आचार्य महाश्रमण ने किया आचार्य व उपाध्याय के गुणसूत्रों व उनके मोक्ष प्राप्ति के विधि का वर्णन
छापर (चूरू)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने छापर चातुर्मास के दौरान मंगलवार को मुख्य प्रवचन में मंत्र जप का आध्यात्मिक अनुष्ठान करवाते हुए भगवती सूत्र के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से एक प्रश्न किया गया कि आचार्य व उपाध्याय अपने विषय में अग्लान भाव से गण का संग्रहण, देखरेख करते हैं, वे कितने भवों में सिद्धत्व को प्राप्त होते हैं अथवा आचार्य व उपाध्याय कितने जन्मों में मोक्ष का वरण कर लेते हैं?
आचार्य होते हैं 36 गुणों के धारक
आचार्य व उपाध्याय अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन करने वाले होते हैं। अपने कार्यक्षेत्र में खेदरहित अवस्था में अपना कार्य करते हैं। आचार्य का कार्य अर्थ बताना, व्याख्या करना और उपाध्याय सूत्र का प्रतिपादन करना होता है। कई बार आचार्य व उपाध्याय दोनों का दायित्व एक ही व्यक्ति पर हो सकता है। तेरापंथ धर्मसंघ के 262 वर्षों के इतिहास में आचार्य भिक्षु से लेकर अभी तक आचार्य ने किसी भी दूसरे व्यक्ति को उपाध्याय पद प्रदान नहीं किया। इस धर्मसंघ में आचार्य में ही उपाध्याय का पद निहित है। इनको मोक्ष जाने के लिए तीन विकल्प बताए गए हैं- पहला बात कि कोई-कोई आचार्य/उपाध्याय तो इसी जन्म के बाद मोक्ष जा सकते हैं। कोई दूसरे भव में सिद्ध हो जाते हैं और कोई तीसरे भव में सिद्धत्व को प्राप्त कर लेते हैं। आचार्य/उपाध्याय की इतनी निर्जरा हो जाती है कि उन्हें मोक्ष जाना ही जाना होता है, यह आगम कहता है। आचार्य 36 गुणों के धारक होते हैं। उपाध्याय 25 गुण वाले होते हैं। साधु के 27, अर्हतों के 12 और सिद्धों के 8 गुण होते हैं। कुल मिलाकर 108 गुण पंच परमेष्टि के हो जाते हैं।
सभी आचार्यों के कर्म निर्जरा योग्य रहे
उन्होंने बताया कि आचार्य अपने दायित्व के साथ-साथ उपाध्याय के दायित्व भी निर्वहन करते हुए हमारे धर्मसंघ के पूर्व के दस आचार्यों ने अपने-अपने ढंग से संघ की सेवा की, सार-संभाल किया, संघ को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। आचार्य भिक्षु से लेकर श्रीमज्जयाचार्य आदि तथा गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने संघ की इतनी देखभाल की। संघ की सार-संभाल करना, सेवा देना, व्याख्यान देना, सबके चित्त समाधि का ध्यान रखना, आगम आदि के कार्यों को भी कराना आदि करते हैं। जिनके माध्यम से आचार्य के इतने कर्मों की निर्जरा हो जाती है कि वे पांच भवों में ही मोक्ष को प्राप्त कर लें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।
कालूयशोविलास के आख्यान से किया लाभान्वित
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री कालूगणी की जीवनी पर आधारित आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया और उसका संगान भी कराया।