लाडनूं बंद रहा, रैली निकाल कर ज्ञापन सौंपा,
अजा-जजा के लोगों के आह्वान पर बाजार रखे गए स्वत: बंद, राष्ट्रपति के नाम से दस सूत्री मांग पत्र का ज्ञापन दिया
लाडनूं (kalamkala.in)। सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी आरक्षण के सम्बंध में दिए गए निर्णय के विरोध में बुधवार को लाडनूं बंद रहा। बंद के दौरान मेडिकल, खाने-पीने की दुकानें, डेयरी आदि खुले रखे गए।इस अवसर पर एससी-एसटी के लोगों ने रैली निकाली और शहर में मुख्य मार्गों से होते हुए दलित नेता कालूराम गैनाणा के नेतृत्व में उपखंड कार्यालय पहुंच कर एसडीएम मिथलेश कुमार को ज्ञापन सौंपा। सुबह गौरव पथ स्थित मेघवाल समाज भवन से शुरू हुई इस रैली में लोग नीले झंडे और बैनर-पोस्टर लिए हुए जय भीम के नारे लगाते हुए चल रहे थे। लाडनूं में दुकानदारों ने स्वतः ही अपनी दुकानें बंद रखी। इस दौरान पुलिस व्यवस्था पूर्ण चाक-चौबंद रही।ज्ञापन देने के समय पुलिस उप अधीक्षक विक्की नागपाल, थानाधिकारी रामनिवास मीणा भी स्वयं मौके पर उपस्थित रहे।
मेघवाल समाज भवन में हुई सभा
प्रारम्भ में गौरव पथ स्थित मेघवाल समाज भवन में एससी-एसटी वर्ग समुदाय के अलावा अन्य वर्गों के संगठनों के लोग एकत्र हुए। वहां पर सभा का आयोजन किया गया। सभा को कालूराम गैनाणा, नोरतनमल रैगर, मुश्तक खां कायमखानी आदि ने सम्बोधित किया। सभा के बाद वहां से रैली का आयोजन शुरू किया गया, जो शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए उपखंड कार्यालय पर पहुंची। इसमें एससी-एसटी समुदाय के रेगर, खटीक, नायक आदि समाज के अलावा जाट समाज व मुस्लिम समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में शामिल हुए। रैली के नारे लगाते हुए उपखंड कार्यालय पहुंचने के बाद एसडीएम मिथलेश कुमार को ज्ञापन दिया गया। इस अवसर पर दलित नेता कालूराम गेनाणा, नगर पालिका के उपाध्यक्ष मुकेश खिंची, चन्द्रा राम मेहरा, पूर्व सहायक अभियंता नोरतनमल रेगर, रुडमल महरिया, ओमप्रकाश मीणा, शिवराज बरवड़, सामाजिक कार्यकर्ता मो. मुश्ताक खान कायमखानी, एडवोकेट ओमप्रकाश गांधी, नानूराम नायक, छगनाराम गर्वा, सदासुख मेघवाल, बंशीधर गैनाणा, पूर्णाराम लाछड़ी, सुबेदार कानाराम रायधना, सरपंच राजेन्द्र मंत्री, भंवरलाल रैगर, श्यामलाल नायक, व्याख्याता रामूराम निम्बी जोधां, रामस्वरूप रताऊ, भंवरसिंह भाटी, शिवभगवान लेड़ी, गिरधारी सारण, गोविंदराम व्याख्याता, बंशी खां आदि उपस्थित रहे।
ये सब मांगें हैं इस ज्ञापन में
राष्ट्रपति के नाम से उपखंड अधिकारी को सौंपे गए इस ज्ञापन में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सिविल अपील संख्या 2317/2011 पंजाब राज्य बनाम दविंद्र सिंह में पारित एससी-एसटी निर्णय को पारित नहीं करने की मांग की गई। ज्ञापन में 10 बिंदुओं का मांग पत्र था। इसके अनुसार एससी-एसटी जातियों के आरक्षण सम्बंधी अधिकारों को समय-समय पर न्यायालय के माध्यम से निष्प्रभावी करने की कोशिश की जाती रही है, इसी कारण संविधान में 77वां, 81वां, 82वां, एंव 85वां संशोधन किए गए। हाल ही में 1 अगस्त को उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा निर्णय देकर अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों के संवैधानिक प्रावधानों में हस्तक्षेप किया गया है। ज्ञापन में मांग की गई है कि भारत सरकार उच्चतम न्यायालय में इस निर्णय के विरुद्ध रिव्यू पिटीशन लगा कर इस निर्णय को खारिज करा कर राहत प्रदान करावें, अन्यथा बड़ा आंदोलन खड़ा किया जायेगा।
निर्णय असंवैधानिक है
ज्ञापन में दिए गए मांग पत्र के अनुसार अनुसूचित जाति-जनजाति के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए अनुसूचित जाति, जनजाति आरक्षण अधिनियम, जो आज तक पारित नहीं किया गया, उसे पारित किया जाकर आरक्षण को संविधान की 9वीं सूची में डाला जाए, जिससे इनके अधिकारों के साथ भविष्य में छेड़छाड़ नहीं हो। भारतीय न्यायिक सेवा का गठन करके उसमें आरक्षण लागू करें ताकि इन वर्गों के न्यायाधीशों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके। आरक्षण के प्रावधान में क्रीमीलेयर लागू नहीं की जाए। अनुसूचित जाति, जनजाति में उपवर्गीकरण इन वर्गों की एकजुटता को तोड़ने का असंवैधानिक निर्णय है।
