आखिर कहां लटक कर रह गया लाडनूं का ट्रोमा सेंटर?
लाडनूं से गुजरते तीन हाईवे और रोजमर्रा के सड़क हादसे बनते जा रहे हैं जानलेवा, पर्याप्त चिकित्सा सेवा के अभाव और रेफर करने चलते जा रही है जानें
लाडनूं (वरिष्ठ पत्रकार जगदीश यायावर की कलम से)। लाडनूं में आएदिन होने वाले सड़क हादसे और दुर्घटनाओं में मौतों व घायलों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। गंभीर घायलों को अधिकतर लाडनूं के राजकीय चिकित्सालय से रैफर ही किया जाता है। इन रैफर किए जाने वाले अधिकांश घायलों की मौत रास्ते में ही हो जाती है। अगर उन्हें यहां से एम्बुलेंस से आगे नहीं भेजा जाता, तो संभवतः उनकी जान बचाई जा सकती थी। हालांकि, इस उपजिला चिकित्सालय में सरकार ने साधनों व सुविधाओं का अम्बार लगा दिया है और चिकित्सकों, नर्सिंग कर्मियों व अन्य स्टाफ की भी कोई कमी नहीं है। यहां ब्लड बैंक भी उपलब्ध है। ऑक्सीजन की भरपूर सुविधा भी मौजूद है। मरीज फिर भी यहां से अधिकतर झेले नहीं जाते, उन्हें रैफर किए जाने का तुक ही समझ में नहीं आता। यह सही है कि कतिपय मामलों में मरीजों का यहां इलाज पूर्णतः संभव नहीं होता, लेकिन सभी के लिए रैफर करने की एडवाइज भी समझ से परे है।
तीन-तीन हाईवे होने से आएदिन मौतों और घायलों का सिलसिला
लाडनूं क्षेत्र से तीन हाईवे गुजरते हैं, नेशनल हाईवे सं. 58, निम्बीजोधां-मेड़ता होकर गुजरने वाला एन.एच. 458 और किशनगढ-हनुमानगढ मेगा हाइवे। इन तीनों के अलावा कसूम्बी होकर गणेड़ी तक सीकर-जयपुर के हाईवे से जुड़ने वाला सड़क मार्ग भी इसी श्रेणी में शामिल है, जिनमें सड़क दुर्घटनाओं के भारी आसार बने रहते हैं। पिछले काफी दिनों से लगातार लगभग प्रतिदिन कोई न कोई सड़क हादसा हो ही रहा है। अनेक बार तो घायल मरीजों को सुजानगढ़ भी ले जाना पड़ता है। यहां के राजकीय चिकित्सालय से रैफर मरीजों को सीकर, जयपुर, बीकानेर ले जाना पड़ता है। यह सफर उन मरीजों-घायलों के लिए बेहद दर्दनाक और जीवन-मृत्यु के बीच जूझने वाला रहता है।
लाल-फीताशाही में जकड़ी हुई है लाडनूं के ट्रोमा सेंटर की फाईल
यहां के सभी घायलों के लिए सबसे नजदीकी चिकित्सा सुविधा लाडनूं के राजकीय उपजिला चिकित्सालय में ही मिलती है, लेकिन पता नहीं चिकित्सक गण, राजनेता, जन प्रतिनिधि और प्रमुख सामाजिक संगठन आदि सभी इस तरफ गंभीर दिखाई नहीं देते। लाडनूं में पूर्व कृषिमंत्री हरजीराम बुरड़क ने ट्रोमा सेंटर स्वीकृत करवाया था और उसका शिलान्यास भी कर दिया था, लेकिन सरकार बदलने से वह अधरझूल में ही लटक कर रह गया। बाद में भी किसी जन प्रतिनिधि ने इसे अधिक गंभीरता से नहीं लिया और नतीजा सामने हैं। करीब 15 साल बाद भी पूरा लाडनूं क्षेत्र ट्रोमा सेंटर की राह तक रहा है। हालांकि ट्रोमा सेंटर की लगभग सभी सुविधाएं इस चिकित्सालय में सरकार ने उपलब्ध भी करवा दी और ट्रोमा सेंटर के लिए नगर पालिका ने अलग से हाईवे के पास ही जमीन भी प्रदान कर दी। फिर भी उसकी फाइल के लाल-फीताशाही में बंध कर रह जाना, कहीं न कहीं फिर जन प्रतिनिधियों की कमी को झलकाता है।
ऊर्जावान राज्य सरकार पहल करे
राज्य में भाजपा की नई सरकार गठित है और पदासीन नए नेताओं में काम करने की भावना, ऊर्जा और जोश भी मौजूद है, आवश्यकता है कि हमारे जन प्रतिनिधि व राजनेता सरकार को समय रहते आगाह करे और बजट स्वीकृत करवा कर ट्रोमा सेंटर स्थापित करवाए। लोगों का यह वास्तविक भला होगा।
