लाडनूं के पूर्व विधायक मनोहर सिंह ने नश्वर संसार का किया त्याग,
दोपहर 1 बजे से ही सोशल मीडिया ने कर दी थी निधन की घोषणा, लेकिन रात 10.27 बजे जाकर थमी सांसे, सोमवार को की जाएगी अंत्येष्टि
लाडनूं। पूर्व विधायक मनोहरसिंह अब नहीं रहे हैं। उनका जयपुर के इटर्नल होस्पिटल में रविवार की दोपहर निधन हो गया। वे 74 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और जयपुर में उनका इलाज चल रहा था। वे आईसीयू में भर्ती थे, उन्हें वेंटीलेटर पर भी रखा गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। हालांकि उनके निधन होने को लेकर दिन भर असमंजस की स्थिति बनी हुई रही। उन्हें पेशाब में तकलीफ होने पर करीब 10 दिन पूर्व जयपुर ले जाया गया था, जहां किए गए परीक्षणों में उनके गुर्दे, फेफड़े आदि में इंफेक्शन होने की जानकारी सामने आई। फिर उनके मल्टी आर्गन फैल्योर की समस्या सामने आई थी। इलाज के दौरान उनसे मिलने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, भाजपा के अध्यक्ष सीपी जोशी, भाजपा नेजा ओमप्रकाश माथुर आदि मिलने के लिए पहुंचे और उनकी कुशल-क्षेम पूछी थी। विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम द्वारा काफी प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। उस समय उनके पास पुत्र करणी सिंह, पुत्रवधु राजकंवर, गोविंद सिंह कसूम्बी, हनुमान प्रसाद शर्मा ध्यावा आदि मौजूद थे। बाद में सायं पौने छह बजे उन्हें एम्बुलेंस से जयपुर से रवाना करके उन्हें लाडनूं लाया गया। पूर्व विधायक मनोहर सिंह के एकमात्र पुत्र करणी सिंह है। पुत्रवधु राज कंवर उपराष्ट्रपति रहे भैंरोसिंह शेखावत के परिवार से पौत्री है। पूर्व विधायक को तीन बेटियां हैं, जो सभी शादीसुदा हैं और अपने-अपने ससुराल में रहती हैं। और 3 बेटिया हैं। उन्हें अंतिम दर्शनों के लिए यहां करणी निवास पैलेस में रखा गया है। उनका अंतिम संस्कार के लिए उनकी अंतिम या़त्रा सोमवार को दोपहर 1 बजे करणी निवास से निकाली जाएगी।
वेंटीलेटर पर थे और हटाने के बाद भी चल रही थी धड़कनें
पूर्व विधायक की हालत और देहावसान को लेकर प्रारम्भ में दोपहर एक बजे कहा गया कि उनका निधन हो गया, तथा सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलियां देने का दौर शुरू हो गया, जिस पर दोपहर डेढ बजे तब जाकर कुछ नियंत्रण हुआ, जब खबर मिली कि अभी तके वे वेंटीलेटर पर हैं और इलाज चल रहा है। उनके वेंटीलेटर को धीरे-धीरे कम किया गया। सांयकाल 5 बजे उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। हालांकि इसके बाद भी रात्रि 10.27 तक उनकी धड़कनें और सांसें चलने के बाद कहीं जाकर थमी। लेकिन चिकित्सकों ने उनका आगे कोई भी इलाज कर पाने में असमर्थता जाहिर कर दी। उनके इलाज के लिए चिकित्सकों की टीम ने भरसक कोशिश की और मुम्बई व अन्य बाहर के विशेषज्ञों से लगातार परामर्श भी चिकित्सकों ने किया। पूर्व विधायक के इलाज के लिए सब तरह की आधुनिक व नवीनतम तकनीक व औषधियों का उपयोग भी किया गया। रविवार को जब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष व पूर्व केन्द्रीय मंत्री सीआर चैधरी, भाजपा के प्रदेश महामंत्री जगवीर छाबा, पूर्व मंत्री युनूस खां, राजपालसिंह आदि के आने पर चिकित्सकों ने बैठक करके आपस में राय-मशविरा करके उन्हें अवगत करवाया कि उनको बचाया नहीं जा सकता है, केवल वेंटीलेटर पर रखा जाने तक उन्हें जीवित समझा जा सकता है। बाद में चिकित्सकों ने उन्हें वेटीलेटर से हटा दिया।
शासक परिवार के उत्तराधिकारी, तीन बार रहे विधायक
पूर्व विधायक मनोहर सिंह लाडनूं के राज परिवार से सम्बद्ध थे और ‘ठाकुर साहब’ के नाम से प्रसिद्ध थे। उनका जन्म आजादी के बाद 14 नवम्बर 1949 को हुआ था। लाडनूं के शासक परिवार में पीढियों से कोई उत्तराधिकारी वंशज पैदा नहीं हुआ था। यह राज परिवार दत्तक पुत्रों के माध्यम से ही चल रहा था। मनोहर सिंह के पिता बालसिंह भी गोद लिए पुत्र थे। उन्होंने पुत्र के लिए लाडनूं गढ में रहना छोड़ कर जंगल में जोहड़ नामक स्थान पर अपना पृथक् महल बनवाया। वहां पर मनोहर सिंह का जन्म हुआ था। हालांकि उनके पिता बालसिंह का देहांत मनोहर सिंह की मात्र 9 वर्ष की अवस्था में ही हो गया था। मनोहर सिंह ने प्रारम्भिक शिक्षा यहां के जेबी स्कूल से प्राप्त की थी और बीए की परीक्षा उन्होंने उदयपुर यूनिवर्सिटी से की। वे तीन बार विधायक रहे। पहली बार पे सन् 1989 में निर्दलीय विधायक बने। विधायक चुने जाने के बाद उन्होंने जनता पार्टी के भैंरोसिंह शेखावत को अपना समर्थन दिया। हालांकि उस समय विधानसभा भंग हो जाने से उनका कार्यकाल मात्र ढाई साल का ही रहा। इसके बाद 2003 में भारतीय जनमा पार्टी से वे फिर दूसरी बार विधायक जीते और तीसरी बाद सन 2013 में फिर भाजपा से ही विधायक बने। पूर्व विधायक मनोहर सिंह को घुड़सवारी और निशानेबाजी का गहरा शौक था। वे राजस्थान में कई प्रतियोगिता में इनमें गोल्ड मेडल विजेता रहे थे। वे पुष्कर में लगने वाले पशु मेले में हमेशा भाग लेते रहे थे। वहां उनके घोड़े रणजीत को प्रदेश के सबसे बढिया नस्ल और सबसे उंची कीमत के घोड़े के रूप में पहचाना जाता था। इनका यह घोड़ा रणजीत पुष्कर मेले में सन् 1990 से लेकर 2012 तक फर्स्ट रहा। वे सही मायने में किसान भी थे। स्वयं ट्रेक्टर चलाते थे और खेत की जुताई-बिजाई करते थे। वे बहुत मेहनती थे और सीधे-सादे और ईमानदार नेता के रूप में उनकी छवि रही।