क्या कहता है लाडनूं का चुनावी माहौल?
कहीं कांग्रेस व भाजपा दोनों बिखराव के शिकार नहीं बन जाएं?
संगठन के नेताओं को करनी होगी गहरी पकड़ और लाडनूं में सांगठनिक सुधार
लाडनूं। क्षेत्र में चुनावी राजनीति परवान पर है। कांग्रेस के पर्यवेक्षक यहां आए और टिकट के दावेदारों से आवेदन प्राप्त करके ले गए। भाजपा के नेता भी यहां आए और पार्टी का पुनरीक्षण किया। भजापा फिलहाल किसी से कोई आवेदन टिकट के लिए नहीं ले रही है। आवेदकों की संख्या अधिक होने से टूट से बचने के लिए पहले पार्टी सबको एकजुट करने में जुटी हुई है। हाल ही में गुजरात के महूदा विधायक संजयसिंह महिंदा ने इसी काम पर अपना पूरा ध्यान दिया और सबको एक मंच पर एकत्रित करने में कामयाब भी हुए। परन्तु लोगों के जेहन में सवाल है कि ये लोग दिखावे के अलावा दिल से भी एक हो पाएंगे या नहीं और अब तक जो हरकतें करते आए थे, उन्हें बंद करेंगे या नहीं। अलग-अलग गुटबाजी, अलग-अलग मीटिंगें, एक-दूसरे के कामों में मीन-मेख निकालने, उन्हें नीचा दिखाने, अपने को सबसे श्रेष्ठ मानने की जो मानसिकता है, उसे वे सब बदल पाएंगे या नहीं।
कांग्रेस के तीन पुख्ता गुट आये सामने
कांग्रेस में भी कामेबस हालात इससे बेहतर नहीं कहे जा सकते हैं। यहां भी तीन आवेदन जो मिले, उन्हें केवल आवेदन नहीं कहा जा सकता है, बल्कि वे तीन धड़े सामने आए हैं, जिनमें परस्पर गहरे मनमुटाव या कहें कि वैचारिक मतभेद भी हैं और लगता है कि वे मनभेद की तरफ भी बढ रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश सचिव रामूराम साख को कभी विधायक मुकेश भाकर के साथ प्रमुख कार्यक्रमों तक में नहीं देखा गया है। उनकी अपनी अलग अहमियत है। उनके साथ एक बड़ा गुट कांग्रेस का जुटा हुआ है। वे कांग्रेस के हाईकमान और प्रदेश नेतृत्व के निर्देशों के अनुरूप अपना कार्य अंजाम दे रहे हैं। पीसी सदस्य रह चुके और कांग्रेस के टिकट से लाडनूं से चुनाव लड़ चुके लियाकत अली कभी विधायक मुकेश भाकर के नजदीकी व्यक्ति थे, लेकिन कुछ समय बाद मनमुटाव सामने आने लगा और उनका विधायक निवास पर आना-जाना बंद सा हो गया। कभी-कभार कहीं कार्यक्रम के दौरान मुलाकात होती भी है तो वह नीरस लगती है। पहले वाली गर्मजोशी पूरी तरह से समाप्त हो चुकी। लियाकत अली अपना अलग वजूद रखते हैं और उनके साथ भी बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ता सक्रिय भी हैं। इन तीनों गुटों में लगता है किसी को टिकट मिलने के बाद भी कोई सुलह हो पाएगी, ऐसा नहीं लगाता। इसके लिए किसी भी स्तर से कोई प्रयास तक नहीं किए जा रहे हैं। मुकेश भाकर को वर्तमान में विधायक होने का लाभ मिल सकता है, लेनि अपने ही कार्यकर्ताओं के असंतोष को दूर करना उनके सामने बहुत बड़ी चुनौती रहेगी।
कांग्रेस के पार्षदों व वार्डों में हुई गहरी नाराजगी
कांग्रेस से नगर पालिका के कांग्रेस के पार्षद गहरे असंतुष्ट नजर आते हैं। यहां नगर पालिका में अपने आपको मुकेश भाकर का खास कहने और भाजपा वालों को स्वयं को आरएसएस से सम्बंधित व गौसेवक कहने वाले ईओ रहे सुरेन्द्र कुमार मीणा के साथ भाजपा के पार्षद व कांग्रेस के असंतुष्ट पार्षद सभी जमे हुए नजर आते थे। इस ईओ व यहां के कांग्रेस के पालिकाध्यक्ष रावत खां के बीच चले झगड़े की बातें तो सभी जग-जाहिर है ही। एक दूसरे के खिलाफ मुकदमे तक दर्ज करवाने से नहीं चूके। इस झगड़े में विधायक की भूमिका को लेकर पालिकाध्यक्ष समर्थक काफी लोग विधायक से नाराज हुए। आखिर सारे मामले राज्य सरकार के पास पहुंचे तो ईओ निलम्बित किया गया था। अब उनके विरूद्ध पुलिस में गबन और भारी गड़बड़-घोटाले और रिकाॅर्ड तक गायब करने से सम्बंधित एफआइ्रआर तक दर्ज हो चुकी है। देखना यह है कि विधायक इसमें अपने कार्यकर्ताओं-मतदाताओं का समर्थन करते हैं या बाहर से आए ईओ को सम्बल प्रदान करते हैं। यह आगामी चुनावों में गहरा असर डालेगा। नगर पालिका द्वारा करोड़ों का बजट आने व पूरा हो जाने तथा धरातल पर वास्तविक काम नहीं होने को लेकर लगभग सभी वार्डों के लोगों में गहरा असंतोष है और लगभग सभी पार्षदों में रोष व्याप्त है।
क्या गुल खिला सकता है अंदरखाने का असंतोष
इसी प्रकार कांग्रेस से जुड़े हुए मुस्लिम समाज, अनूसूचित जाति समुदाय, जाट समाज आदि में भी अंदरखाने असंतोष देखने को मिल रहा है। वैसे जो मौजूदा सता में रहता है, उसके प्रति अलग-अलग कारणों से असंतोष पनपना स्वाभाविक ही है। कोई भी व्यक्ति सबको संतुष्ट नहीं कर सकता है। जाट समाज के लोग बड़ी संख्या में विरोध के स्वर उठने से लगता है कि वर्चस्व में कोई कमी आई है। इसी प्रकार अनेक मुद्दों पर शहरिया बास व जावा बास के लोगों में भी असंतोष पनपा है। वहां तो विरोधी नारेबाजी और प्रदर्शन तक सामने आ चुके हैं, अब उस स्थिति से कैसे निपटा जाएगा और ऐसा करने वालों को कैसे राजी किया जाएगा, यह सवाल सामने है। अनुसूचित जाति के साथ तो रिश्ते बनते-बिगड़ते रहते हैं। हालांकि विधायक मुकेश भाकर ने पंचायत समिति में भारी जीत के साथ जाट समुदाय से प्रधान और अनुसूचित जाति से उप प्रधान बनवा कर दोनों जातियों को साध्ने की कोशिश की थी। इसी तरह नगर पालिका में जीत के बाद मुस्लिम समाज से पालिकाध्यक्ष और अनुसूचित जाति से उपाध्यक्ष बनाकर भी दोनों जातियों को अपने खेमें में लेने का प्रयास किया था। लेकिन उनका प्रभाव कितने समय तक कायम रख पाते हैं, यह सवाल है। कांग्रेस के पार्षद व पंचायत समिति सदस्य अनेक बार समस्याओं को लेकर भाजपाइयों के साथ प्रशासन को ज्ञापन देते हुए देखे जा चुके हैं। उप प्रधान प्रतिनिधि कालूराम गैनाणा तो भाजपा जिलाध्यक्ष के साथ दिल्ली तक के भाजपा नेताओं से सम्पर्क साध चुके हैं।
कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में जा रहे हैं जन प्रतिनिधि
हाल ही में कांग्रेस से भाजपा ज्वायन करने की होड़ सी लगने लगी है। पचायत समिति सदस्य ओमप्रकाश बागड़ा ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। उनके साथ बड़ी संख्या में कार्यकर्ता जयपुर मे ंभाजपा प्रदेश कार्यालय तक पहुंच कर उनका समर्थन किया। कांग्रेस के खास समझे जाने वाले केशाराम हुडा ने तो भाजपा में किसान मोर्चा का पद भी सम्भाल लिया, जबकि उन्हें प्रायः विधायक के साथ देखा जाता रहा था। इसी प्रकार उनके खास समझे जाने वाले कांग्रेस के पार्षद सन्दीप प्रजापत ने भी भाजपा की सदस्यता ले ली है। इस प्रकार का दौर चलना कुछ अलग ही संदेश आमजनता को देते हुए नजर आते हैं। इस प्रकार अपने समर्थकों के साथ जोर-शोर से भाजपा में समिमलित होने से यहां की राजनीति में कोई बड़ा उलटफेर होने की संभावनाएं बनने लगी है। हाल ही मे ंनगर पालिका के सामने भाजपा पार्षदों द्वारा लगाए जा रहे धरने में कांग्रेस के पार्षद भी बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं। चुनावी माहौल के बीच इस प्रकार उनकी भाजपा के साथ उपस्थिति किसी तूफान से पूर्व की शांति जैसा लग रहा है।
भाजपा में बढे दावेदारों को साधना रहेगा मुश्किल
लाडनूं में भाजपा के दावेदार दो दर्जन की संख्या की तरफ बढ रहे हैं। यह पार्टी के लिए चिन्तनीय हैं। वैसे तो कहा जा सकता है कि जब किसी पार्टी की सता वापसी दिखाई देने लगती है तो उसके दावेदारों की संख्या स्वतः ही बढ जाती है। लेकिन इन सबको साधना बहुत मुश्किल काम होगा। सबकी सोच अलग-अलग है। अनेक लोग तो पार्टी की विचारधारा से जुड़े हुए ही नहीं रहे। ऐसे लोगों को भी आते ही विधायकी नजर आने लगी है। संगठन में लम्बा काम करने का अनुभव, पार्टी के प्रति निष्ठा, समर्पण, टिकाऊ की योग्यता और जीत के समीकरण ध्यान में रख कर ही टिकट दी जानी उचित रहती है। हालांकि पार्टी का उच्च स्तरीय संगठन इन सभी बिन्दुओं को परा ध्यान में रखेगा अऔर इस मापदंड में अनेक की छंटनी भी स्वतः ही हो जाएगी। फिर भी जितने भी दावेदार हैं, उन सबको टिकट के आंवटन से पूर्व या पश्चात साधना भारी काम रहेगा। इन सभी दावेदारों के वजूद, वर्चस्व, योग्यता, निष्ठा आदि के बारे में फिर कभी आकलन किया जाएगा। फिलहाल चुनावी वातवरण में बनती-बिगड़ती स्थितियों पर यह एक गहरी नजर के रूप में आगकल प्रस्तुत है।
– जगदीश यायावर, वरिष्ठ पत्रकार, लाडनूं।