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अपने ही आइने में- मोहर्रम के ताजिया जुलूस को पूरी तरह बंद किया जाए, जो ताजिया जुलूस निकाल कर इमाम हुसैन की शहादत का मज़ाक़ बनाते हैं, वह मुसलमान हो ही नहीं सकता- मो. मुश्ताक खान कायमखानी

अपने ही आइने में-

मोहर्रम के ताजिया जुलूस को पूरी तरह बंद किया जाए,

जो ताजिया जुलूस निकाल कर इमाम हुसैन की शहादत का मज़ाक़ बनाते हैं, वह मुसलमान हो ही नहीं सकता- मो. मुश्ताक खान कायमखानी

लाडनूं (kalamkala.in)। कांग्रेस नेता व समाजसेवी मो. मुश्ताक खान कायमखानी ने मोहर्रम पर ताजिया निकालने की परम्परा का विरोध करते हुए उसे गैर इस्लामिक करार दिया है और प्रशासन से ताजिया निकाले जाने पर रोक लगाने की मांग की है।

ताजिया हराम और गुनाह है

कायमखानी ने बताया कि मोहर्रम पर ताजिया जुलूस निकालना इस्लामी शरीयत के अनुसार सख्त हराम है और कबीरा गुनाहगार है। उन्होंने सवाल उठाया कि, क्या कोई अपने परिवार के सदस्य की मौत पर ढोल ताशे बजा कर जनाजे को कब्रिस्तान तक ले जाकर दफनाता है? अगर नहीं, तो ताजिया जुलूस मोहर्रम निकालने का किसने हक अधिकार दिया और यह हराम काम ही करना है तो झूठे नाम के मुसलमान बनने की कहां जरूरत पड़ गई? उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन की शहादत का मज़ाक़ बनाने वालों का अंत इस दुनिया में और आखिरत में बहुत बुरा होगा। क्योंकि, इमाम हुसैन की शहादत का मज़ाक़ बनाने वालों को अल्लाह देखता आ रहा है। जहन्नुम की आग भी नहीं बचा पायेगी उनको। जो काम दीन-ए-इस्लाम में हराम बताया गया है, उसे मुस्लिम समुदाय जानबूझकर करते हैं जो इस्लाम धर्म के सख्त खिलाफ हैं।

मोहर्रम गम का महीना है

मोहर्रम गम का महिना है, इबादत और तौबा करने का महीना है, भूखे को खाना खिलाने और प्यासे को पानी पिलाने का महीना है, रोजा रखने का महीना है। इस्लामिक नव वर्ष का पहला महीना मोहर्रम यानी इमाम हुसैन की शहादत और दीन-ए-इस्लाम की हिफाजत के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के द्वारा दी गई अपनी जान की सबसे बड़ी कुर्बानी का महीना है। यह महीना खुशी का नहीं बल्कि गम और दु:ख का महीना है।

ये ताजिया वाले काफिर हैं

जो लोग ताजिया जुलूस निकाल कर इमाम हुसैन की शहादत का मज़ाक़ बनाते हैं, वह मुसलमान हो ही नहीं सकता। वह बहुत बड़ा शैतान और काफिर है, जो अल्लाह के फरमान को नहीं मानता। ताजिया जुलूस निकाला जाना हराम है और जो भी इस्लाम धर्म के जानकार हैं, पढ़ेष-लिखे हैं या इमाम मौलाना है या पांच वक्त के नमाज़ी हैं, वह ताजिया जुलूस के किसी भी कार्यक्रम में शामिल होते हैं, तो वह शरीयत के अनुसार मुस्लिम नहीं बल्कि एक काफिर है, जो अल्लाह के फरमान को नहीं मानता वह इस्लाम से खारिज हो जाता है।

ताजियों को रोको और तौबा कर लो

कायमखानी ने अपील की है कि लाडनूं के दीन-ए-इस्लाम पसंद, इंसाफ प्रिय नागरिकों को आगे आकर सरकार और प्रशासन से ताजिया जुलूस को पूरी तरह से बंद करने और पाबंदी लगाने की मांग करनी चाहिए, अपनी समाज की बहन बेटियों और युवाओं को इस ताजिया जुलूस में जाने से रोकना चाहिए।जन सुविधा को मद्देनजर रखते हुए स्थानीय प्रशासन को ताजिया जुलूस पर पूरी तरह से रोक लगानी चाहिए।
क्योंकि, इस तरह के आयोजन से लोगों की जान-माल को भी खतरा पैदा होने का अंदेशा बना रहता है, कि अगर कोई भूल से गलत हरकत कर बैठा, तो नुकसान किसका होगा, यह किसी ने आज तक नहीं सोचा होगा। इसलिए अब भी समय है जाग जाओ और इस हराम काम से बचने के लिए तौबा कर लो।

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