विश्वविद्यालय को ऐसा केन्द्र बने कि देश-विदेश के लोग जैन विद्याओं को जानने-समझने के लिए लाडनूं आएं- आचार्यश्री महाश्रमण,
जैविभा संस्थान के विकास के लिए अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने दिए अनेक टिप्स
लाडनूं (kalamkala.in)। तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य एवं जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा है कि जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय में और नया क्या किया जा सकता है, इस पर ध्यान देना चाहिए। विश्वविद्यालय के लिए जैनिज्म मूल रहना चाहिए। इसका नाम ही जैन विश्वभारती संस्थान है तो जैन विद्या ही इसकी मल रहेगी। समस्त देश-विदेश में जैनिज्म को जानने, समझने, पढने और ज्ञान प्राप्त करने के लिए यह केन्द्र रहना चाहिए, जहां आकर उन्हें जैन विद्या को पढने-जानने का पूरा अवसर मिल सके। सूरत में अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के दर्शनार्थ आए जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, शिक्षकों, प्रशासनिक अधिकारियों एवं प्रमुख लोगों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की स्थापना के 34 वर्षों के इतिहास का लेखन होकर एक पुस्तक तैयार होनी चाहिए। इसमें विश्वविद्यालय के विकास की सम्पूर्ण यात्रा का विवरण संकलित किया जाकर सम्मिलित किया जाना चाहिए। 34 वर्ष की यात्रा की इस किताब के लिए 34 वर्ष पहले के साक्षी भी मिल जाएंगे। इसमें विकास के समस्त प्रयासों और उनके रही कमियों-अच्छाइयों सहित पूरा उल्लेख होना चाहिए। इस पुस्तक से पुरानी से पुरानी बातों को जाना जा सकेगा। 10-20 साल बाद भी यहां कैसे-क्या हुआ, देख सकते हैं।
प्राच्य विधाओं, भारतीय संस्कृति, जैन विधाओं के क्षेत्र में सतत कार्यरत
कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने प्रारम्भ में सबका परिचय करवाते हुए अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण को प्रारम्भ में विश्वविद्यालय के बारे में गतिविधियों एवं योजनाओं की जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में हम प्राच्य विधाओं, भारतीय संस्कृति, जैन विधाओं के क्षेत्र में काम कर रहे हैं और इसी क्षेत्र में हमारी कोशिश है कि निरनतर आगे बढें। उन्होंने विश्वविद्यालय में किए जा रहे शोध कार्यों, साधुओं के सान्निध्य व मार्गदर्शन के बारे में बताते हुए कहा कि आज विश्वविद्यालय वित्तीय मामलों में सफल हुए हैं और आत्मनिर्भर बन रहे हैं। हम स्वयं के खर्चे से विभिन्न योजनाओं का संचालन करने में समर्थ है। 10-15 करोड़ की येाजनाओं पर अपने स्तर पर काम कर सकते हैं। उन्होंने जानकारी दी कि लाडनूं से 3 बसों से 75 विद्यार्थियों, 50 संकाय सदस्यों सहित 125 लोग सूरत आए हैं। इस अवसर पर प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. बीएल जैन, प्रो. जिनेन्द्र कुमार जैन, डा. प्रद्युम्नसिंह शेखावत आदि ने भी विश्वविद्यालय के सम्बंध में अपने विभागों के कार्यों, गतिविधियों एवं विकास की जानकारी दी।
यह नैतिक मूल्यों व संस्कारों को समर्पित विश्वविद्यालय
कुलाधिपति एवं केन्द्रीय विधि मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने विद्या की साधना को सर्वोत्कृष्ट साधना बताते हुए उसके परिणाम में धैर्य धारण करना आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि विद्याराधना की कोई निश्चित अवधि नहीं होती है। यह ‘चरैवेति-चरैवेति’ की भावनाएं रखती है कि सदा चलते ही रहना चाहिए। उन्होंने विश्वविद्यालय के सूरत में आयोजित दीक्षांत समारोह के अवसर पर भेजे गए अपने आनलाईन संदेश में पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम का स्मरण करते हुए कहा कि शिक्षा सदैव नैतिक मूल्यों को समर्पित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी ने ‘ज्ञान का सार आचार है’ को आदर्श बताते हुए मूल्यों को अपनाने का सपना लिया था। उसे जैन विश्वभारती संस्थान ने अपने स्थापना-काल से ही अपनाया और आचार्य महाप्रज्ञ व आचार्य महाश्रमण के अनुशासन, आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन में लगातार आगे बढ रहा है। यह विश्वविद्यालय एक विशेष उद्देश्य से गठित डीम्ड यूनिवर्सिटी है। इसमें डिग्री के साथ नैतिक शिक्षा को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। अपनी स्थापना के बाद 33 वर्षों में यह विश्वविद्यालय इस उद्देश्य की पूर्ति में बहुत आगे बढ चुका है। यह नैतिक मूल्यों व संस्कारों को समर्पित विश्वविद्यालय है। इस अवसर पर उन्होंने दीक्षार्थियों से अपनी-अपनी क्षमताओं को उपयोग में लेते हुए उन्हें खुले आकाश में प्रदर्शित करने के लए प्रेरित किया और कहा कि धैर्य, पुरूषार्थ एवं आत्मविश्वास को जीवन में कभी कमजोर नहीं होने दें, तभी जीवन में हिमालय जैसी ऊंचाई प्राप्त हो सकेगी।