लाडनूं में भवन निर्माण हादसे में दो श्रमिक जीवन-मृत्यु के बीच झूले, निर्माण कार्य के दौरान अडाण टूटने से दूसरी मंजिल से गिरकर दो जने हुए गंभीर घायल, अस्पताल में चिकित्सकों की लापरवाही आई सामने, श्रम विभाग व नगर पालिका तथा भवन निर्माता व ठेकेदार भी सुरक्षा नियमों को लेकर लापरवाह

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लाडनूं में भवन निर्माण हादसे में दो श्रमिक जीवन-मृत्यु के बीच झूले,

निर्माण कार्य के दौरान अडाण टूटने से दूसरी मंजिल से गिरकर दो जने हुए गंभीर घायल,

अस्पताल में चिकित्सकों की लापरवाही आई सामने, श्रम विभाग व नगर पालिका तथा भवन निर्माता व ठेकेदार भी सुरक्षा नियमों को लेकर लापरवाह

लाडनूं (kalamkala.in)। यहां पहली पट्टी में एक भवन निर्माण कार्य में लगाए गए अडाण के अचानक टूट जाने से ऊपर से गिर कर वहां काम कर रहे दो श्रमिक गंभीर रूप से घायल हो गए। दोनों घायलों को तत्काल लाडनूं के राजकीय चिकित्सालय ले जाया गया, जहां सम्बंधित डाक्टरों के समय पर उन्हें नहीं संभाला जाने के कारण उन दोनों घायलों को गंभीर अवस्था में जयपुर के ट्रॉमा हॉस्पिटल के लिए रैफर किया गया। इनमें एक के सिर में गंभीर चोट है और दूसरे के हाथ व कमर पर गहरी चोटें लगी हैं। यह शहर भर में बड़ी तादाद में चल रहे अवैध निर्माण कार्य को लेकर सबको चेताने वाला हादसा है।

इस तरह से हुआ हादसा

घटनानुसार पहली पट्टी में जैन विश्व भारती के पास राजेंद्र दूगड़ के नवनिर्मित दो मंजिला मकान की सीढ़ियों की ऊपर की उल्टी छत का प्लास्टर करते हुए दो मजदूर वहां लगे लोहे अडाण में अचानक पाईप टूट जाने से गिरे और नीचे की सीढियों और अडाण में फंसते हुए नीचे आ गिरे। इससे दोनों गंभीर घायल हो गए। उन्हें एंबुलेंस की सहायता से तत्काल यहां सरकारी अस्पताल ले जाया गया। इन घायल श्रमिकों में प्रताप सिंह (35) पुत्र बहादुर सिंह राजपूत और महावीर सिंह (50) पुत्र प्रह्लाद सिंह राजपूत निवासी डूंगरास आथूणा (सुजानगढ़) हैं। इनमें से प्रताप सिंह के उल्टे गिरने से सिर में गंभीर चोट लगी, जिससे उसके मुंह, नाक व कान से खून निकलने लगा। अस्पताल में डॉक्टर ने उसे तत्काल रैफर कर दिया। इसी प्रकार महावीर सिंह का दाहिना हाथ टूट गया, उसके हाथ की हड्डी बाहर निकल आई। कमर व रीढ की हड्डी में भी उसे गंभीर चोटें आई तथा शरीर के अन्य अंगों पर भी चोटें पहुंची हैं। उसे भी हाई सेंटर के लिए रैफर कर भिजवा दिया गया।

भगवान भरोसे छोड़ रखी है अस्पताल की आपातकालीन व्यवस्था

दिन के समय हुए इस हादसे में इन दोनों घायलों को तत्काल राजकीय चिकित्सालय पहुंचाए जाने के बावजूद उन्हें वहां उचित चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध नहीं हो पाई। सोमवार को लाडनूं के सरकारी अस्पताल में एक चर्म रोग के डॉक्टर के अलावा अन्य कोई डॉक्टर उन घायलों को संभालने के लिए नहीं पहुंच पाया। करीब आधा घंटा तक यही स्थिति बनी रही। वहां मौजूद नर्सिंग कर्मचारी ने उन घायलों का सामान्य मरहम-पट्टी का प्राथमिक उपचार करके उन्हें रेफर की कार्रवाई शुरू कर दी। इस पर वहां उपस्थित हुए लोगों ने विरोध जताया कि यह बड़ा हादसा है और अस्पताल में संबंधित डॉक्टर होते हुए भी वे इमर्जेंसी तक के लिए नहीं पहुंचे। लोगों ने इसे चिकित्सा विभाग की बड़ी लापरवाही बताया। हड्डी डॉक्टर, सर्जन फिजिशियन तीनों डॉक्टर हॉस्पिटल में उपलब्ध होते हुए भी इमरजेंसी वार्ड में नहीं पहुंचे। इमरजेंसी वार्ड प्रभारी ओमप्रकाश खिचड़ ने बताया 70 नर्सिंग स्टाफ होने के बावजूद 24 घंटे के लिए मात्र 8 कर्मचारियों को इमरजेंसी वार्ड में लगा रखे हैं। रात्रि के समय में मात्र एक कर्मचारी रहता है। इस स्थिति में हम पेशेंट को संभालें या एक-एक डॉक्टर को बुलाएं। जिस डॉक्टर की ड्यूटी लगी है, उनकी भी जिम्मेदारी होती है, कि वे संबंधित डॉक्टर को बुलाकर उनसे चैकअप करवाएं। डॉ. सुरेंद्र सिंह (चर्म रोग विशेषज्ञ) का कहना है कि उसने हादसे के सम्बन्ध में संबंधित डॉक्टर व पुलिस को सूचना दे दी, लेकिन वे नहीं पहुंचे, तो उनको फिर कॉल की गई। इमरजेंसी में डॉक्टर को तत्पर रहना चाहिए, उसके लिए उपस्थित लोगों ने पीएमओ को शिकायत भी की, तब जाकर सर्जन डॉक्टर किशना राम पूनियां व हड्डी रोग विशेषज्ञ ताराचंद कुमावत वहां पहुंचे, लेकिन तब तक उन दोनों घायलों के रैफर कार्ड बन चुके थे और फिर वहां से हाई सेंटर के लिए भिजवा दिया गया।

भवन निर्माण कार्य में सुरक्षा नियमों में बरती जा रही है कोताही

जिस भवन निर्माण कार्य के दौरान यह हादसा हुआ, वहां किसी भी प्रकार के सुरक्षा नियमों का पालन नहीं किया जा रहा था। अगर सुरक्षा नियमों का पालन और सुरक्षा उपकरणों का उपयोग किया होता तो यह हादसा इतना गंभीर रूप नहीं ले पाता। काम करते हुए हेलमेट/ सिर का टोप पहना हुआ होता तो सिर को गंभीर चोट से बचाया जा सकता था। श्रम विभाग की ओर से लाडनूं को पूरी तरह उपेक्षित छोड़ा हुआ है। यहां पूरे शहर में निर्माण कार्य चल रहे हैं, परन्तु कहीं भी श्रम विभाग का कोई नियंत्रण नहीं है। मजदूरों के जीवन को भगवान भरोसे छोड़ा हुआ है। भवन निर्माता भी श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर पूरी तरह लापरवाह बने रहते हैं। ठेकेदार भी उन्हें कोई सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं करवाते। इस प्रकार पूरे शहर में सभी निर्माण कार्य मज़दूरों के लिए असुरक्षित बने हुए हैं। नगर पालिका भी इन लोगों पर इस तरह की कोई पाबंदी या निरीक्षण नहीं करती, जिससे कामगारों का जीवन असुरक्षित नहीं हो पाए। पूरे शासन, प्रशासन, ठेकेदार, मकान निर्माता आदि सभी श्रमिकों के जीवन और हादसों की संभावनाओं को लेकर कहीं भी चिंतित नहीं हैं। इस तरफ जागरूकता जरूरी है, ताकि भविष्य में किसी का जीवन खतरे में नहीं पड़ने पाए।

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Author: kalamkala

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