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लाडनूं बस स्टेंड के बरसों से विवादित मकान को ध्वस्त करने से रोकने सम्बंधी निषेधाज्ञा को न्यायालय ने खारिज किया, प्राचीन रावकुआं से जुड़ा हुआ मामला, पिछवाड़े में सारण के पास बना था मकान, व्यायामशाला के नाम से दे रखा था किराए पर

लाडनूं बस स्टेंड के बरसों से विवादित मकान को ध्वस्त करने से रोकने सम्बंधी निषेधाज्ञा को न्यायालय ने खारिज किया,

प्राचीन रावकुआं से जुड़ा हुआ मामला, पिछवाड़े में सारण के पास बना था मकान, व्यायामशाला के नाम से दे रखा था किराए पर

लाडनूं। यहां बस स्टेंड पर स्थित नगर पालिका के एक मकान के सम्बंध में वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश की अदालत ने निर्णय सुनाते हुए चाही गई अस्थाई निषेधाज्ञा को खारिज कर दिया है। न्यायालय में बृजराज सिंह पुत्र स्व. लक्ष्मण सिंह चैहान ने इस मकान के सम्बंध में नगर पालिका लाडनूं के अध्यक्ष, अधिशाषी अधिकारी, अनिल पहाड़िया व उप पंजीयक व तहसीलदार लाडनूं के खिलाफ वाद किया था। इसमें नगर पालिका द्वारा विवादित मकान को तोड़े जाने के प्रयास करने पर अस्थाई निषेधाज्ञा के लिए यहां न्यायालय में प्रार्थनापत्र 2016 में दाखिल किया गया था। इस प्रार्थना पत्र पर न्यायाधीश डा. विमल व्यास ने उभयपक्षों के वकीलों की दलीलों को सुना-समझा और वाद व प्रतिवाद के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आदेश जारी करके वाद के अस्थाई निषेधाज्ञा सम्बंधी प्रार्थनापत्र को खारिज कर दिया। न्यायाधीश ने लिखा है कि किराया देने से कोई विवादित मकान का मालिक नहीं हो सकता है। बिजली-पानी के कनेक्शन लेने से भी भूमि का स्वामी नहीं बना जा सकता है। उन्होंने यह विधि का सुस्थापित सिद्धांत माना है कि भूमि के वास्तविक स्वामी के विरूद्ध निषेधाज्ञा जारी नहीं की जानी चाहिए। जैन मंदिर के नाम से भूमि का पट्टा व स्वामित्व होने को निर्विवाद मानते हुए न्यायालय ने अचल सम्पति के किसी भी मौखिक अंतरण को मानने से इंकार कर दिया है। सुविधा-संतुलन औेर अपूर्णीय क्षति के सम्बंध में विचार करते हुए न्यायालय ने प्रार्थी के मूल वाद पर अप्रभावी रखते हुए अस्थाई निषेधाज्ञा के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है।

इस प्रकार रहा प्रार्थी का वाद

इस वाद में प्रार्थी बृजराज सिंह चैहान ने बताया था कि बस स्टेंड पर उनका एक रहवासी मकान है, जिसमें वे सदीन से रहते आए हैं। उसने अपना 50 साल से कब्जा और पानी व बिजली के कनेक्शन के लिए अपने नाम से नगर पालिका द्वारा सन 1994 में एनओसी भी जारी की थी। इस मकान का पट्टा तात्कालिक जागीरदार द्वारा जैन मंदिर लाडनूं के नाम से जारी किया हुआ था, जिसमें विक्रय, दान, हस्तांतरण, वसीयत आदि करने का कोई अधिकार नहीं दिया गया था। इसके बावजूद चुपके-चुपके बिना कब्जे के व बिना अधिकार के जैन मंदिर की संस्था ने दानपत्र निष्पादित करते हुए उप पंजीयक व तहसीलदार से मिलीभगत करके दान कर दिया। यह दानपत्र नगर पालिका के अध्यक्ष व अधिशाषी अधिकारी के नाम से करवाया गया। इस अवैध दानपत्र के आधार पर नगर पालिका के ये अधिकारी सन 2015 में इस मकान को ध्वस्त करने के लिए पहुंच गए तथा कहा कि इसे तोड़ कर दुकानें बनाई जाएगी। जबकि बृजराजसिंह ने वाद में बताया है कि वह अपने परिवार सहित सदीन से वहां निवास करता आ रहा है और खाने-कमाने के लिए मोटर वाईंडिंग की दुकान का संचालन भी करता रहा है।

प्रतिवाद में नगरपालिका द्वारा वर्णित तथ्य

इस वाद में अप्रार्थी नगर पालिका के अध्यक्ष व अधिशाषी अधिकारी ने प्रत्युत्तर में इस मकान का स्वामी कब्जाधारी को नहीं मानते हुए नगर पालिका के स्वामित्व का मकान बताया है। साथ ही बताया गया है कि इस विवादित मकान की जगह 67 साल पहले के वल भूमि थी, जिसका पट्टा ठिकाना लाडनूं ने जैन मंदिर के नाम से कर दिया और उन्होंने यहां मकान बनवाए। इसे 1970 में महावीर हिरोज संस्था द्वारा व्यायामशाला के नाम से किराए पर दे दिया। 1984-85 तक इस पर व्याख्यामशाला चलती रही थी। इस व्याख्यामशाला में प्रार्थी के पिता लक्ष्मण सिंह एक कर्मचारी के रूप में काम करते थे और किराया उनके माध्यम से ही जमा होता आया था। उन्होंने स्वयं कभी अपने किराए के रूप में कोइ्र किराया जमा नहीं करवाया और कभी किराएदार नहीं रहे। इस मकान को अपने अधिकारों के तहत ही जैन मंदिर ने नगर पालिका के नाम से पंजीकृत दानपत्र द्वारा प्रदान कर दिया था। इस वाद में पक्षकारों की ओर से इन्द्रचंद घोटिया, ताराचंद जांगिड़ व अनवर खान ने पैरवी करके न्यायालय के समक्ष अपनी दलीलें रखी।

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