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विश्व-शांति व मानवता की रक्षा के लिए है अहिंसा की जरूरत- प्रो. श्रीवास्तव, ‘भारतीय परंपराओं में अहिंसक संप्रेषण की खोज’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ

विश्व-शांति व मानवता की रक्षा के लिए है अहिंसा की जरूरत- प्रो. श्रीवास्तव,

‘भारतीय परंपराओं में अहिंसक संप्रेषण की खोज’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ

जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के कुलपति प्रो. केएल श्रीवास्तव ने कहा है कि आज विज्ञान भी यह मानता है कि अहिंसा के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। आज विश्व शांति व मानवता की रक्षा के लिए अहिंसा की जरूरत है और महात्मा गांधी के अंिहसा के सिद्धांत वर्तमान में बहुत प्रभावी हो सकते हैं। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान व गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में बुधवार को ‘भारतीय परम्परा में अहिंसक सम्प्रेषण की खोज’ विषय पर आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति के ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का उल्लेख करते हुए कहा कि विश्व में बिना सीमाओं के देशों की कल्पना की गई है। भारतीय अघ्यात्म में अहिंसा व शांति के तत्व निहित है। आज मनुष्यों, प्राणियों व प्रकृति के बीच परस्पर समन्वय रखे जाने की आवश्यकता है। उन्होंने जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय को विलक्षण और अपनी तरह का विश्व का इकलौता विश्वविद्यालय बताया। सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. बीआर दूगड़ ने अहिंसा को भारतीय दर्शन व शास्त्रों में अहिंसा व शांति को अन्तर्निहित बताया। भारतीय विधाओं का मुख्य विषय सत्य की खोज रहा है और इसी कारण भारतीय शास्त्रों में अहिंसा अनुस्यूत है। वेदों में आया है कि निरन्तर संवाद से ही सत्य तक पहुंचा जा सकता है। अहिंसा से जुड़ाव संवाद द्वारा ही होता है। यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने गीता, बौद्ध दर्शन एवं जैन दर्शन का भी उदाहरण प्रस्तुत किया तथा कहा कि जैन दर्शन में ‘अनेकांतवाद’ आया है, जिसे गांधी ने भी स्वीकार किया है। इसमें न्याय के लिए दूसरों के दृष्टिकोण से भी देखने की बात आई है। प्रो. दूगड़ ने कहा कि कंटेंट, प्रोसेस और इंटेन्शन को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि न्याय के लिए विषयवस्तु और उसे प्रस्तुत करने का तरीका एवं उसके पीछे की भावना पर ध्यान देना जरूरी है। उन्होंने सामने वाले को अपने भविष्य के मित्र के तौर पर लेने की आवश्यकता बताई।

मीडिया शिक्षण में अहिंसा संवाद का समावेश जरूरी

राष्ट्रीय सेमिनार के मुख्य वक्ता पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के प्रो. मनीष शर्मा ने वेदांगों को भूलने पर चिंता जताते हुए कहा कि बाहरी लोग उसी में आई बातों को अब हमें फिर से बताने की कोशिश कर रहे हैं। सत्य, अहिंसा, करूणा, सेवा, मैत्री, समर्पण आदि ही समाज के लिए आवश्यक तत्व हैं। पश्चिमी सभ्यता के लोग आज योग आदि को फोलो कर रहे हैं। गांधी दर्शन को भी फोलो कर रहे हैं। हमें अपनी विचारधारा को दूसरों तक पहुंचाना जरूरी है। उन्होंने संवाद करने, चर्चाओं को महत्व देने, अहंकार को छोड़ने और धैर्य के साथ बातचीत करने को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि शिक्षा में हमें कुछ नया जोड़ कर आगे प्रसारित करना चाहिए। इससे पूर्व विशिष्ट अतिथि गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति नई दिल्ली के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. वेदव्यास कुंडू ने सेमिनार के विषय को प्रतिपादित करते हुए कहा कि अहिंसा संवाद हमारे यहां तो कण-कण में रचा हुआ है। उन्होंने मीडिया के अहिंसक संवाद को महत्व देते हुए कहा कि महात्मा गांधी के माॅडल ऑफ कम्युनिकेशन में भाषा को संयमित करने की जरूरत बताई गई है। हम ‘मीडिया लिट्रेसी’ पर काम कर रहे हैं। मीडिया एजुकेेशन से सोलयुशंस तलाश किए जाएंगे। उन्होंने विश्वविद्यालयों में मास कम्युनिकेशन विषय के साथ अहिंसा संचार को भी जोड़ा जाकर काम करने की आवश्यकता बताई। इसके जितने भी आयाम हैं, उनमें भारतीय परम्परा के कंटेंट का अनुसरण भी महत्वपूर्ण होंगे। इसे लेकर वैश्विक स्तर पर भी रूचि दिखाई जा रही है। उन्होंने वर्चुअली हिंसक विचारों से आपसी सम्बंध खराब होने के बारे में भी बताया। सेमिनार का प्रारम्भ समणी प्रणव प्रज्ञा के मंगलाचरण द्वारा किया गया। प्रो. समणी सत्यप्रज्ञा ने अतिथि परिचय और स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत-सम्मान शाॅल, पुष्पगुच्छ, प्रतीक चिह्न एवं साहित्य प्रदान करके किया गया। अंत में विभागाध्यक्ष डा. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डा. लिपि जैन ने किया। कार्यक्रम में प्रो. नलिन के. शास्त्री, प्रो. दामोदर शास्त्री, प्रो. जिनेन्द्र जैन, प्रो. बीएल जैन, डा. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डा. सत्यनारायण भारद्वाज, डा. आभा सिंह, डा. बलबीर सिंह, डा. सुनीता इंदौरिया, डा. प्रगति भटनागर, डा. मनीषा जैन, विजयकुमार शर्मा, पंकज भटनागर, दीपाराम खोजा, डा. वीरेन्द्र भाटी मंगल, जगदीश यायावर आदि सहित देश के विभिन्न प्रांतो से आए शिक्षाविदों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।

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Author: kalamkala

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