
डीडवाना के 1100 वर्ष पुराने पाढ़ाय माता मंदिर की होगी पुनर्सृजना,
झालरिया पीठाधीश्वर घनश्यामाचार्यजी महाराज ने दिलवाया सबको संकल्प, जसवंतगढ के सुरेश गग्गड़ ने कहा- मंदिर का स्वरूप ऐतिहासिक
डीडवाना। डीडवाना के कोट मौहल्ला में स्थित 1100 वर्ष प्राचीन पाढ़ाय माता मंदिर का पुनर्निर्माण शीघ्र शुरू किया जाएगा। मंदिर व्यवस्था समिति द्वारा झालरिया पीठाधीश्वर जगद्गुरू रामानुजाचार्य घनश्यामाचार्यजी महाराज के सान्निध्य में मंदिर प्रागंण में हुई बैठक में इस निर्माण कार्य का शुभारम्भ वास्तु शास्त्र एवं शास्त्रीय ग्रंथों का पठन कर विधिपूर्वक किए जाने और व्यवस्थाओं को लेकर विचार-विमर्श किया गया तथा महाराज घनश्यामाचार्य से आशीर्वाद लेकर पाढाय माता की कपूर-आरती उनके द्वारा करवाकर सभी सदस्यों ने इसके लिए जुट जाने का संकल्प ग्रहण किया।
मंदिर को पुनसर्जित करने के लिए दिया आशीर्वाद
घनश्यामाचार्यजी महाराज ने मंत्रोच्चारण के साथ मां की कपूर आरती की एवं भगवान गणेश की प्रतिमा पर नतमस्तक करते हुए मां का साष्टांग प्रमाण कर मंदिर निर्माण को जल्द से जल्द शुरू करने का आदेश दिया। महाराज ने सभी भक्तों से आह्वान किया कि इस ऐतिहासिक माताजी के मंदिर को पुनः सुसृजित करने में हर व्यक्ति अपना आर्थिक सहयोग करे। निश्चित रूप से मंदिर भव्य स्वरूप मे बनेगा। इस मौके पर महाराज का मंदिर समिति की और से माला पहनाकर सोल ओढ़ाकर स्वागत भी किया गया। महाराज ने उपस्थित ट्रस्टियों एवं नगर के प्रबुद्धजनों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि हर मंदिर को पुजाने में और उस मंदिर की मान्यता को भक्तों मे एवं सम्पूर्ण सनातन धर्म मे प्रचारित करने का कार्य पुजारी करता है। इस कार्य मे महत्वूपर्ण भूमिका उन सदस्यों की होती है जो मंदिर की संचालन समिति में रहते हैं, क्योंकि भगवान की हर प्रतिमा नाबालिग रूप में होती है। महाराज ने कहा कि वहे मनुष्य भाग्यशाली हैं, जिन्होंने अपने जीवन में ईश्वरीय भक्ति के साथ-साथ मंदिर मठों की ख्याति बढ़ाने मे अपना योगदान दिया है। व्यासपीठ के दिवंगत शुकदेव प्रसाद व्यास का स्मरण करते हुए महाराज ने कहा कि व्यास ने हमेशा मंदिरों की रक्षा और सुरक्षा के लिए कार्य किया था, जिनको इस क्षेत्र की सम्पूर्ण भौगोलिक दृष्टि और विशेष रूप से धार्मिक स्थलों का इतिहास उन्हें याद था। उन्होंने हमें कई बार इनका स्मरण भी करवाया।
इंजीनियर से प्रारूप बनाकर किया जाएगा मंदिर का निर्माण
मंदिर समिति के नवनियुक्त अध्यक्ष जसवंतगढ़ निवासी मुम्बई प्रवासी उद्योगपति सुरेश गग्गड़ ने कहा कि मां की कृपा और गुरूजनों का आशीर्वाद निश्चित रूप से इस धार्मिक कार्यक्रम को सफल बनाएगा। उन्होंने कहा कि मंदिर का स्वरूप ऐतिहासिक होगा और अनुभवी इंजीनियर से इसका प्रारूप बनवाकर कार्य को गति दी जाएगा। मंदिर निर्माण मे धन की कम नहीं आएगी क्योंकि सभी पर मां की विशेष कृपा है। इस मौके पर मंदिर समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ओमप्रकाश मोदी, हिसाब परीक्षक नितेश बाजारी, सहपरीक्षक मुकेश रूवटिया, कोषाध्यक्ष मनोज सारड़ा, उपमंत्री योगेशलाल शर्मा, ट्रस्टी कृष्णबिहारी व्यास, सुरेश व्यास, राजेश सवेक, दामोदर सेवक, गोविन्दनारायण मिश्र, कमल मोट आदि ट्रस्टियों ने भी महाराज का स्वागत किया। कार्यक्रम मे दिनेश लदनियां, महेन्द्र विक्रम सोनी, सुरेश प्रकाश पसारी, जगदीश प्रसाद गोपा, मदनलाल सैनी, नंदकिशोर नागौरी, महेन्द्र कागलीवाल, राहुल माथुर, लोकेश अग्रवाल, बजरंग पारीक, दिनेश जांगिड़ आदि उपस्थित रहे।
केर के झाड़ से प्रकट होकर देवी बना दी नमक की झील
डीडवाना के पास बालिया गांव में कई किलोमीटर में फैली प्रसिद्ध नमक की झील के किनारे पाढ़ाय माता का ऐतिहासिक मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में विराजित देवी की प्रतिमा पास ही लगे केर के झाड़ से प्रकट हुई थी और उन्हीं के वरदान से खारे पानी की झील बनी, जिसमें नमक बनता है। इस मंदिर में देवी के महिषासुरमर्दिनी स्वरूप में पूजा होती है। कहा जाता है कि बरसों पहले यह जगह सूनसान थी, जहां गाएं चराई की जाती थी। डीडवाना शहर के नगरसेठ रहे भैरव लाल सारड़ा की गायें भी यहां चरने आती थी। उनमें से एक गाय का दूध निकला हुआ देखकर सेठ ने चरवाहे को उलाहना दिया और कहा कि तुम एक गाय का दूध निकालकर बेच देते हो। चरवाहे ने इससे इनकार किया और उस गाय का पूरा ध्यान रखने लगा। तबदेखा कि एक केर के झाड़ में से एक छोटी बच्ची निकली और गाय का दूध पीकर वापस चली गई। इस घटना के बारे में चरवाहे ने सेठ को बताया तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ और वे अपना घोड़ा लेकर खुद अगले दिन गायों के पीछे-पीछे आए और ठीक वैसा ही पाया, जैसा उस चरवाहे ने बताया था। केर के झाड़ में से निकली एक बच्ची गाय का दूध पीकर जाने लगी, तो सेठ ने पीछे से रुकने को कहा और पूछा कि वह कौन है। तब बच्ची ने सेठ को वास्तविक स्वरूप में दर्शन दिए और कहा कि वह इसी केर के झाड़ में से प्रकट होगी और सेठ कहा कि वह अपना घोड़ा लेकर जितनी दूर तक दौड़ सकता है दौड़ाए, उतनी जगह पर चांदी की खान हो जाएगी। लेकिन, पीछे मुड़कर नहीं देखना है। देवी यह कह कर अन्र्तध्यान हो गई। सेठ अपनी गाय और घोड़ा लेकर दौड़ने लगा। अचानक केर का झाड़ चार हिस्सों में फटा और तेज गर्जना हुई, जिसे सुनकर सेठ का घोड़ा रुक गया। उसने पीछे मुड़कर देखा, तो काफी बड़े इलाके में चांदी की खान बन गई थी। सेठ वापस उस स्थान पर पहुंचा। जहां देवी ने उसे दर्शन दिए थे और प्रार्थना किया कि इस चांदी के लिए लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाएंगे और मारकाट होगी। उसने जमीन को वापस पहले जैसी करने को कहा। तब देवी ने वरदान दिया कि अब यहां चांदी की खान के बजाय खारे पानी की झील होगी औरं नमक बनेगा। लोग मेहनत करके नमक बनाएंगे और चांदी कमाएंगे।
विक्रम संवत 902 को शिलालेख लगा है मंदिर में
इस मंदिर में मिले शिलालेखों के अनुसार, विक्रम संवत 902 में मंदिर के गर्भगृह और उसके ऊपर शिखर का निर्माण कर केर के झाड़ से निकली देवी की प्रतिमा को यहां विराजमान किया गया था। बताया जाता है कि इस मंदिर के गर्भगृह और शिखर का निर्माण भी नगरसेठ भैरव लाल सारड़ा ने ही करवाया था। पाढ़ाय माता का मंदिर, गर्भगृह और शिखर स्थापत्य कला के साथ ही वास्तुकला का भी बेजोड़ नमूना है। गर्भगृह के मुख्यद्वार के ऊपर भगवान विष्णु की शयन आसान में बनी प्रतिमा स्थापित की गई है। परिक्रमा पथ में शिखर पर सबसे पहले नृत्य करते हुए भगवान गणेश की आकर्षक प्रतिमा लगी है। आगे बढ़ने पर नटराज स्वरूप में भगवान शिव की दुर्लभ प्रतिमा विराजमान है। इसके बाद देवी की महिषासुरमर्दिनी स्वरूप में आकर्षक और दुर्लभ प्रतिमा है। मंदिर के शिखर पर आकर्षक बनावट के साथ ही रामायण के प्रसंग भी दर्शाए गए हैं। साल 2008 में राजस्थान सरकार के पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित की श्रेणी में शामिल किया था। विभाग की ओर से एक गार्ड भी यहां तैनात किया गया है। लेकिन कभी मंदिर में मरम्मत या विकास का कोई काम नहीं करवाया गया है। नमक की हवा के कारण सैकड़ों साल पुराने पत्थर गलने लगे हैं। पत्थर की कई मूर्तियों और कलाकृतियों को भी नुकसान हुआ है।
