व्यक्ति खुद को सुधारेगा, तभी समाज में सुधार संभव- संत अमृतराम महाराज,
लाडनूं के रामद्वारा में श्रीमद् भागवत कथा के 16वें अध्याय का प्रवचन
लाडनूं (kalamkala.in)। स्थानीय रामद्वारा सत्संग भवन में चल रहे दिव्य भक्ति चातुर्मास कार्यक्रम में शुक्रवार को श्रीमद् भागवत कथा के 16वें अध्याय का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया। अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के संत अमृतराम महाराज ने प्रवचन के दौरान कहा कि व्यक्ति को सदैव अपने अंतर्मन में झांककर आत्ममंथन करना चाहिए, न कि दूसरों पर अंगुली उठानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के भीतर राक्षसी और दैवीय दोनों प्रवृत्तियां होती हैं। जो व्यक्ति अपने अंदर की दैवी प्रवृत्तियों को जागृत करता है, वही सच्चे अर्थों में देवता बनकर जीवन को सार्थक बना सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जब तक व्यक्ति स्वयं को न सुधारे, तब तक समाज और संसार में सुधार संभव नहीं। कथा के दौरान श्रीमद् भागवत के 16वें अध्याय में वर्णित दैवी और आसुरी संपत्तियों के माध्यम से जीवन में संतुलन, संयम और सच्चाई की महत्ता को रेखांकित किया गया। अमृतराम महाराज ने श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे गीता और भागवत जैसे ग्रंथों से प्रेरणा लेकर जीवन में आध्यात्मिक उत्थान की ओर अग्रसर हों।
संत वाणी पाठ और गीता प्रवचन का समय
कार्यक्रम के संयोजक सीताराम गौतम ने बताया कि रामद्वारा भवन में प्रतिदिन प्रातः 8:30 बजे संतों की वाणी का पाठ होता है तथा दोपहर 1:30 बजे से 3:00 बजे तक गीता पर विशेष प्रवचन होते हैं। शुक्रवार को लाडनूं शहर के अलावा आसपास के गांवों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए और भक्ति रस का रसपान किया।







