लाडनूं तहसील क्षेत्र में गायब होने लगे नाडी, तालाब, टीले, पहाड़,
क्या अवैध खनन कर रहे माफिया गिरोहों पर कार्यवाही में डरते हैं अधिकारी?
कितना लम्बा चल पाएगा हाल ही में शुरू किया गया कार्यवाही अभियान
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। लाडनूं तहसील क्षेत्र में लगभग सभी जगहों पर, जहां भूमिगत पत्थर, मुरड़, मिट्टी आदि निकलती है, वहां बड़ी तादाद में अवैध खनन कार्य चल रहे हैं। जेसीबी मशीनों से धड़ल्ले से खुदाई और बिना नम्बरों के ट्रेक्टर-ट्रोलियों में भर कर खुलेआम परिवहन का कार्य दिन भर चला रहा है, लेकिन जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों का कोई ध्यान इस ओर नहीं जाता। बरसों से चल रहे इस अवैध कारोबार को लेकर माईनिंग विभाग, राॅयल्टी नाका, राजस्व विभाग, पुलिस और उपखंड व जिला प्रशासन, पंचायत व स्थानीय निकाय आदि सभी सदैव मौन ही रहे। इस मौन का राज क्या है, यह तो वे ही जान सकते हैं, लेकिन राज्य सरकार को हर साल करोड़ों का चूना जरूर लगातार लगाया जा रहा है। कृषि योग्य भूमियों में ही नहीं, बल्कि सरकारी राजस्व भूमियों, गोचर भूमियों, नाडी व तालाब की भूमियों, गैर मुमकिन खंदेड़ा, मंदिरों के आरेण की जमीनों आदि में भी बेखौफ-बेरोकटोक अवैध खनन किया जाकर खनन-माफिया के लोगों द्वारा चांदी कूटी जा रही हैं।
विकास के नाम पर अवैध खनन सामग्री का खुला प्रयोग
यहां विकास के नाम पर निर्मित की जाने वाली सड़कों, बिल्डिंगों आदि में भी प्रयुक्त होने वाली बालुई मिट्टी, मुरड़, कंकरी, पत्थर, रोड़ी, बजरी आदि सभी इन अवैध खनन-कर्ताओं से सस्ते में खरीदे जाते हैं। नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, पीडब्लूडी, पंचायत समिति और ग्राम पंचायतों, नगर पालिका आदि सभी के निर्माण कार्यों में कम लागत को ध्यान में रख कर ठेकेदार, अभियंता, अधिकारी ही नहीं सरपंच आदि जन प्रतिनिधि तक इन खनन-माफियाओं की मदद लेते हुए अवैध निर्माण सामग्री का उपयोग धड़ल्ले से करते रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में तो ऐसा लम्बे समय से होता आया है और शही क्षेत्र भी इन सबसे वंचित नहीं रहा है। यहां जितने भी शाॅपिंग काम्प्लेक्स, माॅल, दुकानें और अन्य भवन बनते हैं, उन सबमें मिट्टी, बजरी, मुरड़, पत्थर आदि बिना राॅयल्टी और किसी प्रकार के सरकारी टेक्स व अन्य वितीय निवेश के अवैध रूप से खनन की गई ही बरतते हैं।
खुर्द-बुर्द कर रहे हैं ताल, नाडियां और टीले
क्षेत्र की अनेक नाडियों, तालाबों को इन खनन माफिया के लोगों ने मुरड़ आदि खोद कर निकालने का जरिया बना रखा है। इस बेतरतीब खुदाई से इसकी शक्ल तक बदल रही है। तालाब या नाडी होती कहीं है और ये लोग आसपास में खुदाई करके उसे दूसरी जगह तक स्थानान्तरित कर देते हैं। इनमें पानी की आवक के लिए छोड़ी गई जमीन, ताल आदि लगातार खुर्द-बुर्द हो रहे हैं। गायों के लिए छोड़ी गई गोचर भूमियों को बचा पाना मुश्किल हो गया है। इनको भी ये खनन-माफिया खा चुके हैं। रेतीले टीले-धोरे भी अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। इन खनन माफियाओं के कारण यहां से प्रतिदिन बड़ी संख्या में ट्रेक्टर-ट्रोलियां मिट्टी की भर कर ले जाई जाती है और धोरे जमीन पर गायब होते जा रहे हैं। पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों को भी पत्थर, रोड़ी और बजरी के लालच में नष्टप्रायः कर दिया गया है।
किया जा रहा है खुला भ्रष्टाचार
ग्राम पंचायतें और ठेकेदार अपना खर्च और ट्रांसपोर्टेंशन बचाने के लिए आसपास की सरकारी जमीनों को अपना शिकार बनाती हैं। इनके द्वारा इस आड़ में भारी बिल सरकार से उठाए जाकर भारी भ्रष्टाचार भी किया जा रहा है। सरकार को चूना लगाने में कोई भी पीछे नहीं रहा है। यह पूरी तरह से संभव है कि इसमें नीचे से लेकर उच्च अधिकारियों तक की मिलीभगत हो और उनकी छत्रछायामें ही यह सारा गोरखधंधा पनपता जा रहा हो। इन सबकी निगरानी के लिए कोई सक्षम व्यवस्था तंत्र ने स्थापित नहीं की या अगर स्थापित है तो वह सतर्कता व्यवस्था कुम्भकर्णी नींद में सो रही है।
नई सरकार ने सुध ली, पर यह कब तक चलेगा
हाल ही में राज्य सरकार का नया गठन हुआ है और नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने शुरू में ही राज्य में अवैध खनन पर शिकंजा कसने की नीति बनाई है। मुख्यमंत्री के निर्देशों से अनेक विभागों ने मिल कर टीम का गठन करके सभी जगह दबिश दी है और सभी जगह भारी अवैध खनन पाया गया है। इससे सम्बंधित वाहनों और अवैध खनन सामग्री को जब्त भी किया जा रहा है। भारी जुर्माना भी लगाकर वसूला गया है। लेकिन सवाल यह है कि ये अधिकारी इतने समय तक क्यों चुप्पी साधे रहे, जबकि यह तो जगजाहिर है कि खुलेआम अवैध खनन और परिवहन किया जाता रहा है। फिर यह गैरजिम्मेदाराना रवैया अब तक क्यों रहा? अब जब इनके सामने सारा नजारा आने लगा है तो इस अवैध खनन की सक्षम रोकथाम के लिए उनके द्वारा क्या कदम उठाए जाएंगे? क्या यह सख्त कदमों की नीति लम्बी चल पाएगी अथवा फिर मिलीभगत के सामने यह नीति अपना दम तोड़ देगी?