लाडनूं में बेसहारा गौवंश का कौन बनेगा सहारा?
कोई न कोई हो जाता है रोज चोटिल और घायल, सांडों की भिड़त से आएदिन बनता है आतंक का माहौल,
नगर पालिका व प्रशासन इसका तत्काल संज्ञान लेकर समस्या का समाधान करे
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। शहर में एक बंदर आ जाए तो नगर पालिका अपनी पूरी शक्ति लगा कर उसे पकड़वा लेती है और कहीं बाहर दूरस्थ जगह भिजवा देती है, लेकिन सैंकड़ों आवारा पशुओं का आतंक फैलने के बावजूद नगर पालिका को कोई असर नहीं होता। नागरिकों को आएदिन इनके कारण चोटिल, घायल होना पड़ता है। यात्रीगण, राहगीर, दुकानदार, मंदिर जाती महिलाएं, बाजार जाते लोग, स्कूल जाते बच्चे-बच्चियां, सब्जी खरीदने वाले सभी यहां बेरोकटोक, बेधड़क घूम रहे गौवंश सांडों से खासे परेशान हो चुके हैं। लोग भयभीत हैं, पीड़ित हैं, लेकिन नगर पालिका तो पूरी तरह से मूक-बधिर, नैत्रहीन बन कर बैठी है। और तो और पार्षदगण भी चुप्पी धारे हुए हैं, हालांकि अनेक पार्षद इन सांडों के शिकार तक बन चुके हैं। आम नागरिकों को बाजार से निकलने में भी डर लगता है।
इन क्षेत्रों में है आवारा पशुओं की समस्या
लाडनूं के बस स्टेंड, सब्जीमंडी, राहूगेट, मालियों का बास, कमल चैक, कुम्हारों का बास, कालीजी का चैक, मावलियां जी मंदिर का बास, आधी पट्टी, पहली पट्टी और पट्टियों का क्षेत्र, तेली रोड, स्टेशन रोड, नगर पालिका कार्यालय क्षेत्र, तहसील के सामने, जावा बास, शहरिया बास, बड़ा बास, मगरा बास आदि सम्पूर्ण क्षेत्र में शहर में कम से कम 500 से 600 आवारा गौवंश घूमते नजर आ जाएंगे। आएदिन इनके परस्पर लड़ने-भिड़ने के दृश्यों से आतंकित लोग अब किसी से बचाव की गुहार तक नहीं लगा सकते। इन सभी जगहों पर सांडों द्वारा महिलाओं, वृद्धों व बच्चों को चोटिल करने की घटनाएं भी हो चुकी हैं। आखिर इन बेसहारा घूम रहे गौवंश का सहारा कौन बनेगा? कब तक ये ऐसे ही शहर के आबादी क्षेत्रों में ऐसे ही विचरते रहेंगे?
आएदिन होते हैं लोग चोटिल और घायल
उपखंड स्तरीय जन सुनवाई में नगर पालिका पार्षद सुमित्रा आर्य सहित अनेक नागरिकों ने इस समस्या को उठाया। नगर पालिका को आदेशित किया गया और गई फाईल कचरे के ढेर में। आखिर नगर पालिका इन सांडों को लेकर कोई भी कदम क्यों नहीं उठा रही है। कितने लोगों को घायल करने के बाद इनकी आंखें खुलेंगी। शनिवार को बस स्टेंड पर एक वृद्ध को सांड ने काफी दूरी तक घसीट कर गिरा दिया। वह काफी चोटिल भी हुआ। लोगों ने उसे उठाया और पानी पिलाया। यह कोई पहली घटना नहीं है। काफी सालों से लगातार ऐसे वाकये होते रहते हैं, लेकिन प्रशासन को कोई मतलब नहीं है।
स्थिति बिगाड़ने के जिम्मेदार लोगों को किया जाए पाबंद
बस स्टेंड पर सब्जी व फलों के ठेले वाले सड़े-गले फल व सब्जियों को लाकर डाल देते हैं और गन्नारस निकालने वाले और फलों का ज्यूस तैयार करने वाले भी इसी तरह से कचरे को डाल कर इन सांडों को बढावा देते हैं। इन लोगों के लिए पृथक् कचरा पात्र की व्यवस्था हो या वे अपने पास ही कचरे को संग्रहीत करके रखें व आटो टीपर या ट्रेक्टर-ट्रोली आने पर उसमें कचरा डालें अथवा उसे बस स्टेंड से दूर कहीं ले जाकर डालें, तो सांडों का जमावड़ा बस स्टेंड पर नहीं लगेगा। इसी तरह से कमल चैक, आधी पट्टी आदि विभिन्न स्थानों पर गायों-सांडों को डाले जाने वाले हरे चारा, रिजका घास की व्यवस्था भी कहीं बस्ती से दर एक नोहरे या जमीन में की जा सकती है। इससे शहर की सफाई रखने में भी सहयोग मिलेगा और आवारा पशुओं की समस्या भी कम हो जाएगी। इन सबको इसके लिएपाबंद किया जाना चाहिए।
पालिकाध्यक्ष से हुई वार्ता रही बेअसर
एक बार पहले नगर पालिका के अध्यक्ष रावत खां लाडवाण से आवारा पशुओं को लेकर ‘कलम कला’ की वार्ता हुई थी। उसमें उन्होंने छिपोलाई में नगर पालिका की जमीन में तारबंदी करवा कर उसमें सभी गौवंश को डाले जाने और वहां चारा, पानी व छात्रा की व्यवस्था करने पर सहमति बनी थी, लेकिन वह सब केवल वार्ता तक ही सीमित होकर रह गया। उसकी क्रियान्वित की दिशा में कुछ भी नहीं किया गया। नगर पालिका की इस प्रकार अनदेखी शहर के लिए समस्या को बढावा देती है। इस ओर तत्काल ध्यान देकर सुधार करना चाहिए।
