कलम कला की विशेष रिपोर्ट- (आओ चिंतन करें)
‘सेठाणा गांव’ रहे लाडनूं के पिछड़ते व्यापार को कैसे पंख लगाए जाएं?
व्यापारी जनहित का रवैया अपनाएं, सामाजिक सरोकारों को महत्व दें और फिर आगे बढें
(लाडनूं से वरिष्ट पत्रकार जगदीश यायावर की कलम से)
लाडनूं को प्राचीन काल से ही ‘सेठाणा गांव’ कहा जाता रहा है, यहां चांदी-सोने और जवाहरात का ठाड़ा काम-धंधा था। सेठों की हवेलियां यहां आज भी लोगों के लिए दर्शनीय बनी हुई है। पुराने सदर बाजार में ‘फाटका बाड़ा’ के नाम से एक पूरा कटला ऐसा था, जहां चांदी के सौदे होते थे। यहां बैलगाड़ियों में लाद-लाद कर चांदी की सिल्लियां लाई जाती थी। हीरों-जवाहरात के लिए तो लाडनूं प्रसिद्ध रहा था। यहां के ठिकानेदार-जागीरदार भी यहां के सेठ-साहूकारों से सलाह लिया करते थे। सहजावतों का बास यहां की सबसे प्राचीन बस्ती बताई जाती है, जहां आसपास के खुदाई करने पर प्रायः हीरे-जवाहरात और आभूषण, बर्तनादि मिलते रहे हैं।
क्यों ठप्प हुआ लाडनूं का व्यापार-व्यवसाय
सम्पन्नता की इतनी प्राचीन विरासत के बावजूद लाडनूं की पिछली तीन-चार पीढियों का अनुभव काफी निराशाजनक रहा है। यहां का व्यापार-व्यवसाय ठप्प प्रायः हो चुका। सेठ-साहूकार यहां से छोड़-छोड़ कर खाने-कमाने के लिए ‘परदेस’ या ‘दिसावर’ याने असम, बंगाल आदि सुदूर प्रांतों में कूच कर गए, हालांकि उनकी हवेलियां और सम्पति यहां ही रखवाली की व्यवस्था में मौजूद रही। आजादी केे बाद से स्थितियां अधिक बिगड़ने लगी और यहां के बचे-खुचे व्यापार-व्यवसाय को सुजानगढ और डीडवाना ने हथिया लिया। यहां तक कि लाडनूं के व्यापारी भी दिल्ली, पंजाब, यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र आदि दूसरे प्रांतों से सामान मंगवाने के बजाए सुजानगढ पर निर्भर होकर रह गए। यहां के उपभोक्ता भी अधिक माल की जरूरत होने पर सस्ते के लालच में सुजानगढ जाकर ही खरीदारी करना उचित समझने लगे। लाडनूं के आसपास के गांवों के लोग भी लाडनूं आने के बजाए सुजानगढ या डीडवाना जाने लगे।
स्थिति सुधारने के लिए चिंतन जरूरी
लाडनूं की इस व्यापारिक स्थिति के बिगाड़ का दोषी कौन रहा? क्यों नहीं यहां सुजानगढ की तर्ज पर व्यापार आगे नहीं बढ पाया? यह चिंतनीय है और यहांकी व्यापारिक स्थिति के सुधार के लिए इन मूल कारणों की जानकारी भी जरूरी है। इसके बाद ही कोई व्यापार विकास की बातों को लागू किया जा सकता है। आज लोग रोना रोते हैं, कि लोग स्थानीय बाजार की दुकानों से खरीदारी करने के बजाए आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी आॅनलाईन करते हैं। लेकिन यहां की आॅनलाईन की समस्या तो अब बनी है। इससे पहले लोग यहां लोकल मार्केट से खरीदारी के बजाय सुजानगढ जाकर खरीद करनी उचित समझते रहे हैं। यह लगभग एक सरीखी समस्या ही है, जो बरसों से लाडनूं में बनी हुई है। यह आर्थिक युग है और इसमें सब तरह की प्रतिस्पर्धा रहेगी ही। इस प्रतिस्पर्धा में अपने आप को टिकाए रखने के लिए व्यापारी वर्ग को खुद में कुछ आवश्यक बदलाव लाने होंगे।
सामाजिक सरोकारों से बढेगा व्यापार
आजकल ‘सामाजिक सरोकार’ शब्द का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। व्यापारी वर्ग को भी केवल अपने तक ही सीमित रहने के बजाए सामाजिक सरोकारों और जनहित से स्वयं को जोड़ना होगा। बाजार में ठंडे व मीठे पेयजल के लिए सर्वसुलभ प्याऊ या मशीने लगवानी चाहिएं। बाजार में आवश्यकता वाले स्थानों पर महिला व पुरूषों के लिए मूत्रालय, शौचालय आदि सुविधाओं की व्यवस्था करवानी चाहिए। अगर इसके लिए कोई स्थान नहीं मिले, तो किसी उपयुक्त दुकान को व्यापार मंडल द्वारा खरीदा जाकर उसमें खर्चा करके उसे सुलभ शौचालय का रूप दिया जा सकता है। इसका खर्च सामुहिक रूप से उठाया जा सकता है। जन सहयोग भी मिल जाएगा। रविवार को बाजार का साप्ताहिक अवकाश रहता है, इसका उपयोग केवल आराम करने या घरेलू कामों को निपटाने मात्र के लिए करने के बजाए कुछ सर्वजन हित कामों में भी समय देना चाहिए। इसके लिए सामुहिक योजना बनाई जा सकती है। मंदिरों, श्मशान भूमियों, सड़क किनारे, विद्यालय भवनों एवं अन्य सामाजिक-सामुदायिक भवनों, रेलवे स्टेश, मेला मैदान, स्टेडियम आदि सार्वजनिक स्थानों पर पौधारोपण और उनके संरक्षण का काम किया जा सकता है। इन वृक्षों के रखरखाव व पानी आदि के लिए किसी व्यक्ति की नियुक्ति भी व्यापार मंडल कर सकता है। शहर में चल रहे आंगनबाड़ी केन्द्रों में सहयोग किया जा सकता है। उनकी देखरेख की जा सकती है।
लोगों की भावनाएं बदलने में व्यापारी बनें मददगार
इस प्रकार की सामाजिक सेवाओं के लिए व्यापारियों का नाम आगे आने पर लोगों की भावनाएं बदलेंगी और आत्मीयता बढने से उनकी खरीदारी का केन्द्र भी ऐसे सेवाभावी व्यापारी हो जाएंगे। व्यापारियों को अपने समस्त सम्पर्क के लोगों व ग्राहकों के व्यक्तिगत सुख-दुःख में शामिल होने की भावना भी पनपानी चाहिए। इसमें वे व्यापार मंडल की ओर से किसी की मौत होने पर सामुहिक रूप से उसके यहां बैठने व शोक सभा में शामिल होने तथा शोक संदेश देने की परम्परा डालने पर व्यक्तिगत सम्बंध मजबूत होंगे, जो व्यापरिक उन्नति के लिए बहुत ही सहायक होते हैं। इसी तरह से शादी वगैरह अवसर पर किसी गरीब या जरूरतमंद के घर आवश्यक उपहार सामुहिक रूप से व्यापार मंडल की ओर से पहुंचाए जा सकते हैं। गरीब व जरूरतमंद लोगों को व बच्चों को दीपावली आदि त्योंहारों पर मिठाईख् उपहार, वस्त्र आदि पहुंचाए जा सकते हैं। लाडनूं में पुरानी धर्मशालाएं लगभग समाप्त होने को है और नई-नई होटलों में रूम लेना बहुत ही खर्चीला हो गया है। ऐसे में पुरानी सूनी पड़ी धर्मशालाओं का व्यवस्थापन अपने हाथ में लेकर उन्हें व्यापार मंडल की ओर से संचालित किया जा सकता है। उन्हें बेहतर यात्री गृह के रूप में विकसित किया जा सकता है और लागत मात्र की दरों पर व्यापारिक प्रतिनिधियों एवं अन्य यात्रियों के लिए रूकने की उततम व्यवस्था की जा सकती है।
ग्राहकों की सुविधाओं को प्राथमिकता से महत्व दें
लाडनूं में बेतरतीब ढंग से लगातार वैध-अवैध रूप से नए-नए बाजार विकसित-निर्मित किए जा रहे हैं। ऐसे बाजारों व व्यावयायिक काॅम्प्लेक्सों में पानी का हौद या कुंड, पेयजल की व्यवस्था, हवा व रोशनी की व्यवस्था के साथ पार्किंग और शौचालय-मूत्रालय की व्यवस्था कभी करवाई जानी आवश्यक है। व्यापार मंडल को ऐसे निर्मित होने वाले प्रत्येक बाजार का निरीक्षण करना चाहिए और अपने शहर की नगर पालिका के साथ सहयोग करते हुए उसे भू-रूपांतरण करवाने, नक्शा पास करवाने, सुविधाओं की अनिवार्यता आदि के लिए पाबंद करवाया जाए। लाडनूं में ग्रामीण क्षेत्रों से बसों के सीधे आने, उनकी सम्पर्क सड़कों के निर्माण आदि सुविधाओं के लिए प्रशासन से व्यापारी मांग करके उनका आगमन लाडनूं तक करने में अपना सहयोग प्रदान कर सकते हैं। ध्यान रहे कि ग्राहक की सुविधा ही आपके व्यापार को पंख लगा सकती है। अगर व्यापारी इस पर चिंतन करते हुए सामुहिक रूप से जन हित की सोच को आगे रख कर व्यापार चलाया जाएगा, तो कोई कारण नहीं कि लाडनूं का व्यापार पीछे रह जाए।