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शैक्षिक संस्थानों से शुरू की जा सकती है भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई- प्रो. गौतम, ‘भ्रष्टाचार से मुकाबले में शिक्षा की भूमिका’ पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

शैक्षिक संस्थानों से शुरू की जा सकती है भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई- प्रो. गौतम,

‘भ्रष्टाचार से मुकाबले में शिक्षा की भूमिका’ पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

लाडनूं। ‘भ्रष्टाचार से मुकाबले में शिक्षा की भूमिका’ पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में राजकीय बांगड़ काॅलेज डीडवाना के सेनि. प्रो. अजयकुमार गौतम ने कहा कि संदूषित आचरण भ्रष्टाचार कहलाता है। सबके लिए आचरण की शुद्धता मनसा, वाचा, कर्मणा हर तरह से होनी चाहिए, तभी भ्रष्टाचार पर नियंत्रण संभव हो सकता है। उन्होंने शैक्षिक संस्थानों में विद्यार्थियों को भ्रष्टाचार के दुष्प्रभावों से अवगत करवाकर उन्हें ईमानदारी युक्त आचरण की प्रेरणा प्रदान की जाने को भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए आवश्यक बताया तथा कहा कि जो सद्गुणों के धारक विद्यार्थी भावी नागरिक के रूप में समाज के समाने आएंगे, वे पूरे राष्ट्र में नैतिकता का माहौल बनाएंगे और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाएंगे। जैन विश्वभारती संस्थान केे शिक्षा विभाग में चल रहे ‘सतर्कता जागरूकता सप्ताह’ के अंतर्गत ‘भ्रष्टाचार से मुकाबले में शिक्षा की भूमिका’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में सम्बोधित करते हुए उन्होंने जब शिक्षा के दौरान प्रारम्भ में ही विद्यार्थियों को अच्छे ढांचे मेें ढाल दिया जाएगा, जो सच्चरित्र, मूल्य आधारित सुदृढ समाज निर्माण की वे बुनियाद साबित होंगे।
विचारो की शुद्धता से संभव है भ्रष्टाचार की समस्या का समाधान
राष्ट्रीय सेमिनार के विशिष्ट अतिथि केशव विद्यापीठ जामडोली जयपुर के डॉ. सतीश मंगल नेे चारों ओर धधकती भ्रष्टाचार की ज्वाला का आभास करवाते हुए उसके लिए अंग्रेजों की शासन नीतियों को दोषी ठहराया। मंगल ने बताया कि अंग्रेजों ने जिस फूट डालो राज करो की नीति को अपनाया, उसके कारण आज भी असत्यता, स्वार्थपरकता, बेईमानी, अनैतिकता आदि समाज के प्रत्येक क्षेत्र में देखे जा सकते हैं और इन्हीं के कारण भ्रष्टाचार व्याप्त है। आज भारत सरकार को इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करवाने पड़ रहे हैं, वह सब अंग्रेजों की फैलाई गंदगी को साफ करने की कवायद है। उन्होंने विचारो की शुद्धता को भ्रष्टाचार की समस्या का समाधान बताया और कहा कि यदि आज सभी देशवासी शुद्ध विचार धारण कर लें तथा अशुद्ध विचारों को त्यागने का संकल्प लें, तो सतर्कता जागरूकता के अन्तर्गत किए जाने वाले सभी कार्यक्रम सार्थक हो सकेंगे।
नैतिक व्यवहार से ही मिट पाएगा भ्रष्टाचार
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शिक्षा विभाग के विभगाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने कहा कि भ्रष्टाचार एक प्रकार की महामारी बन चुका है। जब तक हम सभी ईमानदारी एवं नैतिकता को अपने आचरण का अंग नहीं बनायेंगे, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण संभव नहीं हा पाएगा। उन्होंने शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं अभिभावकों के लिए अपने व्यवहार में प्रमाणिकता अपनाए जाने को आवश्यक बताते हुए भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की शुरूआत इसी से संभव होना बताया। प्रारम्भ में कार्यक्रम के संयोजक डॉ. गिरधारी शर्मा ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया और अंत में आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में विभिन्न संकायों के सदस्य तथा विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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Author: kalamkala

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