राजस्थान विधानसभा चुनावों को रहे सिर्फ 10 माह, कांग्रेस अभी तक नहीं संभली,
प्रखर विरोध के बीच 26 जनवरी से विधानसभा स्तर पर निकाली जाएगी कांग्रेस की ‘‘हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा’’,
आखिर अशोक गहलोत भी पेपर माफिया पर बुलडोजर चलाने पर उतरे
अजमेर (एसपी मित्तल, ब्लाॅगर)। जयपुर में 26 जनवरी से शुरू होने वाली हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा की तैयारियों को लेकर 8 जनवरी को एक बैठक हुई। यह यात्रा विधानसभा स्तर पर होनी है, इसलिए 2018 में कांग्रेस के पराजित हुए प्रत्याशियों को भी बुलाया गया। निवर्तमान जिलाध्यक्ष और प्रमुख पदाधिकारियों को भी आमंत्रित किया गया। लेकिन, बैठक में कांग्रेस नेताओं की कम संख्या को देखते हुए प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कहा कि आप को थोड़ा कडक होना पड़ेगा। रंधावा का मानना रहा कि गहलोत के नरम रुख के कारण संगठन की स्थिति कमजोर नजर आ रही है। यह तब है, जब 10 माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस बैठक में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट, पंजाब के प्रभारी हरीश चैधरी, कई मंत्री पदाधिकारी आदि उपस्थित नहीं हुए। शायद रंधावा को राजस्थान में कांग्रेस की नाजुक स्थिति अभी तक समझ में नहीं आई है। नाजुक परिस्थितियों में सरकार चलाने का इल्म गहलोत के पास ही है। यदि गहलोत कड़क हुए तो राजस्थान में कांग्रेस की सरकार ही गिर जाएगी।
खुलेआम हो रहा है गहलोत का विरोध
सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढा ने खुलेआम कहा कि अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को 11 सीटें भी नहीं मिलेंगी। गुढा ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की। गहलोत तब भी कड़क या नाराज नहीं हुए। मंत्री अशोक चांदना, प्रताप सिंह खाचरियावास आदि के हमलों पर भी सीएम गहलोत चुप रहे। असल में गहलोत को भी पता है कि कड़कपन दिखाने से हालात बिगड़ सकते हैं। रंधावा समझे या नहीं, लेकिन गहलोत ने अपनी राजनीतिक चतुराई से नाजुक हालातों को संभाल रखा है। 108 में से 91 विधायकों के इस्तीफे के बाद भी गहलोत मुख्यमंत्री बने हुए हैं। गहलोत से कांग्रेस आलाकमान भी नाराज है, लेकिन फिर भी गहलोत सीएम हैं।
बस मुख्यमंत्री पद बना रहना जरूरी है
अशोक गहलोत का असली मकसद अगले विधानसभा चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहना है। चुनाव के बाद कांग्रेस की क्या स्थिति होती है, इससे गहलोत को कोई सरोकार नहीं है। दिसंबर 2023 तक रहने पर मोहनलाल सुखाडिया के बाद सर्वाधिक 15 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहने का गौरव भी हासिल कर लेंगे। संगठन की बैठकों में नेता आएं या नहीं, इससे गहलोत को कोई फर्क नहीं पड़ता है। गहलोत की सबसे बड़ी उपलब्धि मुख्यमंत्री बने रहना है, इसमें गहलोत पूरी तरह सफल हुए हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को राजस्थान में सफल बना कर गहलोत ने एक बार अपनी राजनीतिक काबिलियत प्रदर्शित कर दी है। विधानसभा स्तर पर निकलने वाली हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा की सफलता प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के जिम्मे हैं। गहलोत तो अपने बजट सत्र में व्यस्त रहेंगे। संभवतः गहलोत का यह आखिरी बजट होगा। गहलोत को यह बजट भाजपा को भी चैंकाएगा।
जयपुर में चलाया गहलोत ने भी बुलडोजर
अपराधियों के खिलाफ जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में बुलडोजर अभियान चलाया जा रहा है, उसी प्रकार अब राजस्थान में भी अशोक गहलोत की सरकार अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर चला रही है। 9 जनवरी को जयपुर में गोपालपुरा बाईपास स्थित गुर्जर की थड़ी पर बने अधिगम कोचिंग सेंटर की पांच मंजिला अवैध बिल्डिंग को बुलडोजर से धराशायी कर दिया गया। इस कोचिंग सेंटर का मालिक सुरेश ढाका है, जो शिक्षक भर्ती परीक्षा लीक का मास्टरमाइंड है। लाख कोशिश के बाद भी जब सुरेश ढाका को गिरफ्तार नहीं किया जा सका, तब गहलोत सरकार के निर्देश पर जयपुर विकास प्राधिकरण ने ढाका के पांच मंजिला कोचिंग सेंटर को बुलडोजर से मिट्टी में तब्दील कर दिया। प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि यह बिल्डिंग आवासीय भूखंड पर अवैध रूप से बनाई गई है, इसलिए इसे तोड़ा गया है। सवाल यह भी है कि जब यह पांच मंजिला बिल्डिंग बन रही थी, तब कार्यवाही क्यों नहीं की गई? जाहिर है कि सरकार अब पेपर लीक के मामलों में सख्त रवैया अपना रही है, इसलिए अवैध बिल्डिंग को धराशायी किया गया है। जयपुर में लाखों ऐसी बिल्डिंग हैं, जो आवासीय भूखंडों पर बनी हुई है और उनमें व्यावसायिक गतिविधियों हो रही है। सरकार को पेपर माफिया और बदमाशों को सबक सिखाना है, इसलिए सुरेश ढाका के कोचिंग सेंटर को धराशायी किया गया है।