संस्कृत में समाहित है शारीरिक, मानसिक व वाणी की शुद्धि- प्रो. शास्त्री,
लाडनूं में संस्कृत दिवस समारोह का आयोजन
लाडनूं (kalamkala.in)। जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत-संस्कृत विभाग केे तत्वावधान में शुक्रवार को संस्कृत दिवस समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में मुख्य अतिथि प्रो. दामोदर शास्त्री ने संस्कृत भाषा की उत्पति महर्षि पाणिनी की तपस्या से शंकर द्वारा की जानी बताई और कहा कि श्रावण मास में संस्कृत और भगवान शिव की विशेष महिमा रहती है। उन्होंने संस्कृत को हर प्रकार की शुद्धि करने वाली भाषा बताया तथा कहा कि शारीरिक शुद्धि, मानसिक शुद्धि, वाणी की शुद्धि सब संस्कृत में समाहित है। प्रो. शास्त्री ने भारत को पूरे विश्व को चरित्र सिखाने वाला विश्वगुरू देश बताया और कहा कि इस धर्म प्रधान देश में धर्म का माध्यम संस्कृत ही है। उन्होंने संस्कृत में शब्दों की शुद्धता पर विशेष जोर देते हुए संस्कृत व प्राकृत सहित शब्दों की यात्रा और बदलाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी। समारोह की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. जिनेन्द्र जैन ने संस्कृत को सरल, सीधी व स्पष्ट भाषा बताया और कहा कि संस्कृत व प्राकृत सहोदरा भाषाएं हैं और ये दोनों ही सदा से चली आ रही है, इनका कोई ओर-छोर नहीं है। यह हमारे देश की विरासत है, हमारी धरोहर हैं। उन्होंने कहा कि आत्मशुद्धि के प्रयेाजन से संस्कृत का प्रयोग प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय में अपने विभाग की तरफ से नवम्बर माह में संस्कृत-सम्भाषण शिविर लगाने की घोषणा भी की।
संस्कृत से शांति, संस्कार व आत्मविश्वास मिलता है
विशिष्ट अतिथि प्रो. आनद प्रकाश त्रिपाठी ने संस्कृत को दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा बताते हुए कहा कि विश्व के सबसे पहले ग्रंथ ऋग्वेद की भाषा संस्कृत ही है। महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत से शांति मिलती है। शांति के साथ संस्कार और आत्मविश्वास भी प्राप्त होते हैं। संस्कृत को उन्हांने माधुर्यपूर्ण भाषा बताया और साथ ही नई पीढी को संस्कृत से जोड़ने की आवश्यकता बताई और कहा कि संस्कृत की मिठास और पद-लालित्य को पढने-सीखने से जीवन में माधुर्य आत्मसात् हो जाता है। डा. रामदेव साहू ने श्रावण मास और पूर्णिमा का महत्व बताया और नक्षत्रों व ग्रहों की स्थितियों की जानकारी देते हुए उसे संस्कृत के अमरत्व से जोड़ा। प्रो. रेखा तिवाड़ी ने संस्कृत को वेदों की भाषा और ऋषियों-मुनियों की भाषा तथा देश को गौरवान्वित करने वाली भाषा बताया। उन्होंने कहा कि यह विश्व की प्राचीनतम भाषा है। इसका बहुत महत्व है। उन्होंने संस्कृत संस्कृति, संस्कार और सुसंस्कृत होने के बारे में जानकारी देते हुए संस्कृत को सीखना जरूरी बताया।
संस्कृत सबसे शुद्ध व उपयोगी भाषा
डा. समणी संगीत प्रज्ञा ने प्रारम्भ में स्वागत वक्तव्य के साथ संस्कृत दिवस को श्रावण पूर्णिमा से शुरू होकर सात दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व बताया तथा कहा कि पिछले 45 सालों से संस्कृत दिवस मनाया जा रहा है। समणी संगीतप्रज्ञा ने भारतीय संस्कृति को जानने के लिए संस्कृत जानना जरूरी बताया। साथ ही नासा का उदाहरण देते हुए अंतरिक्ष की सबसे शुद्ध व उपयोगी भाषा संस्कृत को बताया एवं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी (एआई) के लिए भी संस्कृत की उपयोगिता समझाईं। कार्यक्रम में मुमुक्षु बहिनों ने संस्कृत गीतिका एवं विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का प्रारम्भ मुमुक्षु बहिनों के मंगलाचरण से किया गया। कार्यक्रम के अंत में डा. सत्यनारायण भारद्वाज ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डा. सबयसांची सारंगी ने किया। कार्यक्रम में मुमुक्षु बहिनें, डा. सुनीता इंदौरिया, डा. विनोद कस्वां, निखिल राठौड़, जगदीश यायावर एवं संस्कृत के शोधार्थी व विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।