प्रतिबंध के बावजूद पुलिस व प्रशासन की कार्रवाई से बेपरवाह और लोगों से झगड़ने पर उतारू डीजे संचालकों पर कौन कसेगा शिकंजा?
लाडनूं में डीजे की तेज गूंज और धमाकों भरी आवाज से लोगों के कानों, दिल-दिमाग और स्वास्थ्य पर संकट गहराया, मकानों की दीवारें और छतें तक थर्राई
लाडनूं (kalamkala.in)। उपखंड क्षेत्र में पूर्ण रूप से प्रतिबंधित डीजे साउण्ड का उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। यहां किसी में भी प्रशासन का नाममात्र का भी कोई खौफ नजर नहीं आ रहा है। पुलिस व प्रशासन की ओर से इनके विरुद्ध किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। इसे लेकर शहर के मौजीज लोगों ने जिला कलेक्टर पुखराज सैन का ध्यान भी आकृष्ट करते हुए उन्हें इस समस्या से अवगत करवाया और जन सुनवाई के दौरान उनसे डीजे पर प्रतिबंध को पूरी सख्ती से लागू करने की मांग की। इन डीजे के कारण जहां लोगों के लिए स्वास्थ्य का संकट पैदा हो रहा है, वहीं बीमार लोगों को जान का संकट बन पड़ा है। डीजे की ऊंचाई अधिक होने से भी गलियों में लोगों को परेशानी रहती है, वहीं इनके बिजली के तारों से छूने का खतरा भी बना रहता है। किसी भी वाहन पर परिवहन विभाग की परमिशन के बिना और आरसी में एंट्री के बिना किसी प्रकार का इस प्रकार का आमूल-चूल बदलाव प्रतिबंधित है, पर ये डीजे वाले सारी अवैध करतूतें कर रहे हैं और प्रशासन मौन बैठा है।
अनेक मौतों के बावजूद सबक नहीं ले रहा पुलिस व प्रशासन
अत्यधिक तेज आवाज में बजने वाले, शोर मचाने वाले इन डीजे के कारण शहर वासियों का जीना दुर्लभ हो चुका है। इससे फैलने वाले घातक प्रदूषण से लोगों को घातक बीमारियों का संकट भी बन रहा है। तेज धमाकेदार शोरनुमा आवाज के कारण लोगों के दिलों की धड़कन बढ़ जाती है। ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है। ब्रेन हेमरेज तक संभावित है। दिल, दिमाग, कानों पर इसका बहुत ही बुरा असर पड़ता है। इनकी आवाज इतनी अधिक तेज होती है कि दरवाजे, मकान, दीवारें, छतें और जमीन तक हिल जाते हैं। उनमें कम्पन होने लगता है। निर्धारित डेसीबल से अधिक आवाज की तेजी मनुष्य जीवन के लिए ख़तरनाक होती है। देश-प्रदेश में डीजे की तेज आवाज के कारण लोगों की दिल की धड़कनें बंद होने और हृदयाघात होकर मौतें तक होने की अनेक घटनाएं हो चुकी हैं। उड़ीसा के राउरकेला में ऐसी मौत की पुष्टि हुई और झाबा जिले में भी ऐसी मौत सामने आई है। झारखंड के बलरामपुर में एक 40 वर्षीय व्यक्ति को डीजे के कारण ब्रेन हेमरेज का शिकार होना पड़ा। भोपाल में भी एक बच्चा डीजे कुछ तेज आवाज की भेंट चढ़ चुका। बड़ी संख्या में लोग हीयरिंग लोस के शिकार बन चुके हैं। राजस्थान में भी बहुत सी ऐसी हालत की जानकारियां समय-समय पर सामने आती रहती है। डीजे के तेज आवाज से होने वाले इस दुष्प्रभाव और ऐसी घटनाओं के कारण ही पूरे राजस्थान में डीजे को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया हुआ है। अनेक लोग डीजे की आवाज से बीमार होकर अस्पताल में भर्ती होने या दवाएं खाने पर मजबूर हो रहे हैं। लेकिन फिर भी किसी को इसकी कोई परवाह नहीं है और प्रतिबंध की खुलेआम धज्जियां प्रशासन व पुलिस की नाक के नीचे उड़ाई जा रही है। कुछ युवाओं की मौज-मस्ती और नाच-गाने की ऐवज में आम लोगों की जान जोखिम में डाली जा रही है।
झगड़ों और परेशानियों की जड़ को पाबंद करने की लोगों ने मांग उठाई
इन डीजे वालों को अगर कोई परेशान व्यक्ति आवाज़ धीमी करने के लिए कहते हैं, तो ये डीजे वाले आवाज को जानबूझकर और अधिक तेज कर देते हैं। डीजे संचालक और नाचने वाले युवक डीजे को लेकर आपत्ति करने वालों से लड़ने-झगडने पर उतारू हो जाते हैं, जिससे शांतिभंग होने का खतरा भी बना रहता है। ऐसे विवाद और मारपीट की अनेक घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। कई बार तो इसे लेकर बारातियों और घरातियों के बीच झगड़ा-फसाद तक हुए हैं। इस सारी स्थिति के बारे में परेशान व पीड़ित लोगों ने लाडनूं में हुए अटल जन सुनवाई शिविर में जिला कलेक्टर पुखराज सैन के समक्ष भी बात उठाई और बताया कि डीजे की तेज आवाज में ये डीजे शहर की गलियों में बेधड़क गुजरते हैं और लोगों को बहुत परेशान करते हैं। लोगों ने कलेक्टर से डीजे पर शहर में पुख्ता रोक लगाने की मांग की है। समाज सेवी नरपतसिंह गौड़ और अनूप तिवाड़ी ने भी कलेक्टर को स्थिति से अवगत करवाया।
मनुष्य के लिए अत्यंत घातक रहता है डीजे का तेज साउंड
यह प्रमाणित है कि डीजे से 200-500 डेसिबल तक की ध्वनि उत्पन्न होती है, जबकि इंसान सिर्फ श्रवण क्षमता के अनुसार व्यक्ति सिर्फ 60 डेसिबल की ध्वनि ही बर्दाश्त कर सकता है। इससे अधिक ध्वनि का स्तर कानों के लिए हानिकारक है। ध्वनि का स्तर बढ़ने पर कानों के अंदर की सूक्ष्म कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जो ध्वनि को संवेदनशील रूप से ग्रहण करती हैं। यह बाल रूपी कोशिकाएं एक बार बर्बाद हो जाने पर फिर से नहीं बनती हैं। इसलिए, लंबे समय तक तेज ध्वनि के संपर्क में रहने से कानों की सुनने की क्षमता कम हो जाती है। इसलिए डीजे की आवाज पर लगे प्रतिबंध को प्रभावशील बनाने की बहुत ही सख्त जरूरत है। डीजे की तेज आवाज से मनुष्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह मनुष्यों को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से बीमार बनाता है। यह मनुष्यों के बीच संवाद, समझ, सहयोग, समरसता आदि को बिगाड़ता है। डीजे की तेज आवाज से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से कानों में दर्द, बहरापन, कान की बीमारियां, कान का पर्दा फटना, श्रवण क्षमता का कम होना आदि का कारण बनता है तथा मनोवैज्ञानिक तनाव, चिंता, अवसाद, नींद न आना, ध्यान न लगना, याददाश्त कमजोर होना के साथ ही हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, अस्थमा, श्वसन तंत्र की बीमारियां पैदा करता है। पहले से बीमार चल रहे लोगों के लिए तो यह मौत का कारण तक बन जाता है। डीजे की तेज ध्वनि के कारण मस्तिष्क में ब्लड वेसल फट जाती है, जो एक गंभीर स्थिति है, और ब्रेन हेमरेज, स्ट्रोक, कोमा या मौत का कारण बन सकती है। डीजे पर कारगर पाबंदी सफल होने पर मनुष्यों की शांति, नींद, ध्यान, याददाश्त, कार्यक्षमता आदि में सुधार संभव होगा।
पशु-पक्षियों व पर्यावरण के लिए भी डीजे का ध्वनि प्रदूषण खतरनाक
डीजे की तेज आवाज मनुष्यों ही नहीं पशु-पक्षियों और वनस्पतियों तक के लिए घातक होती है। इनके स्वास्थ्य और पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। डीजे की तेज आवाज का असर पशु-पक्षियों का विकास और व्यवहार पर असर होता है, उनका प्रजनन और आहार ग्रहण करने में बाधा होती है और उनका प्राकृतिक आवास से पलायन तक हो जाता है। साथ ही उनकी जातियों का लुप्त होना तक संभावित है। डीजे पर प्रतिबंध कामयाब होने पर मनुष्यों और पशु-पक्षियों को शोर से बचने का मौका मिलेगा।मनुष्यों और पशु-पक्षियों का स्वास्थ्य और पर्यावरण सुधारेगा। पशु-पक्षियों का विकास, व्यवहार, प्रजनन, आहार ग्रहण, आवास आदि में सुधार होना संभव होता है।
भारी पड़ रही है कोताही, तुरंत एक्शन जरूरी
भयंकर दुष्परिणामों को पुलिस व प्रशासन द्वारा अनदेखी करना आमजन के लिए भारी पड़ रही है। मनुष्यों, पशु-पक्षी, वनस्पति, पर्यावरण आदि सभी के लिए हानिकर डीजे को बंद करवाने के लिए पुलिस व प्रशासन को सजग, सक्रिय होकर और लक्ष्य बना कर काम करना होगा। यह सबसे महत्वपूर्ण है और इसके बारे में कोताही बहुत भारी पड़ रही है।
