सावधान- अब डाक्टर रोगों से नहीं लड़ते, बल्कि मरीजों से और आपस में झगड़ते हैं, लाडनूं का सरकारी अस्पताल हुआ दुर्दशा का शिकार
लाडनूं के अस्पताल को मखौल बनाया, खुद लड़ते-झगड़ते हैं डाक्टर और मरीजों को करते हैं परेशान, पीएमओ चैनाराम की हठधर्मिता- विशेषज्ञ चिकित्सक कानाराम को किया एपीओ व रिलीव, अब पुलिस तक रिपोर्ट, लोगों ने की इस मनमर्जी की घोर भर्त्सना
लाडनूं (kalamkala.in)। यहां राजकीय चिकित्सालय में दो डाक्टरों के बीच हुए झगड़े ने परस्पर गाली-गलौज और एपीओ करने के आदेश के बाद दो ही दिनों में अब पुलिस तक भी पहुंच गया है। पुलिस मामले की जांच कर रही है। इसमें डा. चैनाराम ने केवल डा. कानाराम को ही दोषी ठहराने की चेष्टा की है। हुआ इस प्रकार कि लाडनूं के राजकीय चिकित्सालय के पीएमओ डा. चैनाराम ने स्थानीय पुलिस से अपनी सुरक्षा की गुहार लगाते हुए किसी अज्ञात व्यक्ति पर फोन करके धमकाने का आरोप भी लगाते हुए इस फोन व घटना को वजह-बेवजह पहले दिन चिकित्सक के साथ हुई अपनी झड़प से जोड़ते हुए अपने साथ कुछ भी होने का दोषी डा. कानाराम डूकिया को ठहराने का अंदेशा भी जताया है। पीएमओ डा. चैनाराम ने लाडनूं पुलिस थानाधिकारी को लिखा है कि, 18 फरवरी को वह (डॉ. चैनाराम) अपने कक्ष में रोगियों को परामर्श दे रहा था, तभी 11.13 बजे सुबह एक मोबाईल (नम्बर दिया गया है) से फोन आया और धमकी भरे लहजे में कहा कि ‘लाडनूं से सीकर की दूरी बहुत ज्यादा है, ध्यान रखना, सेफ्टी बिल्कुल भी नही है।’ इतना बोलकर उसने फोन कट कर दिया। अब डा. चैनाराम आगे लिखते हैं कि ‘मेरा निवास स्थान सीकर के नजदीक ही है। मेरे साथ कुछ भी जान-माल की हानि घटित होती है, तो इसकी समस्त जिम्मेदारी डॉ. कानाराम डूकिया की होगी।’ इतना ही नहीं डा. चैनाराम ने अपने एक दिन पहले हुए झगड़े का खुलासा भी इसमें किया है। उन्होंने लिखा है कि वे राजकीय चिकित्सालय लाडनूं में प्रमुख चिकित्सा अधिकारी हैं। 16 फरवरी को राजकीय चिकित्सालय लाडनूं में कार्यरत डॉ. कानाराम डूकिया ने उनके कार्यस्थल कक्ष रूम. नं. 3 में आकर गाली-गलौच एवं अभद्रता की थी तथा मारपीट पर भी उतारू थे। इस प्रकरण पर उच्च अधिकारियों से बात करके चिकित्सक डॉ. कानाराम डूकिया को संयुक्त निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाऐं जोन अजमेर के लिए कार्यमुक्त कर दिया गया था।’
दोनों डाक्टर शीघ्र मांगे आम जनता से माफी
लगता है डा. चैनाराम पूरी तरह से पूर्वाग्रह ग्रसित हैं। इस प्रकार पुलिस रिपोर्ट में बिना किसी आधार के बातें वर्णित करने और बिना उचित कारण सारा दोष एक सहकर्मी डाक्टर के मत्थे मंढना इसी का द्योतक है। फोन किसका था, किसने किया, कहां से किया, क्या उद्देश्य था, इसका कुछ भी नहीं पता। लेकिन, सब कुछ डा. कानाराम ने ही सबकुछ किया, यह कुंठा ही कही जा सकती है। एक चिकित्सक और वह भी पीएमओ के लिए यह कत्तई उचित नहीं कहा जा सकता। लेकिन, यह तो हो रहा है, लगता है कि पीएमओ बहुत अधिक भयभीत हो चुके हैं और वे डा. कानाराम से बहुत डरते हैं। इसी कारण बौखलाहट में उन्होंने डा. कानाराम को एपीओ और रिलीव तक कर डाला। डा. कानाराम चाहे तो इस वायरल हुई रिपोर्ट को लेकर डा. चैनाराम पर मानहानि का मुकदमा कर सकते हैं। अब इस मामले में होना तो यह चाहिए कि दोनों डाक्टरों ने आम मरीजों और अस्पताल की व्यवस्थाओं के खिलाफ जाकर जो कुछ भी किया है, उसके लिए दोनों ही सार्वजनिक तौर पर आम जनता से माफी मांगे। अगर दोनों में हठधर्मिता कायम है, तो वे ऐसा कभी नहीं करेंगे। इन चिकित्सकों को याद रखना चाहिए कि इन्होंने माफी नहीं मांगी तो लाडनूं की जनता इनको कभी माफ नहीं करेगी।
आपसी झगड़े में डाक्टर डूबे, मरीजों की लुटिया डूबी
इन दोनों चिकित्सकों ने आपस में लड़ कर लाडनूं के राजकीय उप जिला चिकित्सालय का मखौल बना डाला। मरीजों की मजबूरियों को दरकिनार कर इन चिकित्सकों को आपस के झगड़े की पड़ी है। अब मरीजों की तो दुर्गति ही होनी है। इन दोनों के बीच वास्तव में क्या घटना हुई, इसकी पूरी जानकारी नहीं है। झगड़ने-ऐंठने वाले दोनों डाक्टर केवल अपने-अपने हिसाब से बात को पेश करने में लगे हैं। किसी भी झगड़े का कारण कभी एक-पक्षीय नहीं हुआ करता, कहीं न कहीं दोनों पक्षों की गलतियां अवश्य रही होगी। इन दोनों डाक्टरों की भिड़ंत में एक डाक्टर के पास पीएमओ का चार्ज भी है और इसी पद का अपने पक्ष में उपयोग करते हुए उन्होंने बिना किसी नोटिस दिए और स्पष्टीकरण मांगे सीधे आदेश जारी कर अपने प्रतिपक्षी डाक्टर को एपीओ और रिलीव कर डाला। अब लोग इसे लेकर सवाल खड़े करने में लगे हैं और न्यायसंगत होने की बात कर रहे हैं। दो की लड़ाई होने पर बीच-बचाव और बातचीत, सुलह-समझौता का प्रयास सबसे पहले होता है। पर जहां पद और अधिकार होता है, वहां स्वयं सर्वेसर्वा बन जाना कोई अचम्भित करने वाला नहीं है। हालांकि इसे लेकर भी लोगों में बहुत सारे सवाल कुलबुलाने लगे हैं। यहां हाल ही में रविवार को रात्रि में आए एक पीड़ित महिला चिकित्सक को आपातकालीन चिकित्सा की आवश्यकता थी, लेकिन इन डाक्टरों ने अपनी सेवा की शपथ को भुला डाला। कहां जाता है कि जिनके मुंह खून लग जाए, तो उन पर फिर कोई हया-दया का असर नहीं हुआ करता। लगता है कि कहीं न कहीं लाडनूं चिकित्सालय में कमोबेश ऐसे ही हालात हो रहे हैं। जब चिकित्सक सेवा के लिए तत्पर नहीं रहेंगे, तै मरीजों का बेहाल होना निश्चित है।
दुर्दशाग्रस्त है लाडनूं का राजकीय चिकित्सालय
लाडनूं का यह चिकित्सालय उप जिला चिकित्सालय का दर्जा प्राप्त है। 150 बेड और ब्लड बैंक के बावजूद अव्यवस्थाओं का दौर यहां निरन्तर बना हुआ है। पीएमओ का दायित्व अस्पताल को बेहतर प्रबंधन देना होता है, मगर जब खुद पीएमओ लड़ाई-झगड़ों में मशगूल हो जाता है, तो उसके दायित्व तो खूंटी पर टंग ही जाते हैं। अस्पताल में मरीजों की भीड़ लगती है, उनके लिए सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है। सारे डाक्टर अपनी ड्यूटी भी पूरी नहीं करते और मरीजों को यहां परेशान-हैरान होने के बाद या तो आसपास के प्राइवेट होस्पिटलों की शरण लेनी पड़ती है अथवा इन्हीं डाक्टरों के घर जाकर दिखाना होता है। ये डाक्टर अस्पताल परिसर में बने अपने क्वार्टरों में मरीज देखते हैं और प्रति मरीज 150-150 रुपए वसूल करते हैं। इससे स्वयं पीएमओ भी वंचित नहीं है।
मरीजों के साथ दुर्व्यवहार के लिए भी डाक्टर इतनी जल्दी एपीओ होने चाहिए
आस-पास के बहुत सारे ग्रामीण इलाके व शहरी क्षेत्र सहित लाडनूं का यह सबसे बड़ा और सबसे पुराना अस्पताल आज प्रतिस्पर्धा में सबसे पिछड़ता जा रहा है। यह यहां केवल चिकित्सकों की कमी के कारण नहीं है, बल्कि इसमें डाक्टरों की हठधर्मिता का प्रमुख कारण है। इन चिकित्सकों की मनमानी और जनहित की अनदेखी के कारण इसके बुरे हाल हैं। मरीजों को कोई चैम्बर खाली मिलता है तो किसी चैम्बर में डाक्टरों का झुंड मिलता है, जो गपशप और चाय-पानी में मशगूल रहते हैं। किसी को मरीजों की कोई परवाह नहीं है। यही कारण है कि मरीजों को प्राइवेट दिखाने पर मजबूर होना पड़ता है। चाहे डाक्टर की फीस हो या लेबोरेटरी टेस्ट सबके लिए मरीजों को अस्पताल से बाहर का सहारा लेना पड़ता है। ये डाक्टर परस्पर एक-दूसरे पर दुर्व्यवहार के आरोप लगाते हैं, लेकिन ये मरीजों के साथ केवल उपेक्षा नहीं, बल्कि दुर्व्यवहार करते ही रहते हैं, जो इनकी रोजमर्रा की आदत बन चुकी है। ऐसी घटनाएं आम हो चुकी हैं, अब ऐसे दुर्व्यवहार के शिकार बने मरीजों के लिए किस-किस डाक्टर को एपीओ किया जाएगा?
दोनों डाक्टर अपनी गलतियों के लिए जनता से माफी मांगें
अस्पताल में अपनी ड्यूटी के दौरान झगड़ा करने वाले दोनों डाक्टरों को आकर आम जनता से अपनी करतूतों के लिए सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए। दोनों बराबर के दोषी हैं और जो पीएमओ है, वह सबसे बड़ा दोषी है, जो डाक्टर-डाक्टर के प्रति भेदभाव रखता है, अपने स्टाफ में परस्पर मतभेद पैदा करवाने की कोशिश करता है और पद व अधिकार का दुरुपयोग करने से नहीं चूकता, ऐसे व्यक्ति को सबसे पहले एपीओ किया जाना चाहिए। क्या उच्च अधिकारी और लाडनूं के राजनेता इन लोगों को अपनी कारस्तानी के लिए कोई सजा नहीं देंगे? अगर ऐसा नहीं किया गया, तो इस राजकीय उप जिला चिकित्सालय का भगवान ही मालिक है।
