सामाजिक व वैश्विक शांति का आधार हैं परिवार, शिक्षा व विकास का माॅडल- प्रो. बारैठ,
लाडनूं में आईसीएसएसआर के सहयोग से सामाजिक शांति पर दो दिवसीय इंटरनेशनल सेमिनार सम्पन्न
जगदीश यायावर। लाडनूं (kalamkala.in)। इंडियन कौंसिल ऑफ सोशियल साईंस रिसर्च (आईसीएसएसआर) के प्रयोजन में यहां जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार का समापन शनिवार को सेमिनार हाल में किया गया। ‘स्ट्रेंथनिंग दी इन्नेट अवेयरनेस आॅफ एफेक्शन एंड यूनिटी: ए क्वेस्ट फोर सोशल पीस’ विषय पर आयोज्य इस अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार के समापन सत्र के मुख्य अतिथि महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर के पूर्व कुलपति प्रो. आरएस बारैठ ने विश्वविद्यालयों को समाज का दिशा-निर्देशक के रूप में मानते हुए कहा कि राजनीतिक तंत्र केवल समस्याओं के समाधान का काम करता है, लेकिन विश्वविद्यालयों से भविष्य की नवीन विचारधारा का निर्धारण भी होता है। सामाजिक स्थितियों के बदलने से ही शांति स्थापित हो सकती है। समस्त प्रकार की उन्नति हो जाने के बाद भी सामाजिक शांति नहीं बन सकती है, इसके लिए तीन सेक्टर जिम्मेदार हैं, जिनमें परिवार, शिक्षा व विकास का माॅडल शामिल है। परिवार संस्था की भूमिका सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण होती है। प्राचीन भारत में पारिवारिक संगठन शक्तिशाली होता था, जिसे समापत किया जाने लगा है। यह बहुत ही खतरनाक परिणाम देने लगा है। इसी तरह शिक्षा व्यवस्था में मूल्यों के बजाए पैसों को महतव दिया जाना भी खतरनाक है। ज्ञान, व्यक्तित्व विकास और सामाजिक व्यवस्था की प्राप्ति शिक्षा से ही संभव है। इसके अलावा विकास के माॅडल के रूप में पश्चिम का अंधानुकरण भी घातक साबित हो रहा है। इस माॅडल से जब पश्चिम को भी शांति नहंी मिली, तो हम शांति की उम्मीद नहीं कर सकते। हमें इसके लिए गांधीवादी माॅडल को अपनाना होगा, जिसमें प्रति व्यक्ति उपभोग के बजाय जैसा विचार-वैसा आचार की पद्धति होगी। दिल से प्रेम होने पर ही अहिंसा व शांति कायम हो सकती है।
आंतरिक द्वंद्व को शांत करने से होगी विश्व शांति
मुख्य वक्ता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के सेंटर फाॅर इटरनेशनल पाॅलिटिक्स, आर्गेनाईजेशन एंड डिजारमामेंट के शांतेश कुमार सिंह ने कहा कि अपने हितों के लिए दूसरे के हितों की अवहेलना करना गलत होता है। अपने अंदर के द्वंद्व को शांति करने पर ही दुनिया में शांति की जा सकती है। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के तीन चरणों की बात रखते हुए उन्होंने कहा कि व्यक्ति के कारण ही सामाजिक द्वंद्व पैदा होता है और सामाजिक संघर्ष से राष्ट्र अशांत होता है। दुनिया के संघर्ष में व्यक्ति की ही भूमिका रहती है। मांग, लोभ व लालच ही समस्त प्रकार की अशांति व संघर्ष पैदा होता है। मूल्यों की अवहेलना के कारण ही समस्त समस्याएं बढती जा रही है। हमने गुरूकुल परम्परा को छोड़ कर व्यक्तिगत के मूल्यों में गिरावट पैदा कर दी है। नई शिक्षा नीति की सराहना करते हुए उन्होंने भारतीय मूल्यों के प्रतिस्थापन और वसुधैव कुटुम्बकम की नीति को विश्व-शांति के लिए जरूरी बताया तथा कहा कि केवल सेनाओं की लड़ाई मिटने को ही शांति नहीं कहा जा सकता, बल्कि व्यक्ति के अपने अंदर की शांति के लिए द्वंद्व को मिटाना जरूरी है। विशिष्ट अतिथि गांधी दर्शन समिति नई दिल्ली के ज्वाला प्रसाद ने कहा कि युद्ध से शांति नहीं हो सकती, इसके लिए जरूरी है कि हमारा साधन शद्ध व पवित्र हो, तभी साध्य शांति भी पवित्र होगी। उन्होंने तकनीक के बजाय पारिवारिक शांति, सहभोज की प्रवृति के बढने से शांति स्थापना को संभव बताया और अपरिग्रह को जरूरी बताते हुए कहा कि वैश्वीकरण के युग में भी संयम की खोज करने से ही शांति की ओर बढा जा सकता है।
सामाजिक शांति के लिए विकास नहीं, समन्वय आवश्यक
अध्यक्षता करते हुए जैविभा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि विकास अवश्य हुआ है, लेकिन व्यक्ति के अंदर की खुशियां व आपसी प्यार लुप्त हो रहा है। जबकि, खुशी से ही शांति संभव है। उन्होंने बताया कि रतन टाटा ने कहा था कि बच्चे को अमीर बनना नहीं बल्कि उसे खुश रहना सिखाएं तथा अगर तेज चलना हो तो अकेले चलें, लेकिन अगर लम्बा चलना हो तो सबके साथ चलना चाहिए। खुश रहने एवं सामुहिकता ही शांति के कारक होते हैं। उन्होंने अनेकांत के सिद्धांत की चर्चा करते हुए कहा कि एक-दूसरे के विचारों को महत्व दें और एक-दूसरे का सम्मान करें, यह आवश्यक है। जगत की विविधता में ही सौंदर्य है। सामाजिक शांति के लिए अतीव विकास नहीं, बल्कि पड़ौसी तक समन्वय आवश्यक है। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुमुक्षु बहिनों के मंगलाचरण से किया गया। डा. समणी रोहिणी प्रज्ञा ने अतिथि परिचय व स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। विभागाध्यक्ष डा. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने दो दिवसीय इंटरनेशनल सेमिनार की गतिविधियों का सारांश प्रस्तुत किया। अंत में डा. बलवीर सिंह ने आभार ज्ञापित किया। समापन सत्र का संचालन संयोजिका डा. लिपि जैन ने किया।
इन सब विद्वानों ने किए पत्रवाचन
इस दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार में आयोजित विभिन्न सत्रों में अध्यक्ष, अतिथि व मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. बजरंग सिंह राठौड बीकानेऱ, डा. जुगलकिशोर दाधीच बिहार, डा. आरएस राठौड़, प्रो. साधना भंडारी बीकानेर, डा. रोशन पोखरेल नेपाल, प्रो. समणी कुसुमप्रज्ञा, प्रो. जिनेन्द्र जैन, कमांडर भूषण दीवान पिलानी, डा. मधुबाला जयपुर, डा. एसएन भारद्वाज, प्रो. राजीव सिंह हरियाणा, डा. शैफाली जैन जयपुर, डा. मुकेश कुमार वर्मा जयपुर, डा. मनीषा जैन आदि रहे। इनमें सम्बद्ध विभिन्न विषयों पर डा. शत्रुघ्न सिंह, डा. सुषमा मौर्य, डा. संजय भारद्वाज, डा. निर्मल कुमार जैन, डा. सुनीता इंदौरिया, डा. दशरत दार, डा. एसएन भारद्वाज, श्वेता खटेड़, गोपीराम, नरेन्द्र सिंह राठौड़, डा. सदीप कुमार सिंह, डा. अतुल गर्ग, गजेन्द्र सिंह, डा. मृदुला शर्मा, मनोज कुमार शर्मा, शकुंतला जोशी, सोनू कंवर, संतोष गहलोत, निधि राठौड़, प्रो. सुनीता गोयल, डा. गिरधारीलाल शर्मा, डा. सब्यसांची सारंगी, प्रमोद ओला, दशरथ सिंह, शबाना यास्मीन, रूपल राठौड़, डा विनोद कस्वा, डा. प्रगति भटनागर, पिंकी गुलेछा, प्रगति चैरड़िया, स्नेहा शर्मा, अपराजिता, डा. अमिता जैन, रमेश सोनी, सपना कंवर, सोजी सेम्युअल, डा. नमामि शंकर आचार्य, डा. ऋचा उपाध्याय, डा. समणी संगीत प्रज्ञा, डा. गोविन्द सारस्वत, डा. सरोज राय, डा. आयुषी शर्मा, उज्ज्वल डागा, अभिषेक चारण, खुशाल जांगिड़, सुनयना, नन्दिनी काशलीवाल, सीमा कांवट आदि ने अपने पत्र वाचन किए।