अटूट आस्था का सैलाब उमड़ता है डिडिया गांव में कांस जी महाराज के दर्शनार्थ, केरों की झाड़ियों की डालियों से लिपटे सर्पों को देवस्वरूप और चमत्कारी होने की है प्रबल मान्यता, लाडनूं से श्री शुभ यात्रा की बस भर कर पहुंची डिडिया गांव कांसजी महाराज के दर्शनों के लिए 

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अटूट आस्था का सैलाब उमड़ता है डिडिया गांव में कांस जी महाराज के दर्शनार्थ,

केरों की झाड़ियों की डालियों से लिपटे सर्पों को देवस्वरूप और चमत्कारी होने की है प्रबल मान्यता,

लाडनूं से श्री शुभ यात्रा की बस भर कर पहुंची डिडिया गांव कांसजी महाराज के दर्शनों के लिए 

लाडनूं (kalamkala.in)। रोल से कुछ ही दूरी पर स्थित डोडिया कलां और डोडिया गांव में भारी भीड़ अलग-अलग झाड़ियों को घेरे हुए झुंड के झुंड दिखाई दे रहे थे। पास जाकर देखा तो वहां केर के झाड़ों पर लिपटे सर्पों के दर्शन लोग कर रहे थे। इन झाड़ियों के पास लोग अपने चप्पल-जूते उतार कर नंगे पांव ही जाते, वहां प्रसाद भी चढ़ाते, हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए मन्नतें भी मांग रहे थे। इन सर्पों को कांसजी महाराज के रूप में माना जा रहा था।

कांस जी महाराज के दो मंदिर

डोडिया कलां (डोडिया खुर्द) में कांसजी महाराज का नया मंदिर बना हुआ था और डोडिया गांव में कांस जी का पुराना मंदिर था। वहां मेला लगा हुआ था। झूले और हर तरह की अस्थाई दुकानें सजी थी। खिलौनों, कृषि औजारों, प्रसाद आदि विभिन्न सामान इन दुकानों में विक्रयार्थ सजे थे, इन पर लोगों की भीड़ भी लगी थी। मंदिर में पंक्तिबद्ध होकर लोग कांस जी की प्रतिमा के दर्शन कर रहे थे, प्रसाद चढ़ा रहे थे, फेरी लगा रहे थे। मंदिर परिसर में अन्य छोटे मंदिरों में भी लोग ढोक लगा रहे थे। बताया जाता है कि यहां आस-पास की झाड़ियों में दिखने वाले सर्पों को साक्षात् देवस्वरूप मानने वाले ग्रामीण इनसे फसलों के जमाने और अकाल आदि की अलग-अलग भविष्यवाणियां भी करते हैं। उनके पूर्वानुमान लगभग सटीक बैठते हैं, इससे उनकी मान्यता अधिक प्रबल हो जाती है। आस्था के कारण ही यहां बरसों से कांस पंचमी का विशाल मेला भरता आया है‌

कौन है कांस जी महाराज

आमतौर पर वर्तमान में झाड़ियों में प्रकट होकर लिपटे सर्प को ही लोग कांस जी महाराज का साक्षात् स्वरूप मानते हैं और दर्शन कर अपने आपको सौभाग्यशाली समझते हैं, लेकिन कांस जी महाराज के मंदिर में प्रतिमा में एक बालक रूप में मूर्ति है और साथ में सर्प की प्रतिमा भी है। इस बारे में अलग-अलग किम्वदन्तियां हैं। एक मान्यता के अनुसार करीब 500 साल पहले एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसके साथ एक सर्प ने भी जन्म लिया। उस सर्प को बच्चे के लिए खतरा समझ कर मार दिया गया, तो उसके साथ उस बच्चे की भी मौत हो गई। तब से उस सर्प और बच्चे को देवता के रूप में माना जाने लगा। यहां मान्यता है कि सावण महिने से लेकर भादवा शुक्ला पंचमी, जिसे कांस पंचमी कहा जाता है, तक यहां की झाड़ियों, जिनमें केर, जाल या देसी बबूल शामिल हैं, उन पर ये सर्प आकर लिपटे रहते हैं। लोग इनके दर्शन करते हैं, घेरे रहते हैं, लेकिन ये इससे घबरा कर अपना स्थान नहीं छोड़ते। ये वहां लिपटे ही रहते हैं। कांस पंचमी के बाद इनको वहां नहीं देखा जा सकता। ये फिर वापस कहीं चले जाते हैं और गायब हो जाते हैं।

लाडनूं से भी बस भर कर पहुंचे लोग

लाडनूं से कांसजी महाराज के मेले के लिए श्री शुभ यात्रा संघ के तत्वावधान में बस द्वारा डिडिया गांव के लिए गए यात्रियों ने रवानगी की। ये सभी यात्री सबसे पहले मूंडवा में तेजास्थली पहुंचे, जहां वीर तेजा गौशाला परिसर में आयोजित संत हेतमराम जी महाराज (भदवासी) के चातुर्मास प्रवास के दौरान चल रही भागवत कथा का श्रवण सभी ने किया। लाडनूं के रामकुमार जी तिवाड़ी ने भी भागवत कथा मंच से प्रवचन प्रस्तुत किया। वहां सभी ने संत नेमीराम जी महाराज से भेंट कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया तथा वहां लगी हुई संत मूर्तिराम जी महाराज की प्रतिमा का सबने पूजन किया। वहां से फिर सभी रोल के पास स्थित इस डिडिया गांव पहुंचे, जहां लम्बे मैदान में डिडिया खुर्द से डिडिया गांव तक मेला लगा हुआ था। बड़ी संख्या में ठेठ तक वाहन ही वाहन और लोगों की रेलमपेल लगी हुई थी। वहां सबने केर के झाड़ों पर डालियों से लिपटे इन सर्पों के दर्शन किए। फिर वहां स्थित दोनों मंदिरों के दर्शन भी किए। इनके अलावा लाडनूं से गए इन यात्रियों ने रोल के कांसोलाव तालाब को देखा और वहां पास ही के श्री रंगनाथ मंदिर में भी दर्शन लाभ लिया। वापस आते समय सभी ने गोठ-मांगलोद गांव में दधिमथी माता के प्राचीन मंदिर में माता के दर्शन किए। फिर वहां से भजन गाते हुए वापस लाडनूं लौटे। इस श्री शुभ यात्रा बस में शिक्षाविद् रामकुमार जी तिवाड़ी, पार्षद सुमित्रा आर्य, रामचंद्र पंडित, ओमप्रकाश तिवाड़ी, सुनील नागपुरिया, रामनिवास विश्नोई, हीरालाल चौधरी, लोक कलाकार अनूप तिवाड़ी, व्यवसायी हुलाश प्रजापत, कमल दाधीच, करणपाल टेलर आदि महिला-पुरुष श्रद्धालुजन शामिल रहे।

kalamkala
Author: kalamkala

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