कानों में पड़े आगमवाणी तो हो सकता है कल्याण- महाश्रमण
छापर चातुर्मास में भगवती सूत्र आगम से मिलेगी श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा
अष्टमाचार्य कालूगणी के जन्मस्थान पधारे तेरापंथ के युगप्रधान आचार्य महाश्रमण
छापर (चूरू)। 74 वर्षों बाद तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मभूमि पर बुधवार को चतुर्मास की स्थापना कर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण गुरुवार को प्रात अपने सुगुरु आचार्य कालूगणी की जन्मस्थान पधारे। आचार्यश्री ने उन स्थानों को निहारा और कुछ क्षण वहां विराजमान होकर अपने पूर्वाचार्य का स्मरण किया।
चातुर्मास प्रवास स्थल के प्रवचन पंडाल में आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु के पास ज्ञान हो और समझाने की विधा भी हो तो कितनों का कल्याण हो सकता है। उन्होंने दो कथानकों के माध्यम से लोगों को प्रेरित करते कहा कि आगम की वाणी किसी भी प्रकार से कानों में पड़े तो कल्याण हो सकता है। सुनकर आदमी कल्याण को जाने और बुरे कार्यों को छोड़ने का प्रयास करे। आगमवाणी से यदि किसी का हृदय परिवर्तन होता है तो उसके दो लाभ प्राप्त होते हैं। एक तो बुरे कार्यों में लगे हुए उस व्यक्ति की आत्मा का सुधार हो जाता है और दूसरे किसी का धन बच जाए, किसी के प्राणों की रक्षा भी हो जाती है। आगमवाणी का अपना महत्त्व भी है। उसके मनन से, पाठन और श्रवण से कल्याण हो सकता है। आगम के अध्ययन का अपना विधान भी है। चतुर्मास का समय ज्ञानार्जन के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को छापर चातुर्मास में भगवती सूत्र के आधार पर का विचार व्यक्त करते हुए कहा
कि इस बार भगवती सूत्र पर प्रवचन करने का विचार है। इसके उपरान्त जितना समय प्राप्त हो सकेगा, कालूयशोविलास का भी व्याख्यान दिया जा सकता है। आगम आधारित प्रवचन लोगों को अच्छी खुराक देने वाली बन सकती है। यह निर्जरा, प्रेरणा और कल्याण की दृष्टि से अच्छी बात हो सकती है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि विकासकुमार ने गीत के माध्यम से श्रद्धाभिव्यक्ति की।