होंने आईकेएस के संवर्धन हेतु सभी छात्रों को आईकेएस का हिस्सा बनने वाले विभिन्न विषयों की सामान्य अंतर्निहित दार्शनिक आधार से अवगत कराया जाने पर बल दिया। प्राथमिक और माध्यमिक संसाधनों की एक विस्तृत श्रृंखला विषय-विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा विकसित किया जा सकता है और शिक्षकों को अंग्रेजी एवं हिंदी के साथ क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराया जा सकता है। छात्रों को आईकेएस के अनुभवात्मक पहलुओं में कुछ आधार देने के लिए योग, ध्यान, आयुर्वेद, शास्त्रीय संगीत, भारतीय शिल्प परंपराओं आदि पर कुछ प्रायोगिक सत्रों की व्यवस्था की जानी चाहिए। पाठ्यक्रम के विकास को आईकेएस में शिक्षक-प्रशिक्षण के साथ निकटता से एकीकृत किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम में डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. आभा सिंह, डॉ. गिरधारीलाल शर्मा, डॉ. ममता पारीक, देवीलाल कुमावत, स्नेहा शर्मा एवं खुशाल जांगिड उपस्थित रहे I
