मालगांव में भरा गया करोड़ों का ऐतिहासिक मायेरा, बुरड़ी के रामनारायण झाड़वाल ने अपनी बेटी के मायेरा में जी खोलकर सबकुछ दिया

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मालगांव में भरा गया करोड़ों का ऐतिहासिक मायेरा,

बुरड़ी के रामनारायण झाड़वाल ने अपनी बेटी के मायेरा में जी खोलकर सबकुछ दिया

पवन पहाड़िया, पत्रकार। डेह (kalamkala.in)।
पैसा होना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है दिल का होना। यह कहावत चरितार्थ कर दिखाई डेह तहसील (नागौर) के बुरड़ी गांव के सेवानिवृत अध्यापक रामनारायण झाड़वाल ने। बुरड़ी गांव में रहने वाले झाड़दार का बड़ा लड़का डा. अशोक झाड़वाल नागौर के सुप्रसिद्ध चिकित्सकों में से एक है और इनसे छोटा लड़का विदेश (इटली) में प्रवास करता है। इनकी बेटी नागौर के पास ही मालगांव में मनीराम ढाका के यहां ब्याही हुई है। उसके लड़के की शादी में (झाड़वाल परिवार का दोहिता) की शादी में झाड़वाल परिवार ने दिल खोल कर मायरा की रश्म अदा की और ऐतिहासिक भात भरा।

250 कारों के काफिले में आए और भरा करोड़ों का मायरा

इस मायरे में बड़ी बात यह थी कि इनके सभी रिश्तेदारों, दोस्तों, डॉक्टरों आदि की कुल मिलाकर लगभग 250 कारों का काफिला मायरा भरने के लिए साथ पहुंचा। यह मायरा भरने में झाड़वाल परिवार ने 1 करोड़ 1 लाख रुपए नगद, 25 तोला स्वर्ण आभूषण, चांदी 5 किलोग्राम, नागौर में एक आवासीय प्लॉट (कीमत 15 लाख), एक नया ट्रेक्टर और उसके पीछे पूरी धान से भरी हुई ट्रॉली के अलावा मायरे में हजारों के बेस (वेशभूषा) दी गई। मायरा भरने के दौरान इन्होंने गांव की सम्पूर्ण बहन-बेटियों को बेस देने का भी विशेष ध्यान रखा। डॉक्टर अशोक झाड़वाल के व्यवहार के चलते नागौर के सभी चिकित्सक भी पहुंच कर इस मायरे के साक्षी बने। हजारों की संख्या में आये मायरदारों की खातिरदारी के लिए भी मालगांव के ढाका परिवार द्वारा माकूल व्यवस्था की गई थी।

पर्यावरण का निभाया दायित्व, खेजड़ी को चूनड़ी

राजस्थान की परम्परा है कि कोई भी परिवार मायरा भरने जिस गांव में जाते हैं, उस गांव में पहुंचने से पहले सरहद में घुसने के समय उस सीमा पर खड़ी खेजड़ी को भी किसी जीवित बहिन की तरह चूंदड़ी ओढाने के बाद ही उस गांव में प्रवेश करते हैं। इस चली आ रही परम्परा को भी इस परिवार ने बदस्तूर निभाया। इस परम्परा से सिद्ध होता है कि किसान वर्ग को खेजड़ी का भी ध्यान रखकर अपने पर्यावरण प्रेम और वृक्ष संरक्षण की पुरातन परम्परा को निभाना होता है। इससे पेड़ और विशेषकर मरुभूमि के कल्पवृक्ष माने जाने वाले खेजड़ी के पेड़ को भी बहिन की तरह से सम्मानित किया जाता है।

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Author: kalamkala

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