जीवन में ज्ञान की साधना से ही मिलते हैं सफलता व सम्मान- प्रो. जैन,
गुरू पूर्णिमा का पर्व मनाया
लाडनूं। जैन विश्वभारती संस्थान के अंतर्गत शिक्षा विभाग में गुरू पूर्णिमा का पर्व मनाया गया। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि ज्ञान का दान सर्वोच्च माना गया हैए इसी कारण गुरु का पद सर्वोच्च व श्रेष्ठ कहा जाता है। संत कबीर ने गुरू को भगवान से भी बड़ा पद बताया है। गुरु सत्य की राह से अवगत कराने वाला होता है और जीवन जीने की कला, व्यावसायिक दक्षता, कुशलता एवं संवर्धन, आचरण की पवित्रता, कमजोरियों का निवारण, ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित, प्रकृति प्रेम, मानवीय गुणों का विकास, जीवन में उत्साह, उमंग व उल्लास से परिपूर्ण, दुखों से छुटकारा, बुराइयों से दूर रहना, सकारात्मक सोच, रहन-सहन, खान-पान, उठना-बैठना, बोलना, चलना आदि के तौर तरीकों से अवगत कराता है। गुरु अपने ज्ञान और अनुभव से शिष्य को अनगढत पत्थर से मूर्ति बनाना सिखाता है। अच्छा गुरु शिष्यों के दोषों और कमजोरियों के निवारण के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहता है। उन्होंने जीवन में सम्मान एवं सफलता प्राप्त करने के लिए ज्ञान की साधना को आवश्यक बताया और कहा कि अपने व्यवहार में उस ज्ञान को अपनाना तथा निरंतर परिश्रम करते रहना चाहिए। कार्यक्रम में डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. अमिता जैन, डॉ सरोज राय, डॉ. आभा सिंह, डॉ. गिरिराज भोजक, डॉ. गिरधारी लाल शर्मा, खुशाल जांगिड आदि एवं विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।