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सरसरी नजर- राजस्थान विधानसभा चुनाव-2023:  राजस्थान में ‘उतर भींका म्हारी बारी’ होगा या परिपाटी को तोड़ेगी गहलोत की नीतियां, कांग्रेस को स्काॅर्पियो की सीटों तक सिमटाने को भाजपा की तैयारी, गहलोत को भीतरघात का गंभीर खतरा

सरसरी नजर राजस्थान विधानसभा चुनाव-2023: 

राजस्थान में ‘उतर भींका म्हारी बारी’ होगा या परिपाटी को तोड़ेगी गहलोत की नीतियां,

कांग्रेस को स्काॅर्पियो की सीटों तक सिमटाने को भाजपा की तैयारी, गहलोत को भीतरघात का गंभीर खतरा

जयपुर (जगदीश यायावर की कलम)। कर्नाटक के चुनावों के बाद अब मध्यप्रदेश, छतीसगढ, राजस्थान आदि में चुनाव को लेकर हलचल तेज है। राजस्थान में पिछला विधानसभा चुनाव 7 दिसम्बर, 2018 को हुआ था। इसे देखते हुए कांग्रेस और भाजपा सहित अन्य छोटे दल भी सक्रिय हो चले हैं। सभी विधानसभा क्षेत्रों में नेता अपनी-अपनी दावेदारी की भरसक तैयारियों में जुट चुके हैं। यहां मौजूदा राज्य सरकार कांग्रेस की है, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत कर रहे हैं। गहलोत राजस्थान से तीसरी बार मुख्यमंत्री हैं। इनका इस बार को पूरा कार्यकाल गहरे विवादों से घिरा हुआ और चर्चित रहा है। सकचन पायलट की चुनौतियां उन्हें विपक्षी दल भाजपा से भी भारी पड़ी है। गहलोत आगामी चुनावों में 156 सीटों को जीतने कादवा कर रहे हैं, तो भाजपा की ओर से मात्र गिनती की और सिर्फ एक ही स्काॅर्पियो गाड़ी में आने वाली सीटों तक कांग्रेस को सिमटना बता रहे हैं। मुख्यमन्त्री गहलोत हो या भाजपा उनका आत्मविश्वास कहीं अतिशयोक्ति ही साबित नहीं हो जाए, यह खतरा दोनों तरफ मंडरा रहा है। पार्टी के कार्यकर्ता ओवर कॉन्फिडेन्ट होने पर तो हार का ही मुंह देखना पड़ता है। जनता की नब्ज को पहचाने बिना इस प्रकार के दावे अनुचित ही होंगे।

भाजपा-कांग्रेस का सीधा मुकाबला या तीसरी ताकत प्रभावी रहेगी

यहां विधानसभा में कुल 200 सीटें हैं। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल दिसंबर 2023 में खत्म होने जा रहा है। इसलिए दिसंबर 2023 से पहले यहां चुनाव कराए जा सकते हैं। यहां दो दल ही प्रमुख रूप से सता में रहते आए हैं। इस बार भी भाजपा व कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर होने की पूरी संभावना है। कांग्रेस में अशोक गहलोत और भाजपा के वसुंधरा राजे का ही दबदबा हमेशा से रहता आया है और इस बार भी इनके बीच ही वास्तविक मुकाबला होने की संभावनाएं हैं। यहां इस बार तीसरी ताकत बनाने की कोशिशें भी जारी हैं। इसके तहत माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, आम आदमी पार्टी और अन्य छोटे दलों में आपसी गठबंधन के प्रयास जारी हैं और ये सब मिलकर भाजपा व कांग्रेस दोनों का विरोध कर रहे हैं। वर्तमान में कांग्रेस की सता होने से इस विरोध का असर सबसे ज्यादा कांग्रेस पर ही पड़ना है। एक तरफ भाजपा कमर कस कर कांग्रेस को उखाड़ फेंकने में लगी हुई है और दूसरी तरफ विभिन्न छोटे दल भी सतारूढ पार्टी का विरोध करने से कांग्रेस कमजोर ही होती दिखाई दे रही है।

सचिन पायलट पर डाल रहे हैं डोरे

इस सबके बीच यहां कांग्रेस के प्रमुख नेता और गहलोत विरोधी सचिन पायलट ने अभी अपने पते नहीं खोले हैं कि वे कांग्रेस में रहेंगे या अलग दल बनाएंगे या भाजपा के समर्थन से चुनाव लड़ेंगे। संभावनाएं हैं कि वे शीघ्र ही कोई अलग राजनैतिक दल का गठन कर सकते हैं। क्योंकि भाजपा में वसुंधरा राजे के रहते उन्हें स्थान मिलना मुश्किल लग रहा है। भाजपा के उच्च स्तरीय नेताओं से उनका सम्पर्क बताया जा रहा है, जो राजस्थान में उनके लिए कम से कम 10 सीटें छोड़ सकते हैं। ऐसे में वे राज्य में भाजपा को विजयी बनाने में ही अपनी भूमिका निभाएंगे। रालोपा के सुप्रीमो हनुमान बेनिवाल ने पायलट पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। ताकि वे अपना अलग दल बनाते ही उनके गठबंधन में शामिल हो जाएं। परन्तु ऐसी संभावनाएं क्षीण ही लग रही हैं।

वसुंधरा का रोल रहेगा महत्वपूर्ण

राजस्थान में पिछले दो दशक से छाई हुई पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लेकर भाजपा के भीतर भी विवाद है। पार्टी में गुटबाजी का असर भी नजर आ रहा है। हालांकि संगठन ने कुछ समय तक वसुंधरा को संगठन से दरकिनार रखने के बाद अब कहीं वापस उन्हें पोस्टर-बैनर, मंच आदि पर पूरा महत्व दिया जाने लगा है। इसके बावजूद एक बड़ा धड़ा वसुंधरा विरोधी भी सक्रिय है। ऐसी हालत में उच्च स्तरीय निर्णय स्पष्ट रूपसे सामने आए और सभी कार्यकर्ताओं पर वसुंधरा को नेतृत्व स्वीकार करने का दबाव बनाए। तब कहीं जाकर पार्टी सफल हो पाएगी। यह तो साफ नजर आ रहा है कि राजस्थान में केवल और केवल वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही भाजपा की सरकार वापस बन सकती है। अन्य नेता उनके मुकाबले लोकलुभान नहीं है। केवल वसुंधरा की लोकप्रियता ही चुनाव के दौरान काम आएंगी। इसे भुलाना भाजपा के लिए महंगा सिद्ध होगा।

अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे गहलोत

इधर कर्नाटक के चुनाव परिणामों में कांग्रेस को मिली भारी बढत ने राजस्थान के कांग्रेस नेताओं का मनोबल बढा दिया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कर्नाटक चुनाव परिणाम में नजर आई कांग्रेस के पक्ष की लहर के आगामी अन्य राज्यों के चुनाव में भी जारी रहने का दावा किया। उन्होंने कहा है कि आने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा चुनाव में भी कर्नाटक चुनाव परिणाम की पुनरावृत्ति होगी। गौरतलब है कि इससे पूर्व भरतपुर में पूर्वी राजस्थान की धरती से मुख्यमंत्री गहलोत ने ऐलान किया था कि वे मिशन 156 पर काम कर रहे हैं। उनका टारगेट राज्य में इस बार 200 में से 156 सीटें लाने का है। लेकिन यह बात अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना ही साबित हो सकता है। सीएम गहलोत का दावा था कि कांग्रेस पहले भी उनकी पार्टी की 156 सीटें आई हैं और इस बार जनता फिर से कांग्रेस का साथ देगी। अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए मुख्यमंत्री कहते हैं कि पिछले 5 साल में उन्होंने कोई नया टैक्स नहीं लगाया। महंगाई से राहत देने की लगातार कोशिश की और सरकार की योजनाओं का फायदा घर-घर में लोगों को मिल रहा है। सीएम गहलोत ने ताल ठोक कर कहते हैं कि दूसरे राज्य भी राजस्थान की योजनाओं को फॉलो करतेे हैं।

कांग्रेस सिमट जाएगी इस बार?

सरकार के इन दावों से इतर बीजेपी भी मोर्चा संभाले हुए हैं। भाजपा को सीपी जोशी के रूप में नया प्रदेशाध्यक्ष मिलने के बाद महत्वपूर्ण बैठक हुई। संघ के साथ हुई इस समन्वय बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी भी शामिल हुए। सरकार के दावों की काट करते हुए बीजेपी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने कहा था कि कांग्रेस का मिशन 156 तो दूर की बात है, बल्कि वे तो शायद 56 के भीतर ही सिमट जाएंगे। अरुण सिंह ने कहा कि खुद कांग्रेस के विधायक और सरकार के मन्त्री ही अगली बार एक फॉच्र्यूनर लायक सवारियां बचने की बात कह चुके हैं।

उतर भींका म्हारी बारी

राजस्थान में सता संभालने की जो परिपाटी रही है, राजनैतिक चर्चाओं में उसकी बात करने से कोई नहंी चूकता। साल 1993 के बाद से राज्य में कोई भी पार्टी अपनी सरकार रिपीट नहीं कर सकी। आइए जरा इस स्थिति पर भी नजर डाल लें-
1. साल 1993 से 1998 – बीजेपी और अन्य ने 124 विधायकों के साथ सरकार चलाई।
2. साल 1998 में सरकार बदली – कांग्रेस 156 सीट के साथ सत्ता में आई।
3. साल 2003 में सरकार फिर बदली – बीजेपी 123 सीट के साथ सत्ता में आई।
4. साल 2008 में सरकार फिर बदली – कांग्रेस 102 सीट के साथ सत्ता में लौटी।
5. साल 2013 में सरकार फिर बदली – बीजेपी 163 के बम्पर बहुमत से लौटी। जबकि कांग्रेस 21 पर सिमटी।
6. साल 2018 में सरकार फिर बदली – कांग्रेस 101 सीट के साथ सत्ता में आई।
इस प्रकार हम देखते हैं कि राजस्थान में विधानसभा चुनावों में लम्बे समय से ऐसा ट्रेंड रहा है कि एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी सतारूढ हुई है। लेकिन अब सामने चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं। दोनों ही पार्टियां खम ठोंक कर अभिनों में जुटी हुई है। गहलोत सरकारी मशीनरी को भी अभियानों के नाम से कैम्पों के नाम से अपने प्रचार अभियान में झोंक चुके हैं। अब आने वाला वक्त ही यह बताएगा कि राज्य का चुनावीं ऊंट आखिर किस करवट बैठेगा।
kalamkala
Author: kalamkala

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