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समानता पर काम करने पर महिलाएं भी सशक्त बनेंगी और राष्ट्र भी होगा सशक्त- डा. एस. रमादेवी, लाडनूं में ‘सशक्त नारीःसशक्त राष्ट्र’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार सम्पन्न

समानता पर काम करने पर महिलाएं भी सशक्त बनेंगी और राष्ट्र भी होगा सशक्त- डा. एस. रमादेवी,

लाडनूं में ‘सशक्त नारीःसशक्त राष्ट्र’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार सम्पन्न

लाडनूं। इंडियन कौंसिल आफ सोशल साईंस रिसर्च नई दिल्ली के प्रायोजन में यहां जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के समिनार हाॅल में जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के तत्वावधान में ‘सशक्त नारी: सशक्त राष्ट्र’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार शुक्रवार को सम्पन्न हुआ। सेमिनार के समापन समारोह की मुख्य अतिथि ‘युनिवर्सिटी न्यूज’ की सम्पादक एवं विदुषी डा. एस. रमादेवी पाणि ने नारी की समस्याओं और लक्ष्य को इंगित करते हुए कहा कि देश भर में 1100 विश्वविद्यालय हैं, उनमें महिला कुलपतियों की संख्या मात्र 7 प्रतिशत ही है। विश्वविद्यालय महिला सशक्तिकरण के नीतिगत विषय पर काम किया जाए, तो समस्याओं का समाधान संभव हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में सभी तरह की नीतियां मौजूद हैं, लेकिन वे पूर्ण रूप से अभ्यास में नहीं आ पाती हैं। विश्वविद्यालयों को सामाजिक सरोकारों से जुड़ना चाहिए। विश्वविद्यालय अगर अच्छा काम करें, तो विभिन्न वैश्विक समस्याओं को दूर किया जा सकता है। अध्यापन, शोध और समुदाय से सम्बद्धता प्रत्येक विश्वविद्यालय के लिए आवश्यक है। सामाजिक बदलाव के लिए आवश्यक है कि पाठ्यपुस्तकों में लैंगिक समानता सम्बंधी विषयों का ध्यान रखा जाए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों में ‘वीमेन स्टडी सेंटर’ संचालित किए जाते हैं, मगर वे भी महिलाओं की समस्याओं के समाधान कर पाने में सफल नहीं रहे हैं। भारत उच्च शिक्षा में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। अगर यह समानता पर काम करे तो महिलाएं भी सशक्त बनेंगी और राष्ट्र भी सशक्त हो पाएगा।

सशक्त व समर्थ भारत के लिए महिलाओं की सशक्ति आवश्यक

समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो. नलिन के. शास्त्री ने कहा कि सशक्त व समर्थ भारत बनाने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना आवश्यक है। आचार्यश्री तुलसी ने नारी के गरिमामय जीवन व मानवीय जीवन व्यवहार के क्षेत्र में बहुत काम किया था और उन्हीं के स्वप्न के आधार पर बना जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय महिला क्षेत्र में बहुत कार्य कर रहा है। उन्होंने इस सम्बंध में किए जा रहे विभिन्न उत्कृष्ट कार्यों का विवरण भी प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि अध्यात्म नारी को सुरक्षा प्रदान करता है और उसे सबलता व आत्मसम्मान प्रदान करता है। उन्होंने औरतों को पुरूष के समान बनने या बार्बी डाॅल की तरह बनने को अनुचित बताया तथा कहा कि भारत संस्कृतियों का संगम रहा है, इस देश में नारी को संस्कृति के केन्द्र में रहना आवश्यक है। अपने अधिकारों और सम्मान के प्रति जागरूक रह कर ही नारी समन्वय व संतुलन बनाए रख सकती है। मातृसतात्मकता और पितृसतात्मकता दोनों के बजाए समन्वयवादी सोच होनी आवश्यक है।

अपनी शक्ति पहचानें व राष्ट्र के लिए योगदान करें 

जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने शक्ति, सम्पदा व शिक्षा को सबके लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इन तीनों की अधिष्ठात्री देवियों के रूप में नारी ही है, जो दुर्गा, लक्ष्मी व सरस्वती के रूप में हम मानते आए हैं। उन्होंने महिलाओं से अपेक्षा की कि वे अपनी शक्तियों को पहचानें और देश को सशक्त बनाने में अपना योगदान दें। प्राकृत व संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. जिनेन्द्र जैन ने दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रसतुत किया तथा कहा कि इस राष्ट्रीय सेमिनार में विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत शोधपत्रों का पुस्तकाकार रूप में प्रकाशन करवाया जाएगा। इस अवसर पर सम्भागी प्रो. हामिद अंसारी इंदौर व डा. पिंकी कोटा ने अपने अनुभव साझा किए। समारोह का प्रारम्भ्ज्ञ सरस्वती पूजन व मंगलाचरण द्वारा किया गया। अतिथि परिचय प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया। अंत में डा. सत्यनारायण भारद्वाज ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

हुआ 45 शोधपत्रों का वाचन 

इस दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में कुछ छह सत्र आयोजित किए गए, जिनमें देश भर से आए विभिन्न वि़द्वानों ने 45 शोधपत्र प्रस्तुत किए। प्रो. धर्मचंद जैन जयपुर, डा. रिंकी कोटा, डा. जितेन्द्र कुमार सिंह जयपुर, डा. सुन्दर शांडिल्य जयपुर, डा. तारावती मीना, डा. रामकिशोर यादव जयपुर, डा. ज्योतिबाब जैन उदयपुर, डा. सुमत कुमार जैन, डा.कृष्णमोहन जोशी उदयपुर, डा. जसवंतसिंह चैधरी, नवीन कुमार जोशी, डा. तबस्सुम चैधरी अलीगढ, डा. रितिक जादौन अलीगढ, असलम अलीगढ,  प्रो. हदीस अंसारी इंदोर, रेखा बडाला, नीलम जैन उदयपुर, डा. योगेश जैन भोपाल आदि विद्वानों ने सेमिनार में स्वतंत्रता संग्र्राम में महिलाएं, पर्यावरण संरक्षण में योगदान, स्त्री पत्रकारिता, राजस्थानी, उर्दू व हिन्दी साहित्य में महिलाओं का योगदान, सामाजिक चेतना की अभिव्यक्ति आदि विभिन्न महिला केन्द्रित विषयों पर पत्र-वाचन किए गए। इन छह सत्रों के शुरू में उद्घाटन सत्र में हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जन संचार विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुधि राजीव ने देश में महिलाओं की स्थिति का सटीक चित्रण करते हुए कहा है, ‘ये कैसी तस्वीर बनाई है हमने, सिर पर ताज और पैरों में जंजीर बनाई है हमने।’ प्रो. सुधि ने महिलाओं की राजनीतिक भूमिका के बारे में बताते हुए कहा कि महिलाएं सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होती है। भारत को तीसर सबसे बड़ा देश बताते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं की भूमिका यहां मात्र 10 प्रतिशत ही है। महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाब हैं, उनका प्रतिनिधित्व बढाया जाना चाहिए। अध्यक्षता करते हुए जैविभा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने सामाजिक बदलाव की आवश्यकता बताते हुए कहा कि देश में अभी भी महिलाओं की स्थिति कोई अच्छी नहीं है। महिलाओं को उनकी मजबूरियों से मुक्त करना होगा और उन्हें सशक्त बनाना होगा। महिलाओं के सशक्त होने से निश्चित ही राष्ट्र सशक्त बनेगा। विशिष्ट अतिथि राजस्थान प्राकृत भाषा एवं साहित्य अकादमी के अध्यक्ष प्रो. धर्मचंद जैन ने कहा कि नारी के लिए चरित्रनिष्ठा, स्वतंत्रता, निर्भयता, विवेकशक्ति सम्पन्नता, आत्मनिर्भर होना, सीखने की प्रवृति, संतुलन व समन्वयवादिता, सहिष्णुता आदि गुणों की आवश्यकता रहती है। इनके आने से ही वह सशक्त नारी बन पाएगी और राष्ट्र के लिए भी अपना योगदान देकर सशक्त राष्ट्र निर्मित कर पाएगी।
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Author: kalamkala

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