मुख्यमंत्री गहलोत की जुबान फिसली नहीं, सचिन को गद्दार कहना सोची समझाी रणनीति थी,
अशोक गहलोत को हटाने और सचिन को सीएम बनाने की चाल को दिया करारा जवाब,
गहलोत के सामने निर्बल, निरीह, निशक्त और बधिया हो चुका है कांग्रेस हाई कमान
राजस्थान की राजनीति बौखला गई है, कांग्रेस हाईकमान बदहवास है। स्वयंभू कप्तान प्रमोद कृष्णम जिस फैसले के लिए कह कर गए थे, जो सुनाया जाना बाकी था, वह मुख्यमंत्री गहलोत को उनसे पहले पता चल गया था। उन्हें लग गया था कि लिख दिया गया फैसला सुनाया जाने वाला है और उन्हें हटाए जाने की कवायद शुरू हो चुकी है। यही वजह रही कि उन्होंने भी अपना दो टूक जवाबी हमला हाईकमान तक पहुंचा दिया। उन्होंने एक टीवी चैनल को बाकायदा मैनेज करके बमबारी कर दी। जो रहस्य उन्होंने सोनिया, राहुल, प्रियंका, वेणु गोपाल और खड़गे के सामने पहले ही रख दिया था, अब उसे मीडिया के सामने भी परोस दिया है, ताकि राजस्थान की जनता जान सके। सचिन पायलट की जिन करतूतों को अंधेरे में रखकर, उनकी ताजपोशी का फैसला लिख दिया गया था, वह गहलोत ने अपनी दलील के साथ सामने ला दिया है। नकारा, निकम्मा, बागी, गद्दार नेता को फिर भी यदि मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो फिर यह बहुमत को यह स्वीकार नहीं होगा।
गहलोत को हटाया तो राज्य से साफ हो जाएगी कांग्रेस
इस ऐलान के बाद हाईकमान सकते में आ गया है। अशोक गहलोत ने यह मौखिक बम सचिन पायलट की सेवा में प्रस्तुत नहीं किया, यह हाईकमान के लिए था। उन्होंने अपना फैसला साफ कर दिया है कि यदि उन्हें हटाया गया और सचिन को मुख्यमंत्री बनाया गया, तो सारा किया धरा गुड गोबर हो जाएगा। अब मीडिया में कहा जा रहा है कि कांग्रेस के महामंत्री वेणुगोपाल 29 नवंबर को जयपुर आ रहे हैं। वह कोई तूफानी फैसला लेंगे। मगर कांग्रेस हाईकमान के दांत अब हाथी जैसे हो गए हैं। देखने के कुछ, दिखाने के कुछ और। हाईकमान से कुछ नहीं होगा। जो हाईकमान शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ को हटाने का फैसला ही नहीं ले पाया, वह अशोक गहलोत को क्या हटाएगा। महामंत्री वेणुगोपाल ने पहले भी निर्देश दिए थे कि नेता मर्यादा में रहें, बोलने में संयम बरतें। उनकी तब भी किसी नेता ने नहीं सुनी। राजस्थान में तो हर नेता बयानवीर है। सूरमा भोपाली! सर हथेली पर रखकर बयान देता है। न सचिन कम, न गहलोत। गहलोत ने तो इस बार सारे संयम ही ताक पर रख दिए हैं। महामंत्री वेणुगोपाल जयपुर सिर्फ और सिर्फ राहुल की भारत जोड़ो यात्रा को, कांग्रेस तोड़ो यात्रा बनने से बचाने के लिए आ रहे हैं। सचिन और गहलोत के पंगे में कहीं पंजा न फंस जाए। वह इसके इतर कुछ नहीं करने वाले।
जिन्हें रतौंधी का रोग, वे करते हैं गहलोत का विरोध
जो यह सोचते हैं कि वह आते ही गहलोत को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा देंगे, वह उस पक्षी की तरह हैं जिन्हें सिर्फ रात में ही दिखाई देता है। सचिन पायलट अपने दिल में अच्छी तरह जानते हैं कि उन्होंने गहलोत को सत्ता-निकाला देने के लिए भाजपा से कभी हाथ मिला लिए थे। वह बराबर अमित शाह और उनके दूत धर्मेंद्र प्रधान के संपर्क में रहे थे। भारी रकम का प्रसंग भी वह अभी तक झुठला नहीं पाए हैं। यदि उन पर गहलोत गद्दार होने का गलत आरोप लगा रहे होते तो सचिन को आक्रामक मुद्रा में आ जाना चाहिए था। कानून का सहारा लेना चाहिए था, मगर शायद उनके मन में चोर है। वह ऐसा कुछ नहीं करेंगे। उन्हें पता है कि वह गहलोत के आरोपों को काट नहीं सकते। काटने पर उनकी खुद की छवि कट जाएगी।
सब षड्यंत्रों पर फेरा पानी
बात अब बयानों और खबरों में ही सिमटी रहेगी। कयासों पर ही मीडिया उछल कूद मचाएगा। इससे अधिक कुछ नहीं होगा। अगले चुनाव तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही रहेंगे, चुनाव से पहले तक। वह दूध पीते बच्चे नहीं है। उन्होंने बाकायदा सोच समझकर हमला बोला है। इस पर भी यदि हाईकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना देता है, तो नई पार्टी का उदय होगा। कांग्रेस जैसे बछड़े से हाथ में तब्दील हुई। उसी तरह हाथ भी किसी और निशान में तब्दील हो जाएगा।
बहुत मुश्किल है गहलोत और वसुंधरा को दरकिनार करना
उधर भाजपा भी दो सांडों की लड़ाई पर नजर रखे हुए हैं। सचिन और गहलोत की लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान कार्यकर्ताओं का होगा। वे सड़क पर आ जाएंगे। इधर, गहलोत और वसुंधरा राजे, दोनों एक दूसरे का सम्मान करते हैं। यदि भाजपा में वसुंधरा को दरकिनार किया गया तो वहां भी मामला कांग्रेस जैसा ही होगा। मगर, ऐसा कुछ नहीं होगा। कांग्रेस में गहलोत और भाजपा में वसुंधरा का सम्मान पूरी तरह से बना रहेगा। सचिन को अगले चुनाव तक सब्र का घूंट पीना पड़ेगा।
चुनाव में हो सकता है कि सचिन को मुख्यमंत्री का चेहरा बना दिया जाए, मगर चुनाव तक गहलोत के सभी बालों को सुरक्षित रखा जाना हाईकमान की मजबूरी है।
– सुरेन्द्र चतुर्वेदी